पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र

29 अक्टूबर को नरक चतुर्दशी है। इसे रूप चतुर्दशी के साथ-साथ नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। कार्तिक कृष्‍ण चतुर्दशी की रात्रि के अंत में जिस दिन चंद्रोदय के समय चतुर्दशी हो उस दिन सुबह दातुन आदि करके-यमलोकदर्शनाभवकामोअहमभ्यंकस्नानं करिश्ये-कहकर संकल्प करें। शरीर में तिल के तेल आदि का उबटन लगा लें। हल से उखाड़ी मिट्टी का ढेला, अपामार्ग आदि को मस्तक के ऊपर बार-बार धुमाकर शुद्व स्नान करें।

वैसे तो कार्तिक स्नान करने वालों के लिए-तैलाभ्यंग तथा शययां परन्ने कांस्यभोजनम्। कार्तिके वर्जयेद् यस्तु परिपूर्णव्रती भवेत के अनुसार वर्जित है,  निषेध है लेकिन-नरकस्य चतुर्दष्यां तैलाभ्यगं च कारयेत्। अन्यत्र कार्तिकस्न्नायी तैलाभ्यगं विवर्जयेत्।। नरकचतुर्दशी में तेल लगाना अति आवश्‍यक है। वैसे तो हमेशा ही सूर्योदय से पूर्व ही नहाना चाहिए लेकिन कम से कम इस दिन तो सूर्योदय से पूर्व नहाने से शरीर विशेष रूप से रोगमुक्त होता है।

वरूण देवता को स्मरण करते करते स्नान करना चाहिए। नहाने के जल में हल्दी और कंकुम अवश्‍य  डालना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि सूर्योदय के बाद स्नान करने से साल भर के शुभ कार्यों का नाश होता है। साथ ही शाम को दीपक अवश्‍य जलाना चाहिए। इस दिन कृष्‍ण भगवान ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। इसी दिन बलि को भगवान विष्‍णु ने वामन अवतार में आशीर्वाद दिया था हर साल दिवाली पर उनके यहां आने का।

इसी दिन यम-तर्पण दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके जल, तिल और कुश लेकर-

यमाय धर्मराजाय मृत्यवे अनन्ताया परमेश्ठिने वृकोदराय चित्राय और चित्रगुप्ताय-कह कर जल छोड़ें। ध्यान रहे,  इनमें से प्रत्येक नाम का नमः सहित उच्चारण करके ही जल छोड़ना होगा। यज्ञोपवीत-जनेऊ को कण्ठी की तरह रखें। काले और सफेद दोनों प्रकार के तिलों को काम में लें।यम में धर्मराज के रूप में देवत्व और यमराज के रूप में पितृत्व विराजमान हैं। तिल तेल से भरे 14 दीपक जला कर मंदिर, बाग-बगीचे, गली,  बावली आदि में रखने चाहिए। इस दिन थोड़ी आतिशबाजी करनी चाहिए।