जयललिता की मौत के बाद एआईएडीएमके के भविष्य पर प्रश्नवाचक चिह्न तो लगा ही हुआ है?’ सेंट्रल यूनिवर्सिटी आॅफ तमिलनाडु में मास कम्युनिकेशन के हेड आॅफ डिपार्टमेंट डॉ. फ्रांसिस पी बर्क्ले की यह चिंता पूरी तरह से जायज है। जायज इसलिए है क्योंकि जयललिता जैसा दूसरा करिश्माई व्यक्तित्व और ताकतवर नेता पार्टी के पास नहीं है। डॉ. फ्रांसिस जयललिता के कद का दूसरा नेता न होने की वजह भी जयललिता का अतिताकतवर होना मानते हैं। वह कहते हैं, ‘सत्ता को अपनी मुट्ठी में भींचकर रखने वाली जयललिता ने कभी दूसरी पंक्ति की लीडरशिप को तैयार होने ही नहीं दिया। पार्टी के भीतर जयललिता को देवी की तरह पूजा जाता था। उनकी चरणवंदना हर पार्टी कार्यकर्ता करता था। सच तो यह है कि जयललिता खुद की पूजा करवाना पसंद करती थीं। लेकिन उनके बाद पार्टी की कमान तो किसी के हाथों जानी ही थी। ओ. पन्नीरसेल्वम भले ही मुख्यमंत्री बन गए हों लेकिन असल कमान जयललिता की सबसे करीबी शशिकला नटराजन के हाथों में ही रहेगी। ओ पन्नीरसेल्वम राजनीतिक रूप से मजबूत व्यक्ति नहीं हैं। वह शशिकला के हाथों की कठपुतली बने रहेंगे। जयललिता की मौत के बाद शशिकला के तेवर देखेंगे तो साफ हो जाएगा कि अब वे एआईएडीएमके की लगाम अपने हाथों में लेने को तत्पर हैं। या यों कहें कि वह लगाम अपने हाथों में ले चुकी हैं।’

डॉ. फ्रांसिस ने साफ कहा, ‘बीमारी की हालत में शशिकला के रिश्तेदारों का उनके आसपास मंडराना इस बात का सुबूत है कि शशिकला खुद को मजबूत करने की प्रक्रिया में लग गई हैं। जब जयललिता बीमार पड़ीं तो शशिकला ही नहीं उनके सारे रिश्तेदार उन्हें देखने आए। जयललिता के आसपास शशिकला के रिश्तेदारों का जमघट यह बताता है वह अब खुद को जयललिता की जगह स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। ये वही रिश्तेदार हैं जिन्हें दिसंबर 2011 में पार्टी से बाहर कर दिया गया था। शशिकला और उनके पति को भी इनके साथ निकाला गया था। जयललिता को संदेह हो गया था कि ये लोग उनके खिलाफ और सत्ता हथियाने की साजिश कर रहे हैं। मार्च 2012 में शशिकला को तो जयललिता ने पार्टी में वापस लिया लेकिन रिश्तेदारों से दूरी बना ली। लेकिन यही रिश्तेदार जिन्हें जयललिता अपनी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा चुकीं थीं। इतने साल बीतने के बाद भी उन्हें दोबारा पार्टी में शामिल नहीं किया गया था। और फिर जयललिता की बीमारी और मौत के बाद इन लोगों की बढ़ी सक्रियता के मायने राजनीतिक हैं। शशिकला अब इन लोगों के साथ मिलकर एआईएडीएमके में अपना कद ऊंचा करने की कोशिश करेंगी।’

हालांकि यह डॉ. फ्रांसिस यह भी कहते हैं, ‘शशिकला की लाख कोशिशों के बाद भी वह जयललिता का कद नहीं पा पाएंगी। जनता में वह एक भ्रष्ट महिला के रूप में जानी जाती हैं। यहां की जनता के बीच उन्हें और उनके रिश्तेदारों को मन्नारगुड़ी माफिया के रूप में जाना जाता है। उन्हें तमिल जनता पसंद नहीं करती। पर पैसे और पॉवर के जरिए वह पार्टी में दबदबा बनाएंगी। वही सबसे ज्यादा जयललिता के करीब रही हैं, इसलिए वह इस मौके का फायदा उठाने में लग गई हैं। वह जयललिता के प्रभाव और उनकी विश्वासपात्र होने का लाभ उठाने से बिल्कुल नहीं चूकेंगी।’

क्या शशिकला पार्टी को खात्मे की तरफ ले जाएंगी? इस सवाल के जवाब में डॉ. फ्रांसिस कहते हैं, ‘यह तो कहना अभी जल्दबाजी होगी मगर पार्टी का भविष्य अब दांव पर है। प्रश्नचिह्न तो लग ही चुका है। अभी हाल ही में एआईएडीएमके के नेता शेखर रेड्डी के घर से आयकर छापेमारी में बड़ी मात्रा में सोना बरामद हुआ। रेड्डी शशिकला और ओ. पन्नीरसेल्वम के बेहद करीबी हैं। ऐसे में यह तो तय है कि शशिकला और उनके करीबी एवं रिश्तेदार पार्टी को भ्रष्टाचार की तरफ ले जाएंगे। पार्टी का डिमोशन होना तय है।

जयललिता की आत्मकथा लिखने वाली लेखिका और पत्रकार वासंती ज्यादा कुछ तो नहीं कहतीं पर यह साफ कहती हैं, ‘शशिकला पार्टी पर अपना प्रभाव जमाने की पूरी कोशिश करेंगी। पार्टी के भीतर भी उन्हें मानने वालों की कमी नहीं है। जयललिता की करीबी होने के कारण पार्टी में उनके लोग भी हैं। हां, लेकिन तमिलनाडु की जनता उन्हें अपना नेता नहीं स्वीकारेगी। जयललिता की जगह जनता उन्हें कभी नहीं देगी। उनका कद जयललिता के बराबर न है और न कभी हो सकता है। मगर वह पार्टी और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच अपना प्रभुत्व स्थापित करने की हर मुमकिन कोशिश करेंगी। जयललिता के नाम और उनके करीबी होने का पूरा फायदा उठाएंगी। क्योंकि यह सच है कि शशिकला से ज्यादा जयललिता ने किसी को भी अपने करीब नहीं आने दिया।’

जयललिता की मौत के बाद तमिल राजनीति में एक बड़ा फर्क आना तय है। पहला फर्क तो आएगा कि अब राजनीति दो दलों एआईएडीएमके और डीएमके तक सीमित न रहकर दूसरे दलों तक भी पहुंचेगी। क्योंकि जयललिता के बाद उनकी पार्टी डीएमके को चुनौती देने में उनकी पार्टी सक्षम नहीं दिखाई पड़ती। दूसरी बात यह कि उनकी जगह उनकी पार्टी में कौन लेगा? इसका जवाब है, शशिकला। हां यह अलग बात है कि शशिकला को तमिल जनता जयललिता की जगह बिल्कुल भी नहीं देगी। न खुद शशिकला जयललिता का कद पाने में सक्षम और काबिल हैं। पर मजबूरी यह है कि दूसरा विकल्प जयललिता ने खुद ही नहीं छोड़ा। जयललिता ने जिंदा रहते कभी पार्टी के भविष्य की तैयारी नहीं की। उन्होंने दूसरी पंक्ति की लीडरशिप को कभी तैयार करने की कोशिश नहीं की। इसलिए ओ. पन्नीरसेल्वम भले ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हों लेकिन असल में वह शशिकला के हाथों की कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं होंगे। 