amit shah with rawatभारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने हजारों कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में राज्य की त्रिवेंद्र रावत सरकार को सौ में पूरे सौ नंबर देते हुए अपने कामकाज के बलबूते लोकसभा चुनाव में वोट मांगने की अपील की. शाह की अपील न केवल त्रिवेंद्र के खिलाफ उपज रहे असंतोष को खत्म करेगी, बल्कि यह भाजपा की रीति-नीति में बदलाव का एक संकेत भी है. शाह बीती दो फरवरी को देहरादून के ऐतिहासिक परेड ग्राउंड में देहरादून और टिहरी लोकसभा क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे. शाह ने देश की मोदी सरकार और राज्य की त्रिवेंद्र रावत सरकार को एक ही तराजू में तौला. उन्होंने घोषणा की कि मोदी सरकार या त्रिवेंद्र सरकार ने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे भाजपा को शर्मिंदा होना पड़े. कार्यकर्ता शान से अपने क्षेत्र में जाएं और मोदी एवं त्रिवेंद्र के नाम पर वोट मांगें. जिस समय शाह अपना भाषण दे रहे थे, मंच या उसके इर्द-गिर्द दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के साथ ही सतपाल महाराज और प्रकाश पंत जैसे नेता भी मौजूद थे, जो किसी न किसी रूप में मुख्यमंत्री पद के दावेदार रह चुके हैं. साल 2017 में जब भाजपा को उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बहुमत मिला, तो सतपाल महाराज मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार बनकर सामने आए. कांग्रेस से आया समझ कर सतपाल महाराज खारिज हुए, तो प्रकाश पंत ने ताल ठोंक दी. संसदीय परंपराओं के अच्छे जानकार प्रकाश पंत आखिरी तक मैदान में डटे रहे. लेकिन, अमित शाह के साथ काम करने और मोदी का करीबी होने के नाते त्रिवेंद्र रावत की दावेदारी पंत पर भारी पड़ गई. त्रिवेंद्र मुख्यमंत्री बने और प्रकाश पंत एवं सतपाल महाराज को कैबिनेट मंत्री के पद से संतुष्ट होना पड़ा. इन दोनों नेताओं की मौजूदगी में शाह ने त्रिवेंद्र रावत की पीठ थपथपाई, तो यह कोई अचानक घटी घटना नहीं थी. प्रकाश पंत एवं सतपाल महाराज ही क्यों, मंच पर कांग्रेस से आए पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा एवं भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी मौजूद थे. यह वही निशंक हैं, जिनकी चाय पार्टी ने पहली बार संकेत दिया था कि त्रिवेंद्र राज में भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. ऐसे में, अमित शाह की तारीफ के क्या मायने हैं, यह समझने के लिए सात-आठ महीने पीछे की सियासत पर नजर डालनी होगी.

जून 2018 में शिक्षिका उत्तरा बहुगुणा पंत को लेकर उत्तराखंड में सियासी भूचाल आ गया था. मुख्यमंत्री पर अमर्यादित आचरण के आरोप लगे. उसी दौरान खानपुर के भाजपा विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन ने सरकार और संगठन के खिलाफ बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिए. इन सभी से रावत निजात पाते, उससे पहले लक्सर के भाजपा विधायक संजय गुप्ता ने उन पर आरोपों की झड़ी लगा दी और उन्हें एक समुदाय विशेष का तुष्टिकरण करने वाला नेता करार दिया. हालांकि, खानपुर और लक्सर के विधायकों को अनुशासनहीनता का नोटिस थमाया गया, लेकिन यह सब मुख्यमंत्री और उनकी प्रशासनिक क्षमता के खिलाफ जाने लगा. ऐसे में, जुलाई 2018 में एक दिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट दिल्ली तलब हो गए, जहां प्रदेश प्रभारी श्याम जाजू और राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश के साथ उनकी बैठक हुई. बैठक में अजय भट्ट ने पार्टी कार्यकर्ताओं को सरकार में जगह देने यानी उन्हें निगमों, समितियों एवं आयोगों में समायोजित करने की शर्त रखी. यही नहीं, उन्होंने मंत्रियों के दो खाली पद भी जल्द भरने की मांग की. बैठक के बाद अजय भट्ट ने बयान जारी किया कि भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को सरकार में शीघ्र जगह दी जाएगी. ऐसा लगने लगा कि मुख्यमंत्री ने संगठन की यह शर्त मानकर अपने लिए जीवनदान मांग लिया है. लेकिन, ऐसा था नहीं. रावत जब दिल्ली से लौटे, तो उन्होंने मंत्री पद देने या दर्जाधारी बनाने जैसी किसी भी संभावना को खारिज कर दिया. यही नहीं, उन्होंने यह कहकर चौंका दिया कि उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है. रावत ने यह साफ नहीं किया कि साजिश का स्तर क्या है, लेकिन कयास लगाया गया कि उन्हें सत्ता से बेदखल करने का प्रयास हो रहा है. मुख्यमंत्री को सत्ता से बेदखल कौन कर सकता था? साथ के ही लोग. इस सवाल पर रावत हमेशा चुप रहे.

लेकिन, सवाल तो सवाल होता है. मुख्यमंत्री का यह कहना कि उसके खिलाफ साजिश हो रही है, एक बड़ी सियासी घटना थी. उसके बाद से ही मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर सवाल खड़े किए जाने लगे. यह भी कयास लगाया जाने लगा कि अगर त्रिवेंद्र की कुर्सी जाती है, तो कौन होगा अगला मुख्यमंत्री. अगले मुख्यमंत्री के रूप में कभी अनिल बलूनी तो कभी रमेश पोखरियाल निशंक का नाम लिया जाने लगा. प्रकाश पंत तो अधिकृत दावेदार हैं ही. इस बीच भाजपा के कुछ नेता उत्तराखंड के मामलों में अतिरिक्त सक्रियता दिखाने लगे. इससे कयासों को बल मिलने लगा. लेकिन, बीती दो फरवरी को ऐसे नेताओं के बीच अमित शाह ने इशारे में यह साफ कर दिया कि फिलहाल त्रिवेंद्र की कुर्सी को कहीं से कोई खतरा नहीं है. इससे पहले इंवेस्टर्स समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रावत की तारीफ कर गए थे. यानी भाजपा के उन नेताओं को धैर्य रखना होगा, जिनकी नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है. उन्हें अपनी काबिलियत साबित करनी होगी और त्रिवेंद्र को असफल. यह मुश्किल-सा काम है, क्योंकि जिन त्रिवेंद्र से मोदी खुश हैं और शाह भी, उनका कौन बाल बांका कर लेगा? अमित शाह जैसे ही देहरादून से रवाना हुए, त्रिवेंद्र भी दिल्ली के लिए चल पड़े. वापसी के बाद वह पहले से अधिक आत्मविश्वास से भरे दिखाई पड़ रहे हैं.