धर्मवीर सिंह

अक्तूबर 2014 में हरियाणा की सत्ता संभालने वाली भाजपा सरकार ने इन दिनों ‘मेरा गांव जगमग गांव’ नाम से गांव-गांव में बिजली पहुंचाने का अभियान चला रखा है। अभियान के लिए विज्ञापन पर भी खूब पैसा बहाया जा रहा है। इस अभियान से पता नहीं, गांव जगमगाएंगे या नहीं। लेकिन इतना जरूर है कि जिस अंधियारे को मिटाने की सही मायनों में जरूरत थी, उस ओर से भाजपा सरकार आंख मूंदे बैठी है। वह अंधियारा है तथाकथित नंबर वन हरियाणा में पसरा अशिक्षा का अंधियारा। हाल ही में केंद्र सरकार की तरफ से जारी सामाजिक व आर्थिक जनगणना के आंकड़ों में हरियाणा में शिक्षा की जो तस्वीर उभर कर आई है वह न केवल इसके नंबर वन होने के दावे को झुठलाती है बल्कि हरियाणा को शिक्षा हब के तौर पर प्रचारित करने वाले मिथक का भी पदार्फाश करती है। यह मिथक हरियाणा में बीते एक दशक में खुले उन इंजीनियरिंग,मैनेजमेंट व पोलीटेक्निक कॉलेजों के नाम पर गढ़ा गया जिसके बारे में बीते साल फिक्की के एक सर्वे में कहा गया था कि इसमें से आधे भी उद्योगों की जरूरत के हिसाब से स्किल्ड नही है। केंद्र सरकार की तरफ से पेश किए गए सामाजिक व आर्थिक सर्वे में हरियाणा के बारे में चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। सर्वे में खुलासा हुआ कि ग्रामीण हरियाणा की शिक्षा हासिल करने योग्य आबादी का 76 फीसदी हिस्सा दसवीं तक भी नहीं पढ़ पाया है। इसमें से 34 फीसदी को पूरी तरह से अनपढ ही है। हरियाणा में शिक्षा का यह अंधेरा तब है जब प्रदेश में 16,504 सरकारी स्कूल व इससे भी ज्यादा प्राइवेट स्कूल हैं। सर्वे में हरियाणा में उच्च शिक्षा की हालात तो और भी दयनीय बताई गई है। प्रदेश में शिक्षा योग्य जनसंख्या का केवल तीन प्रतिशत ही स्नातक तक पहुंचा है। यह सर्वे प्रदेश में शिक्षा पर हर साल खर्च किए जाने वाले भारी भरकम बजट पर भी सवाल खड़ा करता है। हरियाणा में शिक्षा विभाग अकेला ऐसा विभाग है जिस पर किसी भी दूसरे विभाग से ज्यादा खर्च किया जाता है। चालू वित्त वर्ष में हरियाणा सरकार ने शिक्षा पर 11,900 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान रखा था जो सरकारी विभागों में सबसे अधिक है।

टूट रहा शिक्षा हब का मिथक

हरियाणा को बीते एक दशक में शिक्षा के हब के तौर पर प्रचारित किया गया। शिक्षा के हब के तौर पर एक ऐसा मिथक खड़ा किया गया जिसने हरियाणा ही नही बल्कि देश के लाखों छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया। दरअसल शिक्षा हब का प्रचार उन प्राइवेट इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट कॉलेजों के सहारे प्रचारित किया गया जिनमें मोटी फीस तो वसूली गई लेकिन यहां से पास आऊट इंजीनियर्स को उद्योग जगत ने दस हजार माह के वेतन के योग्य भी नही समझा। युवाओं को बीटेक व एमबीए में कैरियर की संभावनाओं का सपना दिखाते हुृए 44212 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले छोटे से प्रदेश हरियाणा में 2007 से 2014 के बीच 137 इंजीनियरिंग कॉलेज,173 मैनेजमेंट कॉलेज,175 पोलीटेक्निक व 53 एमसीए कॉलेज खोले गए।

मैरिज ब्यूरो चलाने से लेकर मुर्गी फार्म मालिकों तक ने अपनी बिल्डिंगों का नवीनीकरण करके इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट कॉलेजों का लाइसेंस ले लिया। इन कॉलेजों में इंजीनियरिंग डिग्री व डिप्लोमा के करीब एक लाख सत्तर हजार व एमबीए की करीब चौदह हजार सीटें मंजूर की गईं। लेकिन सत्तर प्रतिशत ग्रामीण आबादी वाले जिस हरियाणा की ग्रामीण आबादी का तीन चौथाई हिस्सा दसवीं भी पास नही कर पाया वहां इन इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट कॉलेजों को छात्र कहां से मिलने थे। ऐसे में इन कॉलेजों के लिए दलालों का एक नया वर्ग पैदा हुआ जो बिहार,झारखंड व उत्तर-पूर्व के साथ ही नेपाल व भूटान तक से छात्रों को बरगला कर लाने लगा। फिलहाल हरियाणा में इंजीनियरिंग कॉलेजों में दलालों के लिए दस हजार से लेकर पंद्रह हजार रुपये प्रति छात्र का रेट चल रहा है।