नई दिल्ली।

जलवायु परिवर्तन के दुष्‍प्रभावों से दुनिया भर के देश चिंतित हैं। पर्यावरण और धरती के बढ़ते तापमान को लेकर चिंतित भारत जहां बार-बार पेरिस जलवायु सम्‍मलेन (सीओपी-21) के तहत हुए समझौते को लागू करने की मांग करता रहा है वहीं इसमें शामिल अमेरिका ने इससे अलग होकर सभी देशों को जोरदार झटका दिया है। इससे ग्लोबल वार्मिंग को धीमा करने के प्रयास अनिश्चितता की स्थिति में पड़ गए हैं।

इस पर नाराजगी जताते हुए विश्व के अनेक देशों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रमुख ने कहा है कि भारत और चीन जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मजबूत नेतृत्व का प्रदर्शन कर रहे हैं और पेरिस समझौते से अलग होने का अमेरिका का फैसला इन वैश्विक प्रयासों को नहीं रोक पाएगा।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमेन्युएल मैक्रान ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते से अलग होकर ऐतिहासिक भूल की है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिकों एवं नवोन्मेषियों को फ्रांस में आकर काम करने के लिए आमंत्रित किया है। उन्‍होंने एक टीवी साक्षात्कार में कहा,  ट्रंप ने अपने देश के हितों के चक्‍कर में भूल की है जो पृथ्वी ग्रह के हितों के लिए बड़ी गलती है।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि ऐसा करके ट्रंप प्रशासन उन मुट्ठी भर राष्ट्रों में शामिल हो गया है जिन्होंने भविष्य को नकारा है। जो राष्ट्र पेरिस समझौते में बने रहेंगे वे देश,  नौकरियों और उद्योगों का लाभ उठाएंगे। मेरा मानना है कि अमेरिका को इस समझौते में आगे होना चाहिए।

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रुदू ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को फोन करके अमेरिका को पेरिस समझौते से अलग करने के उनके फैसले पर निराशा जताई है। उनकी बातचीत के मुताबिक, त्रुदू ने जलवायु परिर्वतन की समस्या का निदान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ काम करते रहने की अपनी मंशा से भी उन्हें अवगत करा दिया।

बता दें कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग करने के फैसले की घोषणा की और कहा कि पूर्ववर्ती ओबामा प्रशासन के दौरान 190 देशों के साथ किए गए इस समझौते पर फिर से बातचीत करने की जरूरत है। चीन और भारत जैसे देशों को पेरिस समझौते से सबसे ज्यादा फायदा होने की दलील देते हुए ट्रंप ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर समझौता अमेरिका के लिए अनुचित है क्योंकि इससे उद्योगों और रोजगार पर बुरा असर पड़ रहा है।