पर्यावरण को लेकर प्रत्येक देशवासी चिंतित है. हर कोई अपने अपने तरीके से समाज को प्रदूषण मुक्त बनाने का प्रयास कर रहा है.
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले से पंद्रह किलोमीटर दूर स्थित कांटी गांव की आबादी तकरीबन साढ़े तीन हजार है. देश दुनिया को पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा का संदेश देने के लिए यहां के 90 प्रतिशत परिवार अपनी रसोई में बायोगैस का इस्तेमाल कर रहे हैं. यादव एवं कुशवाहा बाहुल्य इस गांव की महिलाएं बताती हैं कि बायोगैस से पका भोजन बहुत स्वादिष्ट और पाचक होता है. चाय, साग सब्जी, रोटी या और कोई व्यंजन हो, बायोगैस उसके स्वाद को बढ़ा देती है. चूंकि गांव के प्रत्येक घर में पशु हैं, इसलिए गोबर भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाता है. महिलाएं बताती हैं कि एलपीजी का इस्तेमाल करने से भोजन में वास्तविक स्वाद नहीं आ पाता. उस पर बनाई गई रोटियों के सेवन से पेट दर्द, अपच जैसी दिक्कतें पैदा हो जाती है. अपने पर्यावरण प्रेम और बायोगैस इस्तेमाल करने के चलते कांटी गांव पूरे बुंदेलखंड के एक मिसाल बन गया है.
गांववासियों को बायोगैस के इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया इफ्को ने. साल 2013 में कांटी गांव आई इफ्को की टीम ने बायोगैस से होने वाले लाभ से अवगत कराया और खुद प्लांट लगवाने की पहल की. लोगों को सिर्फ गड्ढे खोदने थे. प्रति प्लांट लागत आई 16 हजार रुपये, जिसमें आठ हजार रुपये केंद्र सरकार, तीन हजार रुपये प्रदेश सरकार और तीन हजार रुपये इफ्को का योगदान था. बाकी रकम संबंधित परिवार को वहन करनी पड़ी. गांव के 180 परिवारों के पास अपने बायोगैस प्लांट हैं. 20 किलो गोबर से बनी बायोगैस 16 लोगों का भोजन तैयार किया जा सकता है. इलाके के प्रशासनिक अधिकारी भी पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के प्रति कांटी गांववासियों की जागरूकता के कायल हैं. उनका कहना है कि जिले के हर गांववासियों को कांटी से संदेश ग्रहण करना चाहिए कि हम सबका एक छोटा सा प्रयास कितना बड़ा बदलाव ला सकता है.