वीरेंन्द्र भट्ट।

स्वामी प्रसाद मौर्य की अगली रणनीति को लेकर अब संशय नहीं है। मौर्य अपना राजनीतिक दल या मोर्चा बना कर बड़े दलों से सौदेबाजी करेंगे। वह अपनी अगली रणनीति का खुलासा जुलाई के पहले हफ्ते में कर सकते हैं। उनके निकटवर्ती लोगों का कहना है कि मौर्य अपने सभी विकल्प खुले रखना चाहते हैं। राष्ट्रीय निषाद संघ के अध्यक्ष लौटन राम निषाद का कहना है, ‘वर्तमान राजनीतिक हालात में सपा के साथ जाना घाटे का सौदा है और वो अंतत: बीजेपी से ही परोक्ष तालमेल करेंगे क्योंकि मौर्य बसपा के मुस्लिम वोट बैंक में भी सेंध लगाना चाहते हैं।’ राजनीतिक जानकारों का मत है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु आदि सभी राज्यों में और विशेषकर उत्तर प्रदेश में, गैर यादव पिछड़ी जाति के नेताओं का अपनी जाति के संख्या बल के आधार पर ही बड़े राजनीतिक दलों से सौदेबाजी करने का इतिहास रहा है। जाति आधारित छोटे दल अपने मतों के बल पर ज्यादा सीट जितवा तो नहीं सकते लेकिन बीजेपी जैसे बड़े दलों को नुकसान जरूर पहुंचा सकते हैं। 1999 में मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के बाद कल्याण सिंह बागी हो गए थे और उन्होंने अपना दल बना लिया था- राष्ट्रीय क्रांति पार्टी’। 2002 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह की पार्टी तो केवल दो सीट जीत सकी लेकिन बीजेपी को चालीस सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा था। छोटे दलों से तालमेल का महत्व और लाभ बीजेपी 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश और बिहार में देख चुकी है। अपना दल जैसे छोटे दल के दो सांसद बीजेपी से गठबंधन के कारण ही जीते और बिहार में उपेन्द्र कुशवाहा। उत्तर प्रदेश में तीन-चार जिलों में प्रभाव रखने वाले भारतीय समाज पार्टी से बीजेपी की बात पक्की हो चुकी है। स्वामी प्रसाद के दल या मोर्चे से यदि बीजेपी की बात बन जाती है तो उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पहली बार गैर यादव अति पिछड़े और पिछड़ी जातियों का एक सशक्त गठबंधन ताल ठोंकेगा। सेंटर फॉर स्टडी आॅफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक अनिल कुमार वर्मा का मत है कि यदि बीजेपी के नेतृत्व में गैर यादव पिछड़ी जातियों का मोर्चा बनता है तो यह प्रदेश की राजनीति में यादवों के प्रभुत्व के अंत की शुरुआत होगी।
स्वामी प्रसाद मौर्य किसी भी दल के साथ जाएं, बसपा से अलग होकर उन्होंने अति पिछड़ी जाति की राजनीति में नया जोश भर दिया है। इस वर्ग के नेताओं का मत है कि बीजेपी ने केशव मौर्य को अध्यक्ष बना कर इस वर्ग की राजनीति को बल दिया है और स्वामी प्रसाद मौर्य के अलग होने से अति पिछड़े वर्ग को प्रदेश की राजनीति में अब एक वोट बैंक के रूप में पहचान मिलेगी। बसपा के भूतपूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान ने कहा- ‘हमारे वर्ग के लोग लगातार सपा या बसपा को वोट देते आ रहे हैं लेकिन कभी इस वर्ग को दोनों दलों ने इस बात का श्रेय नहीं दिया कि वो हमारे वोट के बल पर जीते और ना ही बीजेपी के अलावा किसी अन्य दल ने अति पिछड़े वर्ग को अपने एजेंडा में प्रमुख रूप से शामिल किया। 2007 में हमारे लोगों ने सपा के गुंडाराज के खिलाफ बसपा को वोट दिया लेकिन मायावती ने सारा श्रेय अपनी सोशल इंजीनियरिंग की नीति को दिया और ब्राह्मणों के सिर अपनी जीत का सेहरा बांध दिया। 2012 में बसपा के भ्रष्टाचार से तंग होकर हम लोगों ने सपा को वोट दिया तो मुलायम सिंह यादव ने अपने दल की जीत के लिए मुसलमानों को शुक्रिया कहा क्योंकि सपा के 40 विधायक मुस्लिम थे। दोनों दलों को लगातार वोट देने के बाद भी आज तक अति पिछड़े वर्ग की कोई पहचान नहीं बन पायी है। आज हालत यह है कि बिना मांगे यह वर्ग बीजेपी की और जा रहा है ।
पूर्व बसपा सांसद ने कहा कि 2002 में राजनाथ सिंह ने चुनाव से पूर्व सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू किया इस कारण बीजेपी को उसका लाभ नहीं मिल सका था। 2017 के चुनाव से पहले बीजेपी को अति पिछड़े वर्ग का विश्वास अर्जित करने के लिए स्पष्ट घोषणा करनी चाहिए कि यदि वो सत्ता में आई तो सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू करेगी।
मोस्ट बैकवर्ड एसोसिएशन आॅफ इंडिया नाम की पार्टी के अध्यक्ष डॉ. राम सुमिरन विश्वकर्मा कहते हैं, ‘देर से ही सही आज सभी दल अति पिछड़ा वर्ग की बात कर रहे हैं। इससे मोस्ट बैकवर्ड की प्रदेश की राजनीति में पहचान बन रही है। यदि इस वर्ग को राजनीतिक नेतृत्व मिल जाए तो निश्चित तौर पर प्रदेश की राजनीति में यादवों का प्रभुत्व समाप्त हो सकता है। पिछले दस वर्षांे में उनतीस-तीस फीसदी वोट के आधार पर सपा-बसपा की सरकारें बनती रही हैं। आज मोस्ट बैकवर्ड का सपा, बसपा दोनों से मोहभंग हो चुका है और यदि बीजेपी अपने एजेंडा में मोस्ट बैकवर्ड को स्थान देती है तो निश्चय ही उसे 2017 के चुनाव में इसका लाभ मिलेगा।
राष्ट्रीय निषाद संघ के अध्यक्ष लौटन राम निषाद ने कहा कि केशव मौर्य के बीजेपी अध्यक्ष बनने और स्वामी प्रसाद मौर्य के बसपा से अलग होकर नया दल या मोर्चा बनाने की घोषणा से अति पिछड़े वर्ग को राजनीति को बहुत ताकत मिली है। उन्होंने कहा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में लड़ाई यादव बनाम अन्य की होने जा रही है। पुलिस थाना, चौकी, तहसील हर स्तर पर यादवों के राज से जनता त्रस्त है। गत चार सालों में सपा ने अति पिछड़े वर्ग के लिए सिर्फ वादे किए। ठोस कुछ भी नहीं किया। इसलिए यह वर्ग सपा से बेहद नाराज है। निषाद कहते हैं, ‘केशव मौर्य और स्वामी प्रसाद मौर्य के उभरने से इस वर्ग को नयी ताकत मिली है और मेरा स्पष्ट मत है कि स्वामी प्रसाद को बीजेपी के साथ ही तालमेल करना चाहिए क्योंकि सपा में उनको कुछ नहीं मिलने वाला है।’
2000-2002 में राजनाथ सिंह की सरकार और 2007-2012 के बीच मायावती सरकार में मंत्री रह चुके अति पिछड़े वर्ग के नेता फागु चौहान अब फिर बीजेपी में हैं। उनका कहना है की नौ जून को मऊ जिले की आम सभा में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट घोषणा की थी कि बीजेपी के सत्ता में आने पर सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू किया जाएगा और इसमें किसी भी प्रकार की शंका की गुंजाइश नहीं है। हमारा प्रदेश अध्यक्ष भी इसी वर्ग से है। बीजेपी कोई नई बात नहीं कर रही है। सामाजिक न्याय को बिहार में कर्पूरी ठाकुर और नीतीश कुमार की सरकार ने लागू किया है और आज बिहार में मल्लाह, निषाद, बाँध जातियों के लोग भी, सहकारिता, पंचायत, नगर पालिका आदि पदों पर निर्वाचित होते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में इस वर्ग के लोग इन पदों पर ढूंढे नहीं मिलते।
फागु चौहान ने कहा कि इस वर्ग के लोग कभी सपा तो कभी बसपा को वोट देते आ रहे हैं लेकिन प्रदेश की राजनीति में हमारी स्पष्ट पहचान नहीं बन पाई है। बीजेपी ने केशव मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बना कर काफी हद तक पहचान की समस्या को हल करने का प्रयास किया है। बीजेपी नेता ने कहा कि पार्टी आश्वस्त है कि 2017 में अति पिछड़े वर्ग का भरपूर समर्थन पार्टी को मिलेगा। 