मथुरा शहर के जवाहर बाग को बाबा जय गुरुदेव के कथित चेले रामवृक्ष यादव और उसके समर्थकों के अवैध कब्जे से खाली करवाने में हिंसा और दो पुलिस अफसरों सहित 27 लोगों की मौत को कैसे देखते हैं?

 बहुत ही गैर पेशेवर तरीके से आॅपरेशन को अंजाम दिया गया। 250 एकड़ से अधिक के पार्क में तीन हजार से भी ज्यादा लोग जमा थे। पार्क की बिजली-पानी की आपूर्ति काट देनी चाहिए थी। रोज ही रामवृक्ष के लोग पार्क से बाहर आते-जाते थे। अनेकों वाहन अन्दर जाते थे। उनको गिरफ्तार किया जा सकता था या सरेंडर करने को विवश किया जा सकता था। यह बहुत मुश्किल काम नहीं था। इस काम के लिए इंटेलिजेंस भी जरूरी थी। पार्क के चारों ओर अनेक इमारतें हैं, सरकारी कार्यालय हैं। वहां से उन पर नजर रखकर जरूरी सूचना जुटाई जा सकती थी कि कितने लोग हैं और उनकी क्या तैयारी है? यदि पुलिस कार्यवाही करती है तो रामवृक्ष और उसके समर्थकों की क्या प्रतिक्रिया होगी? यदि पेशेवर ढंग अपनाया जाता तो दो-तीन दिन में पुलिस आराम से पार्क को खाली करवा सकती थी। लेकिन पुलिस की कमी और राजनीतिक दखलदांजी के चलते मथुरा की घटना 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुए आॅपरेशन ब्लू स्टार का छोटा संस्करण बन गई।

क्या पुलिस पर राजनीतिक दबाव था और जन हानि से बचा जा सकता था?

  निश्चित तौर पर खून खराबे से बचा जा सकता था। घटनाक्रम से स्पष्ट है की पुलिस को काम करने की छूट नहीं थी और किसी बड़े आदमी का दबाव था। पहला प्रश्न तो यह है कि सरकारी जमीन पर एक तथाकथित संगठन के व्यक्ति को अपने समर्थकों के साथ दो साल तक क्यों जमे रहने दिया गया। उस ताकत का पता लगाया जाना चाहिए जो रामवृक्ष यादव को सरंक्षण दे रही थी। उच्च राजनीतिक स्तर के सीधे दखल बिना यह अवैध कब्जा मुमकिन ही नहीं था। सरकारी जमीन रामवृक्ष यादव को लीज पर देने की तैयारी थी। मथुरा जिला प्रशासन ने सरकार को लीज पर जमीन आवंटित करने संबंधी अपनी रिपोर्ट भी भेज दी थी। यह सब कैसे हो रहा था? जाहिर है कि यह सरकार में बैठे किसी बड़े आदमी के सरंक्षण के बिना संभव नहीं था। जहां तक पुलिस अफसरों की मौत का प्रश्न है तो मैंने कहा कि पुलिस को मालूम होना चाहिए था कि पार्क में काबिज लोगों के पास कितने और किस किस्म के हथियार हैं। मथुरा के एसपी की मौत तो पुलिसकर्मियों की कायरता है जो अपने अफसर को पिटता देख भाग खड़े हुए। इस घटना की भी जांच होनी चाहिए।

यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का दावा है कि पुलिस ने तैयारी के बगैर कार्यवाही की जिसके कारण यह दुखद घटना हुई।

  मुख्यमंत्री की बात ठीक है पर वो यह भी तो बताएं कि ऐसा हुआ क्यों और कैसे? पुलिस पर सारा दोष थोप देने से तो बात नहीं बनेगी। मुख्यमंत्री को उन कारणों को भी स्पष्ट करना चाहिए कि पुलिस ने बिना तैयारी के कार्यवाही क्यों की और उत्तर प्रदेश में ही ऐसा बार बार क्यों होता है। मथुरा कोई पहली घटना नहीं है। उत्तर प्रदेश में सड़क जाम वगैरह किसी मुद्दे पर जनता का आन्दोलन हो या मजदूर आन्दोलन हो, पुलिस का रेस्पांस भीड़ वाला क्यों होता है। मथुरा की घटना के तीन स्पष्ट कारण दिखाई पड़ते हैं। पहला- इंटेलिजेंस की विफलता, दूसरा- राजनीतिक हस्तक्षेप और तीसरा- पुलिस में ट्रेनिंग का घोर अभाव। भारतीय सेना में एक प्रचलित कहावत है कि यदि ट्रेनिंग के दौरान पसीना बहाते हैं तो युद्ध में खून कम बहाना पड़ता है। सेना और पुलिस में ट्रेनिंग एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। उत्तर प्रदेश में 35-36 साल की नौकरी में चार-छह माह की ट्रेनिंग हो गई तो बस बहुत हो गया। यदि पुलिस को चुस्त दुरुस्त रखना है तो हर दो-तीन साल में ट्रेनिंग होनी चाहिए।

उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जावेद अहमद का कहना है कि पुलिस रेकी यानी घटनास्थल का जायजा लेने गई थी।

  रेकी तो कई तरह से होती है। मूलत: यह एक सामरिक कार्यवाही होती है। जो भी हो मथुरा में बहुत ही खराब और गैर पेशेवर तरीके से काम किया गया। उत्तर प्रदेश पुलिस को इस घटना से सबक लेना चाहिए। कानून के अनुसार जिले के पुलिस अधिकारी जवाहर बाग को खाली कराने के लिए कार्यवाही का निर्णय लेने में सक्षम थे। उनको प्रदेश मुख्यालय की ओर देखने की जरूरत नहीं थी। पार्क खाली करवाने का मामला दो साल तक कैसे टलता रहा? जाहिर है कोई बड़ा राजनीतिक आदमी इस फैसले को नहीं होने दे रहा था।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज से जांच कराने का ऐलान किया है। क्या इस जांच की कोई विश्वसनीयता है?

सिद्धांतत: यह अच्छी बात है। लेकिन बतौर एक नागरिक और एक पूर्व पुलिस अधिकारी मैं इससे सहमत नहीं हूं क्योंकि हमारा पूर्व का अनुभव बहुत खराब रहा है। इस तरह की जांच में केवल लीपापोती होती है और जांच करने वाला केवल अपना कार्यकाल बढ़ाता है और तीन महीने का काम तीन साल में करते हैं। यदि प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की सलाह से किसी वर्तमान जज से जांच कराई होती तो बेहतर होता और उसकी विश्वसनीयता होती। वर्तमान जांच से मैं बहुत आश्वस्त नहीं हूं।

मथुरा की घटना में राजनीतिक दबाव को आप कितना जिम्मेदार मानते हैं?

राजनीतिक दबाव निश्चित तौर पर सबसे महत्वपूर्ण कारण है लेकिन इंटेलिजेंस की विफलता और ट्रेनिंग पर भी बहुत ध्यान देने की जरूरत है। पुलिस से गलतियां हुई हैं। अब लीपापोती नहीं होनी चाहिए। जवाबदेही तय होनी चाहिए और दोषी लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सजा दी जानी चाहिए वरना इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी। एसपी मुकुल द्विवेदी का गनर अपने अफसर को छोड़कर भाग गया। यह गंभीर मामला है। उत्तर प्रदेश में पुलिस जातियों में बंट गई है। एक महत्वपूर्ण जिले के वरिष्ठ पुलिस कप्तान का तबादला हुआ। वह आजकल की ताकतवर जाति के थे तो वो अड़ गए की एक खास जिले में ही जाएंगे। उस जिले में पंचायत चुनाव चल रहा था। सरकार ने एक माह इंतजार किया और उस अधिकारी को मनचाहे जिले में तैनाती मिली।