ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा में अधिकारियों की भूमिका की जांच को लेकर गठित प्रकाश आयोग की रिपोर्ट से खट्टर सरकार मुश्किल में नजर आ रही है। आयोग का गठन करने वाली सरकार ही अब इसके अध्यक्ष पूर्व आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह पर सवाल खड़े कर रही है। विपक्ष बार-बार इस रिपोर्ट पर कार्रवाई करने और दूसरी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग कर रहा है। पहली रिपोर्ट के भी कुछ पन्नों को सार्वजनिक नहीं किया गया है। विपक्ष के नेता और इंडियन नेशनल लोकदल के विधायक अभय चौटाला ने ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में कहा, ‘आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सीएम आॅफिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा किया है। यहां से समय पर कार्रवाई के आॅर्डर ही नहीं दिए गए थे। इसलिए दंगे के दौरान हालात खराब हुए। अब सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से बच रही है।’ कांग्रेस भी रिपोर्ट को लेकर सरकार पर हमलावर है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा का आरोप है कि सरकार अपनी लापरवाही व अनुभवहीनता को छुपाने के लिए ही रिपोर्ट को दबा रही है।

हरियाणा में इसी साल फरवरी में हुए जाट आरक्षण आंदोलन में भारी हिंसा हुई थी। इसकी जांच के लिए सरकार ने उत्तर प्रदेश व असम के पूर्व पुलिस महानिदेशक तथा सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया था। आयोग ने 2 मार्च, 2016 से अपना काम शुरू किया और दंगे से प्रभावित सभी आठ जिलों का दौरा किया। इस दौरान आयोग ने अपराध स्थलों का निरीक्षण किया, पीड़ितों की बात सुनी और जनसाधारण से उन लोगों की बात भी सुनी जो कमेटी के सामने उपस्थित होना चाहते थे। उनके द्वारा दी गई याचिकाएं स्वीकार की गर्इं। उन्हें अपना बयान दर्ज करवाने की सुविधा भी दी गई। आयोग ने विभिन्न क्षेत्रों से 2217 लोगों का पक्ष सुना। साथ ही सभी प्रभावित जिलों में प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों से बातचीत की और उनका भी पक्ष सुना। जुटाए गए सभी साक्ष्यों के आधार पर आयोग ने रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंप दी।

यह रिपोर्ट दो भागों में लगभग 450 पन्नों की है। इसमें से मुख्य रिपोर्ट लगभग 200 पन्नों मेंहै और अनुलग्नकों के 200 पन्ने अलग हैं। दूसरा भाग जिसके लगभग 40 पन्ने हैं, दंगों के संदर्भ में चौकसी विभाग की भूमिका से संबंधित है। इस रिपोर्ट में प्रभावित जिलों रोहतक, झज्जर, जींद, हिसार, कैथल, भिवानी, सोनीपत और पानीपत में अधिकारियों की भूमिका की जांच की गई है। जिन अधिकारियों ने अपनी ड्यूटी के दौरान लापरवाही बरती या जिन्होंने आंदोलनकारियों के प्रति सहानुभूति दर्शाई और उन्हें मनमानी करने दी, उनकी पहचान की गई है।

हंगामा इसलिए…
पहले इस जांच को लेकर विपक्ष बैकफुट पर था। लेकिन जैसे ही रिपोर्ट आई और उसमें कहीं न कहीं सरकार को भी हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया गया, विपक्ष को हमलावर होने का मौका मिल गया। विपक्ष रिपोर्ट को लेकर इसलिए भी हमलावर है क्योंकि आरक्षण आंदोलन के बाद प्रदेश का समाज दो हिस्सों जाट व गैर जाट वोटर में बंटा हुआ है। आंदोलन में हिंसा को लेकर पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा पर भी गाहे बहागे सवाल खड़े होते रहे हैं। इस स्थिति में सरकार जैसे ही रिपोर्ट को लेकर बचाव में आई तो विपक्ष ने घेर लिया। अब विपक्ष की एक ही मांग है कि सरकार पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक करे। वे यह मांग इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि इससे आंदोलन के दौरान सरकार की कार्यप्रणाली भी खुल कर सामने आ जाएगी और जाट वोटरों को अपने पक्ष में करने का बढ़िया मौका भी मिल जाएगा। विपक्ष की कोशिश सरकार को ही हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराने की है। यह स्थिति खट्टर सरकार के लिए असहज होती जा रही है।

सीएम के बयान से बढ़ा विवाद
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्‌टर ने इस विवाद को यह कह कर और बढ़ा दिया कि प्रकाश सिंह जांच के नाम पर दोबारा नियुक्ति चाह रहे हैं। विधानसभा में भी सीएम ने यही बयान दिया। उन्होंने कहा कि हमने आंदोलन की जांच के लिए उन्हें नियुक्त किया था। रिपोर्ट ले ली। इससे ज्यादा हमें उनकी सेवाओं की जरूरत नहीं है। इतना ही नहीं सीएम ने यह भी कहा कि प्रकाश सिंह पुलिस रिफॉर्म पर एक रिपोर्ट देना चाहते हैं जिसकी सरकार को जरूरत ही नहीं है। सरकार पर दबाव बनाने के लिए ही अब प्रकाश सिंह इस तरह के आरोप लगा रहे हैं। इस बयान को विपक्ष ने हाथोंहाथ लिया। विपक्ष का कहना है कि जिस अधिकारी को सरकार ने जांच के लिए नियुक्त किया था अब उसी पर आरोप लगा रही है। इससे साफ है कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचना चाह रही है। इतना ही नहीं मामले को विवादों में डाला जा रहा है। यह स्थिति ठीक नहीं है।

ऐसी नौकरी को लात मारता हूं : प्रकाश सिंह
मुख्यमंत्री के इस बयान पर प्रकाश सिंह ने ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में कहा, ‘मुझे ऐसी नौकरी नहीं चाहिए। मैं तो ऐसी नौकरी को लात मारता हूं। उन्होंने मेरी मदद मांगी थी, दे दी। नौकरी की बात करना तो मेरी बेइज्जती है। मुझे पैसे की जरूरत नहीं है। मैं सार्वजनिक हित में काम करता हूं।’ हालांकि उन्होंने सरकार के आरोपों पर ज्यादा कुछ बोलने से इनकार कर दिया। बस इतना ही कहा कि इस तरह की बातें करके वे उनकी भावना को ठेस पहुंचा रहे हैं।