पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र

सातवें दिन भक्तों से अपनी पूजा प्रसन्नता पूर्वक प्राप्त करने वाली मां दुर्गा की सातवीं शक्ति माता कालरात्रि हैं। इनका वाहन गर्दभ यानी गधा है। इनके शरीर का रंग काला है, बिल्कुल अंधकार जैसा। इनके सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में चमकती माला ठीक विद्युत की तरह दिखाई पड़़ती है।

इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्मांड की तरह गोल दिखाई पड़ते हैं। इनकी नासिका से निकल रही सांसों से अग्नि के समान भयंकर ज्वालाएं निकल रही हैं। इनके ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा अपने भक्तों को वर प्रदान करती है और दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। इसके ठीक बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में लोहे का कांटा है और नीचे वाले हाथ में खड्ग है।

देखने में भले ही मां कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक प्रतीत हो। भक्तों को डर लगता हो। लेकिन यह वास्तव में शुभ फल ही अपने भक्तों को प्रदान करती हैं जिससे इनका नाम शुभंकरी हो गया। इनकी पूजा के दौरान भक्तों का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहता है। यहां भक्त का मन मां कालरात्रि की छवि में ही डूबा रहता है। उनसे साक्षात्कार होने के बाद मिले पुण्य से उसके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं और मनोकामना पूरी होती है। साथ ही उसे उन अक्षय लोकों की प्राप्ति होती है जो दुर्लभ हैं।

इनकी भक्ति से दानव, दैत्य,राक्षस, भूत, प्रेत आदि सब हमेशा के लिए इनके भक्तों से दूर हो जाते हैं। इन्हीं की पूजा से ग्रहों की पीड़ा भी दूर हो जाती है। भक्तों का जीवन भयमुक्त हो जाता है। इसलिए मां कालरात्रि की पूजा उनको अपने हृदय में अवस्थित करके करनी चाहिए। साथ ही पूरे नियम और संयम का पालन करना चाहिए।