केंद्र सरकार की श्रमिक विरोधी नीतियों के खिलाफ शुक्रवार को बुलाई गई ग्यारह केंद्रीय श्रमिक संगठनों सहित कई संगठनों की देशव्यापी हड़ताल सफल रही। श्रमिक संगठनों ने दावा किया कि इस हड़ताल में देशभर के करीब 18 करोड़ श्रमिक शामिल हुए। देशभर के बैंकों, डाक घरों, बीमा कार्यालयों सहित अन्य सरकारी दफ्तरों, कारखानों सहित परिवहन व्यवस्था पर इस महाहड़ताल का व्यापक असर देखा गया। इससे आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। ट्रेड यूनियनों ने मोदी सरकार के आर्थिक सुधारों के विरोध, मजदूरी बढ़ाने सहित विभिन्न मांगों को लेकर यह हड़ताल बुलाई थी। सार्वजनिक उपक्रमों को बंद करने की योजना का भी श्रमिक संगठन विरोध कर रहे हैं। सुबह से ही जगह-जगह बंद के समर्थन में जुलूस निकाले गए।

ट्रेड यूनियनों की मांग

सरकार का कहना है कि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए यह श्रम सुधार आवश्यक हैं लेकिन ट्रेड यूनियनों का मानना है कि सरकार ने श्रमिकों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया है। बैंकिंग, टेलीकम्युनिकेशन, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की दिनों दिन खराब होते हालात पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया है। श्रम संगठन सरकार की पेंशन नीति का भी विरोध कर रहे हैं। सीटू का आरोप है कि मोदी सरकार श्रम कानूनों में सुधार की आड़ में इन कानूनों को पूंजीपतियों के हित में बदलने जा रही है। हड़ताल होने का सबसे बड़ा कारण न्यूनतम मजदूरी है। श्रमिक संगठनों की मांग है कि इसे कम से कम 18 हजार प्रति माह किया जाए। इसके अलावा असंगठित क्षेत्र के लोगों समेत सभी श्रमिकों के लिए पेंशन कम से कम 3000 रुपया मासिक किया जाए।

ट्रेड यूनियनों का मानना है देश में निजीकरण की प्रक्रिया के तेज होने से मजदूरों और कर्मचारियों की नौकरियों पर बुरा असर पड़ेगा। इससे मजदूर वर्ग में असुरक्षा का माहौल बनेगा। रेल यूनियनें और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ समर्थित भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) इस हड़ताल में शामिल नहीं थे। ट्रेड यूनियनों के इस ‘भारत बंद’ का केरल में खासा असर रहा। केरल पूरी तरह ठप दिखा। कर्नाटक में भी बंद का असर रहा। यहां स्कूल-कॉलेज भी बंद रहे। दिल्ली और मुंबई में सार्वजनिक परिवहन और बिजली एवं जलापूर्ति जैसी जरूरी सेवा सामान्य ढंग से चली मगर अॉटो व टैक्सी यूनियनों के हड़ताल में शामिल होने से यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ा।

इन संगठनों की आपत्ति बीमा और रक्षा जैसे क्षेत्रों में विदेशी निवेश के नियमों में ढील देने को लेकर भी है। ट्रेड यूनियन सरकारी पेंशन फंड और स्‍टॉक मार्केट में अधिक पैसा लगाने के सरकार के दिशानिर्देशों का भी विरोध कर रही हैं। इनका कहना है कि संगठन बनाने और हक की आवाज बुलंद करने को भी न सिर्फ सीमित किया जा रहा है बल्कि उसे खत्म करने की भी तैयारी है। ट्रेड यूनियन सरकार से नई श्रमिक और निवेश नीतियों में बदलाव की भी मांग कर रहे हैं। श्रमिक संगठन कर्मचारियों की संख्या कम करने, कॉन्ट्रैक्ट पर काम देने, निजीकरण जैसी केंद्र की नीतियों का भी विरोध कर रहे हैं।

सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने सोशल मीडिया ट्विटर पर सिलसिलेवार लिखा, ‘आज की राष्ट्रव्यापी हड़ताल श्रमिकों (संगठित और असंगठित), किसानों , बेरोजगारों और हममें से हरेक के लिए है।’ उन्होंने श्रमिक संगठनों की ओर से की गयी 12 मांगों को भी दोहराया। इन मांगों में संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी कम से कम 18,000 रुपए मासिक (करीब 692 रुपए दैनिक) किया जाना भी शामिल है। एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा कि जब नियोक्ता के मुनाफे की सीमा तय नहीं है तो बोनस, भविष्य निधि और ग्रेच्युटी की सीमा निश्चित क्यों की गयी है।