डॉ. संतोष मानव।

12 साल तक सत्ता की मुख्यधारा से दूर रहे जयभान सिंह पवैया एक बार फिर चर्चा में हैं। वे बजरंग दल के दूसरे अध्यक्ष व राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख नेता रहे हैं। अब वे उच्च शिक्षा मंत्री हैं और प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने में जुटे हैं।

जयभान सिंह पवैया 12 साल बाद फिर गरज रहे हैं। ये वही पवैया हैं जो बतौर बजरंग दल अध्यक्ष 50 हजार युवाओं के साथ आतंकवादियों को ललकारने कश्मीर घाटी गए थे। आतंकवादियों ने उस समय अमरनाथ यात्रा रोकने की धमकी दी थी। ये वही पवैया हैं जिन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया को हमेशा के लिए ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। तब उनका चुनावी डायलॉग पूरे चंबल में लोगों की जुबान पर चढ़ा था- ‘मैंने नमक खाया है पर सिंधिया का नहीं, टाटा का।’

इसी साल 30 जून को कैबिनेट मंत्री बने पवैया ने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के बारे में ओपिनियन पोस्ट से कहा, ‘मैं उथल-पुथल नहीं चाहता। बस यही चाहता हूं कि सब कुछ समय पर हो और सब लोग अच्छा करें। अपना बेहतर दें।’ मंत्री बनने के बाद से ही पवैया सुर्खियों में हैं। बतौर मंत्री उन्होंने सबसे पहला आदेश सभी कॉलेजों में महापुरुषों की तस्वीरें लगाने का दिया। महापुरुष भी चुनिंदा- महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद और डॉ. भीमराव आंबेडकर। मीडिया में दूसरी सुर्खी बनी उनका वह बयान जिसमें उन्होंने कहा था, ‘प्रदेश के किसी कॉलेज, विश्वविद्यालय को जेएनयू नहीं बनने दूंगा।’ इस बारे में पूछे जाने पर पवैया ने ओपिनियन पोस्ट से कहा, ‘किसी कॉलेज में तिरंगे का, शहीदों का, देश का अपमान कैसे हो सकता है? ऐसी जगह देश विरोधी ताकतों का अड्डा कैसे बन सकते हैं।’ तीसरी सुर्खी इंदौर में एक निजी विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में दिए गए बयान के बाद बनी। इस दौरान वे बोले, ‘निजी विश्वविद्यालयों में नेताओं, अफसरों की बेईमानी का पैसा लगा होता है। अब शिक्षा माफिया को उखाड़ फेकूंगा।’ अपने इस बयान से इनकार करते हुए पवैया कहते हैं, ‘उनकी बातों को ठीक से समझा नहीं गया। उन्होंने किसी को उखाड़ने-पछाड़ने की बात नहीं की थी। माफिया शब्द का इस्तेमाल ही नहीं किया। इतना भर कहा था कि कोई निजी विश्वविद्यालय कार्यक्रम में बुलाकर, हार-माला पहनाकर अगर यह सोचे कि वह पवैया से गलत कागज पर हस्ताक्षर करा लेगा तो पवैया से यह करा पाना संभव नहीं है।’

ग्वालियर जिले के चिन्नौर गांव के किसान बलवंत सिंह पवैया के घर जन्में जयभान पवैया ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर रखी है। 1973 में वे संघ के स्वयंसेवक बन गए। 1973 से 1982 तक वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के ग्वालियर शहर के अध्यक्ष रहे। वे जेपी आंदोलन में भी शामिल हुए। फिर विश्व हिंदू परिषद के रास्ते बजरंग दल के अध्यक्ष बन गए। 1995 तक वे बजरंग दल के अध्यक्ष रहे। अयोघ्या के राम मंदिर आंदोलन में वे जेल यात्रा भी कर आए। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की पसंद बने पवैया ग्वालियर से भाजपा के उम्मीदवार बने। उनका मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया से था। उन दिनों को याद करते हुए पवैया कहते हैं, ‘उम्मीदवार बनाए जाने के बाद मैं वाजपेयीजी के पास गया और उनसे कहा कि आपका आशीर्वाद चाहिए। मुझे बोलने की पूरी आजादी दीजिए। वाजपेयीजी ने पूरी आजादी का आशीर्वाद दे दिया।’ चुनाव परिणाम आया तो पवैया सिर्फ 18 हजार वोटों से हारे थे। हालांकि उनके अनुसार वे हारे नहीं थे। तब बैलेट पेपर का जमाना था और उन्हें सत्ता के बल पर हराया गया था। इस छोटी जीत के बाद माधवराव सिंधिया हमेशा के लिए ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र छोड़ गए। वे गुना से चुनाव लड़ने लगे और जयभान सिंह पवैया राज्य की राजनीति में मशहूर हो गए।

1999 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने ग्वालियर से ही कांग्रेस के उम्मीदवार चंद्रमोहन नागौरी को हरा दिया। लेकिन 2004 में वे कांग्रेस के रामसेवक सिंह से हार गए। यहीं से पवैया के बुरे दिन शुरू हो गए। 2007 में इस लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में पार्टी ने उनकी जगह यशोधरा राजे सिंधिया को उम्मीदवार बना दिया और वो जीत भी गर्इं। इसके बाद 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पवैया को ग्वालियर से टिकट दिया। चुनाव प्रचार के दौरान ही उनकी माता का देहांत हो गया। वे 15 दिनों तक प्रचार के लिए नहीं निकले। परिणाम यह रहा कि वे दो हजार वोटों से हार गए। इसके बाद प्रदेश में पवैया लगभग भुला दिए गए। लगा कि एक तेज-तर्रार नेता का अंत हो गया। लेकिन 2013 में पार्टी ने फिर से उन्हें ग्वालियर विधानसभा से टिकट दिया और इस बार वे जीत गए। तब यह माना जा रहा था कि संघ के करीबी होने के नाते उनका मंत्री बनना तय है। मगर इसके लिए उन्हें तीन साल इंतजार करना पड़ा। चुनाव जीतने के बाद भी उनके बुरे दिन खत्म नहीं हुए थे। 2013 में बेटी की शादी के दिन ही घर में करंट लगने से उनका इकलौता बेटा चल बसा। जिसने भी इस हादसे के बारे में देखा-सुना उसकी आंखें भर आईं। एक तरफ घर से बेटी विदा हुई तो दूसरी ओर बेटे की अंतिम यात्रा निकली। पवैया अब भी उस दिन को याद नहीं करना चाहते।

2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें गुना से कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ उम्मीदवार बनाया गया। वे वोटों का अंतर कम करने में तो कामयाब रहे लेकिन सिंधिया को हरा नहीं पाए। भाजपा की राजनीति को नजदीक से जानने वालेकहते हैं कि 12 साल तक पवैया को सत्ता से दूर रखने के पीछे ग्वालियर की भाजपा की राजनीति का ही खेल है। पहले ग्वालियर के कप्तान सिंह सोलंकी प्रदेश भाजपा के संगठन महासचिव बने, फिर ग्वालियर के ही प्रभात झा व नरेंद्र सिंह तोमर प्रदेश अध्यक्ष बने। तोमर केंद्र में ताकतवर मंत्री बने। ऐसे में पवैया का सत्ता के पास आना भी असंभव था। इस साल जून में भी उनका मंत्री बनना संभव नहीं था। वह तो संघ का दबाव था जो उनके काम आ गया।

उनके मंत्री बनने के दिन तक दावपेंच चला। उनका नाम कटने की बात तक उड़ी। कहा गया कि उनके नाम पर भाजपा के कुछ बड़े नेताओं को आपत्ति है। आखिरकार उन्हें मंत्री पद की शपथ लेने का बुलावा तो आया मगर जब वे शपथ लेने पहुंचे तो उनका नाम राज्य मंत्रियों की सूची में था। इससे पवैया आगबबूला हो गए और पत्नी से शपथ ग्रहण समारोह छोड़कर चलने को कहा। इसी बीच उन्होंने इशारे से मुख्यमंत्री के प्रिय मंत्री रामपाल सिंह को बुलाया और कहा, ‘अपने बॉस से कहिएगा कि पवैया राज्य मंत्री बनने नहीं आया था, वह चला गया।’ रामपाल सिंह उन्हें रोकते रहे पर वे नहीं माने। रामपाल ने मुख्यमंत्री के दूसरे प्रिय मंत्री नरोत्तम मिश्रा को यह बात बताई। नरोत्तम भागे-भागे मुख्यमंत्री के पास पहुंचे। दोनों के बीच कुछ बात हुई। फिर नरोत्तम भागे-भागे राजभवन के गेट तक पहुंचे और मनाकर पवैया को वापस ले गए। अंतत: वे कैबिनेट मंत्री बने। इस बारे में पवैया कहते हैं, ‘पुरानी बातें छोड़िए। मेरा पूरा ध्यान अपने काम पर है।’

उन्होंने बताया, ‘प्रदेश के सभी कॉलेजों में स्किल डेवलपमेंट का काम शुरू किया जा रहा है। ऐसी पढ़ाई शुरू की जा रही है जो रोजगार दिलाने या शुरू करने में सहायक हो। संभाग स्तर पर विद्वानों की सूची तैयार की जा रही है। ये विद्वान कक्षा में पीछे की पंक्ति में पंद्रह-बीस मिनट बैठेंगे। फिर प्रिंसिपल और संबंधित व्याख्याता के साथ बैठक कर यह बताएंगे कि उनके अध्यापन में कहां सुधार की गुंजाइश है। इसका मकसद किसी को दंडित करना नहीं है। सिर्फ सकारात्मक सुझाव लेना है ताकि शिक्षा की गुणवत्ता बढें।’

पवैया प्रदेश के सभी कॉलेजों के शिक्षण चार्ट विभाग की वेबसाइट पर डलवा रहे हैं। इससे पता चलेगा कि किस समय किस कॉलेज में किस वर्ग में किस सब्जेक्ट की क्लास चल रही है। वे इसका औचक निरीक्षण भी करवाएंगे। वे सितंबर के अंतिम सप्ताह से क्षेत्रीय स्तर पर प्रिंसिपलों के साथ बैठक करेंगे। इस बैठक का प्रमुख मुद्दा होगा कि हर हाल में एकेडमिक कैलेंडर का पालन हो। तबादलों को लेकर उठे विवाद पर उन्होंने कहा कि वे जबरदस्ती के पक्ष में नहीं हैं लेकिन आपसी समन्वय से तबादले हो सकते हैं। मानवीय आधार को भी देखा जाएगा। अगर पति-पत्नी अलग हों तो उनका तबादला एक जगह किया जा सकता है। गंभीर बीमारियों के मामले में भी तबादले किए जा सकते हैं। उनका मानना है कि जो भी हो समन्वय व बातचीत से। जबरिया नहीं। पवैया के इरादे नेक लगते हैं लेकिन यह कुछ समय बाद पता ही चलेगा के वे अपने इरादों में कहां तक सफल हो पाए।