मलिक असगर हाशमी

हरियाणा में क्या ‘वन मैन शो’ का माहौल है। सूबे के वरिष्ठ भाजपा नेता मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर से कटे-कटे क्यों रहते हैं। क्या उनके नेतृत्व में चुनाव में उतरना उन्हें स्वीकार नहीं। अनुशासन के दायरे को फलांगते हुए खुलेआम खट्टर के करीबी मंत्रियों की आलोचना के क्या मायने निकाले जाएं और तमाम प्रयासों के बावजूद भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी आखिर क्यों कम नहीं हो पा रही है? ये कुछ ऐसे अहम सवाल हैं, जिनको लेकर पार्टी आलाकमान बेहद बेचैन है। भाजपा की ओर से लोकसभा चुनाव से पहले न केवल इन सवालों को निपटाकर हरियाणा में अपने पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास चल रहा है, बल्कि पार्टी एकजुटता प्रदर्शित कर भविष्य का मजबूत तानाबाना भी बुनना चाहती है। लोकसभा के साथ ही हरियाणा में विधानसभा के चुनाव होने की चर्चा है। ऐसे में अनसुलझे सवाल भारतीय जनता पार्टी को खतरे में डाल सकते हैं।

अभी भाजपा हरियाणा की दस लोकसभा सीटों में सात और विधानसभा की 90 सीटों में 47 पर काबिज है। विभिन्न प्रदेशों में हुए हाल के उपचुनावों के नतीजे पार्टी के लिए कुछ अच्छे नहीं रहे। पड़ोसी प्रदेश राजस्थान में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। अब तक की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान की वसुंधरा सरकार की स्थिति ठीक नहीं चल रही है। कहीं पड़ोसी प्रदेश का रंग हरियाणा पर भी न चढ़ जाए? इस खतरे को भांपते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह विशेष दिलचस्पी लेकर सूबे में पार्टी के अनुकूल माहौन बनाने में पुरजोर तरीके से लगे हुए हैं। हरियाणा के प्रति उनकी रुचि का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 22 जून से लेकर अब तक उनके दिशा-निर्देश पर राष्ट्रीय, प्रदेश और स्थानीय प्रमुख नेताओं की कई दौर की वार्ता और बैठकें हो चुकी हैं। कई कार्यक्रम भी शुरू किए गए हैं।

इसके अलावा हरियाणा का मसला सुलझाने के लिए कैलाश विजयवर्गीय और डॉक्टर अनिल जैन सरीखे ‘चाणक्यों’ को विशेष तौर से लगाया गया है। इन मसलों को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी सक्रिता बढ़ा दी है। ‘ओपिनियन पोस्ट’ से बातचीत में मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार राजीव जैन पार्टी में कुछ लोगों द्वारा असहयोग आंदोलन चलाने की बात से इंकार करते हैं। मगर यह अवश्य स्वीकारा कि ‘बड़े नेता चाहते हैं कि काम परफेक्ट और अधिक से अधिक हो।’

आमतौर पर यह सबको पता है कि मनोहरलाल खट्टर की पार्टी के कुछ लोगों से कतई नहीं पटती। विशेषकर पार्टी के उन वरिष्ठ नेताओं से जो मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शुमार होते रहे हैं। पिछले आम चुनाव के समय कुछ नेता तो अपनी पार्टी छोड़कर केवल इसलिए भाजपा में आए थे कि मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना यहां साकार हो सकता है। मगर आलाकमान ने बीच का रास्ता निकालते हुए खट्टर को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया, जो इसके दावेदार नहीं माने जाते थे। वैसे, मुख्यमंत्री पद के पुराने दावेदारों की ख्वाहिश आज भी मरी नहीं है। उन्हें लगता है कि उनका सपना इस बार अवश्य पूरा होगा। ऐसे में मुख्यमंत्री को हलका, कमजोर और निष्क्रिय दिखाने का मनोवैज्ञानिक खेल इनदिनों चरम पर है। एक केंद्रीय मंत्री गुरुग्राम के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के समय देकर न पहुंचने पर मंच से उनकी आलोचना कर चुके हैं। मंत्री जी गाहे-बगाहे ऐसा पहले भी करते रहे हैं। केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह भी खट्टर विरोधियों में शुमार किए जाते हैं। सरकार के कामकाज को लेकर बगावत का झंडा बुलंद करने वाले 19 विधायकों में चौधरी वीरेंद्र सिंह की पत्नी भी थीं। पिछले चुनाव के समय कांग्रेस से भाजपा में आए चौधरी तो यहां तक कहते हैं, ‘‘यदि मैं आरएसएस कार्यकर्ता होता तो आज हरियाणा का मुख्यमंत्री होता।’’ बता दें कि मनोहरलाल संघ के प्रचारक रह चुके हैं।

चालू है असहयोग आंदोलन
पार्टी हाई कमान के समक्ष मनोहरलाल खट्टर को कमजोर साबित करने को उनके विरोधी निरंतर असहयोग आंदोलन छेड़े हुए हैं। पार्टी और सरकार पर उनकी पकड़ को कमजोर दिखाने के लिए हाई कमान के उन निर्देशों को भी दरकिनार करने से गुरेज नहीं किया जा रहा, जिससे अवाम के बीच केंद्र एवं राज्य सरकार की बेहतर छवि बन सकती है। तकरीबन तीन महीना पहले अपने हरियाणा प्रवास के दौरान उन्होंने मंत्रियों को प्रत्येक मंगलवार, बुधवार को सचिवालय में बैठक कर पार्टी कार्याकर्ताओं की समस्या सुनने और ग्रीवांसेस कमेटी के प्रभारी मंत्रियों को शिकायत निवारण समिति की बैठक से एक दिन पहले वहां पहुंचकर कार्यकर्ताओं और अधिकारियों के साथ बैठक कर उनकी समस्याओं के निवारण के निर्देश दिए थे। यह काम भी अब तक शुरू नहीं हुआ है। केंद्र सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर वरिष्ठ नेताओं को अपने इलाके की नामचीन हस्तियों से मिलकर मोदी सरकार की उपलिब्धयों से अवगत कराने का कार्यक्रम तय किया गया था। मगर मुख्यमंत्री और एक-दो मंत्रियों को छोड़कर इसमें किसी ने खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है। संगठन की मजबूती के लिए बूथवाइज महासंपर्क अभियान के तहत 50 परिवारों से मिलने का कार्यक्रम तय किया गया था, जिस पर आज भी अमल नहीं हो रहा है। अमित शाह के आदेश के बाद भी न तो मंत्री सप्ताह में दो दिन सचिवालय में बैठ कर कार्यकर्ताओं की समस्या निपटा रहे हैं और न ही मंत्री और वरिष्ठ नेता संग कार्यकर्ता की बैठकें हो रही हैं। स्थिति यह है कि धीरे-धीरे भाजपा कार्यकर्ता-समर्थक दूसरी पार्टियों में शिफ्ट होने लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी के विस्तारक रहे वेदप्रकाश ने खट्टर मंत्रिमंडल के तीन वरिष्ठ सदस्यों नायब सिंह सैनी, कैप्टन अभिमन्यु और ओमप्रकाश धनखड़ पर बड़े आरोप लगाए हैं। वह इस कदर नाराज हैं कि उन्होंने विरोध में 17 मिनट का एक वीडियो फेसबुक पर अपलोड कर दिया है। ओप्रकाश की मानें तो अपने इलाके के बीडीपीओ के आपत्तिजनक व्यवहार को लेकर जब वह धनखड़ से मिलने गए तो उनके पीए ने यह कह कर भगा दिया कि यहां आने की कोई जरूरत नहीं है। जबकि कैप्टन अभिमन्यु ने काम करना तो दूर चाय तक के लिए नहीं पूछा।
खट्टर को फेल करने को लेकर पार्टी में चल रहे षड़यंत्र का आलम यह है कि उनके कार्यक्रमों में भी अधिकांश बड़े नेता दिखाई नहीं देते। अभी मुख्यमंत्री सरकार की उपलब्ध्यिों को लेकर हरियाणा में ‘रोड शो’ कर रहे हैं। इसके अलावा 5 जुलाई से ‘कार्यकर्ता के घर चाय पर चर्चा’ का कार्यक्रम शुरू किया गया है। इलाके के विधायकों को छोड़ दें तो पार्टी के अधिकांश वरिष्ठ नेता, मंत्री इससे दूरी बनाए हुए हैं। प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला भी आजकल सार्वजनिक कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री के संग कम ही दिखाई देते हैं। भाजपा के मीडिया प्रभारी रहे राजीव जैन जब से मुख्यमंत्री के चंडीगढ़ में मीडिया सलाहकार बने हैं, तब से अधिकतर वही छोटे-बड़े कार्यक्रमों में दिखते हैं। यहां तक कि मंत्रियों से अधिक इन दिनों वह ही मीडिया में छाए हुए हैं। शहरी स्थानीय निकाय मंत्री उनकी पत्नी हैं।

विपक्षी हमले से बचाव नहीं
दो बार जाट आंदोलन, बाबा गुरमीत राम-रहीम की गिरफ्तारी सहित खट्टर सरकार के साढ़े तीन साल के कार्यकाल में कम से कम पांच ऐसे मौके आए, जब हरियाणा हिंसक आंदोलन का शिकार हुआ। इसके चलते सरकार काफी दिनों तक विरोधियों के निशाने पर रही। ऐसे हालात में भी पार्टी में ऊपर से नीचे तक फूट दिखी। पिछले तीन महीने से इंडियन नेशनल लोकदल एसवाईएल के पानी को लेकर प्रदेश सरकार के रवैये के विरोध में जेल भरो आंदोलन चलाए हुए है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी साइकिल और रथयात्रा निकाल कर सरकार की पोल खोलने में लगे हैं। इसके कारण उनका जनाधार बढ़ रहा है। इस पर कई बार पार्टी के उच्च पदाधिकारियों के बीच मंथन हो चुका है, फिर इसकी काट में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला कहते हैं, ‘‘हमारा रुख एकदम साफ है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन होगा और एसवाईएल नहर का निर्माण अवश्य होगा। मुख्यमंत्री तो इससे भी आगे रावी-व्यास नदी का पानी जो पाकिस्तान जा रहा है, उसे रोककर देशहित में इस्तेमाल करने की बात कर रहे हैं।’’ मगर इनेलो के आंदोलन को फेल करने और कांग्रेसियों को आईना दिखाने के लिए भाजपा की ओर से कोई अभियान नहीं चलाया जा रहा है। लगता है जैसे पूरा संगठन हाथ पर हाथ धरे बैठा है। पार्टी के एक बुजुर्ग नेता कहते हैं, ‘‘यदि भाजपा की ओर से ऐसे प्रयास किए गए होते तो निश्चित ही इनेलो और कांग्रेस के अभियान को धक्का पहुंचता। यह तो उदाहरण मात्र है। कॉमनवेल्थ गेम्स के विजेता हरियाणवी खिलाड़ी को इनाम राशि देने के मसले पर कुछ दिनों पहले खेल मंत्री खिलाड़ियों एवं विपक्ष के निशाने पर आ गए थे। तब भी पार्टी और मंत्रिमंडल के स्तर पर इस विवाद पर पानी डालने का ठोस प्रयास नहीं किया गया। उस दौरान मुख्यमंत्री इजराइल यात्रा पर थे। उनके आने के बाद उनकी पहल पर किसी तरह मामला शांत किया जा सका। हालांकि यह मसला अभी भी सुलझाने की कोशिश नहीं की गई है।

जाहिर सी बात है, इतने झोल के बाद पार्टी हाई कमान के माथे पर शिकन पड़ना लाजमी है। उपरोक्त सवालों का हल निकाले बगैर हरियाणा में पार्टी और सरकार को मजबूत करना तो क्या वर्तमान स्थिति बचाए रखना भी मुश्किल हो जाएगा।