लखनऊ।

वैसे तो 11 मार्च को चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चल पाएगा कि यूपी की जनता किसे सरकार चलाने का मौका देगी। फिर भी एक सवाल राजनीतिक दलों के अलावा वोटरों के बीच भी चर्चा का विषय रहा कि बीजेपी को अगर जनता का समर्थन मिलता है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा?

केशव प्रसाद मौर्य: बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित पार्टी के बड़े नेता इंटरव्यू और भाषणों में कहते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री साफ-सुथरी छवि वाला और उत्तर प्रदेश से जुड़ाव रखने वाला होगा। इस बात पर केशव प्रसाद मौर्य फिट बैठते हैं। केशव पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं और उनका संघ से भी जुड़ाव रहा है।

सरप्राइज चेहरों में मनोज सिन्हा विकल्प: यूपी के मुख्यमंत्री पद के लिए मनोज सिन्हा चौंकाने वाले नाम हो सकते हैं। गृहमंत्री राजनाथ सिंह के करीबी मनोज सिन्हा उस पूर्वांचल से आते हैं, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे ज्यादा फोकस रहता है। पीएम बतौर रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के काम की तारीफ भी कर चुके हैं।

योगी आदित्यनाथ: विधानसभा चुनाव से पहले तक आदित्यनाथ पूर्वांचल तक ही सिमित थे, लेकिन इस बार पार्टी ने उनसे पश्चिमी यूपी में भी जमकर प्रचार कराया है। बीजेपी के स्टार प्रचारक के रूप में उन्होंने सबसे ज्यादा रैलियां की हैं। उन्होंने हर भाषण में वही शब्द कहे, जिससे वोटों का धुर्व्रीकरण हो सके। अगर बीजेपी जीतती है तो इसका काफी श्रेय आदित्यनाथ को भी जाएगा और वे मुख्यमंत्री के दावेदार हो सकते हैं।

दिनेश शर्मा: लखनऊ के राजनीतिक गलियारों में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के लिए दिनेश शर्मा के नाम की भी चर्चा है। लखनऊ के मेयर व बीजेपी नेता दिनेश शर्मा यूपी के उन गिने चुने नेताओं में हैं, जिन्हें पार्टी के अच्छे दिनों में सबसे ज्यादा इनाम मिला। सरकार बनने के तुरंत बाद पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की कुर्सी मिली। अमित शाह उन्हें कितना पसंद करते हैं इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि उन्हें पीएम मोदी के ही राज्य गुजरात का पार्टी प्रभारी बनाया गया।

ये दो पुराने चेहरे भी हो सकते हैं मोदी-शाह की पसंद: अगर बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री पद के लिए पुराने चेहरे पर दांव लगाने की सोचेगी तो उनके सामने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और उमा भारती का नाम सबसे आगे होगा। हालांकि इसकी कम ही संभावना है। इसकी मुख्य वजह यह है वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में राजनाथ सिंह शायद ही राज्य की राजनीति में लौटना चाहेंगे। वहीं पार्टी में नई जरनेशन के कार्यकर्ता शायद ही उमा भारती को स्वीकार पाएं।