अरुण पांडेय।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब…. जीवन की प्रयोगशाला में सालों से परीक्षण पर खरी इस कहावत की सत्यता पर जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) की भी मुहर लग गई। देश का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म इस टेस्ट में भी पास हुआ। दरअसल, जीएसटी की वजह से लग्जरी कारें और एसयूवी अच्छी खासी सस्ती हो गई थीं। कुछ लोगों ने तो फटाफट एसयूवी ले डाली, कुछ ने सोचा बाद में ले लेंगे। इसी टालू आदत की वजह से उन्हें आॅडी क्यू-7 एसयूवी के लिए करीब सात लाख रुपये ज्यादा चुकाने होंगे।

लग्जरी कारों पर सेस बढ़ेगा
जीएसटी को लागू हुए डेढ़ महीना हो गया है लेकिन अभी भी टैक्स दरों में बदलाव जारी है। यही वजह है कि जीएसटी काउंसिल की हर बैठक से पहले कंपनियों की उम्मीद और धड़कनें दोनों बढ़ जाती हैं। जैसे 5 अगस्त को जीएसटी काउंसिल की बैठक में टेक्सटाइल कंपनियों और एग्रीकल्चर इक्विपमेंट बनाने वाली कंपनियों को टैक्स से राहत मिली तो लग्जरी कारों पर सेस की बढ़ी दर ठोकने का फैसला कर लिया गया। अभी तक लग्जरी कारों पर 28 फीसदी जीएसटी के अलावा 15 फीसदी सेस था लेकिन अब यह सेस 15 से बढ़कर 25 फीसदी हो जाएगा। यानी होंडा सिटी जैसी कारें जिनके दाम अभी नौ लाख से 14 लाख रुपये थे वे अब करीब 60 हजार से 80 हजार रुपये बढ़ जाएंगे। इसी तरह टोयोटा की इनोवा 1.5 लाख और फॉर्च्यूनर तो 2.25 लाख रुपये तक महंगी जाएगी। लेकिन सबसे ज्यादा बोझ मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू और आॅडी खरीदने वालों पर पड़ेगा। जैसे आॅडी की एसयूवी क्यू-7 के दाम 70 लाख से 90 लाख के बीच हैं, पर नए सेस के बाद करीब एक करोड़ रुपये तक मिलेगी। जीएसटी काउंसिल ने सेस दरों में बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी है और सरकार से कहा है इस बारे में जरूरी कानूनी कदम उठाए। सरकार अगर मौजूदा सत्र में इसे मंजूरी नहीं दिला पाई तो इसके लिए अध्यादेश लाया जा सकता है।
आॅटो इंडस्ट्री ने सरकार के बदले रुख पर सख्त ऐतराज जताया है। इंडस्ट्री के मुताबिक रातोरात हो रहे ऐसे बदलाव निवेश और बाजार दोनों के लिहाज से बहुत खराब हैं। कंपनियों का गुस्सा इस बात पर ज्यादा है कि उन्होंने जीएसटी लागू होते ही कम टैक्स का फायदा ग्राहकों तक पहुंचा दिया था, अब प्रस्ताव पर अमल होते ही कारों के दाम जीएसटी से पहले के स्तर से भी ज्यादा हो जाएंगे। आॅडी इंडिया के हेड राहुल अंसारी ने कहा कि यह फैसला बहुत निराशाजनक और परेशान करने वाला है। अगर यह जस का तस लागू हो गया तो लग्जरी कारों की बिक्री में 30 फीसदी तक कमी आ सकती है। वहीं टोयोटा का कहना है कि वो सरकार से टैक्स बढ़ोतरी का प्रस्ताव वापस लेने को कहेगी।
मर्सिडीज बेंज के एमडी रोलेंड फॉल्जर का कहना है कि इसका मतलब सरकार नहीं चाहती कि भारत में लोग बड़ी गाड़ियां खरीदें। लेकिन सरकार ने साफ कर दिया है कि लग्जरी कारों में टैक्स की दरें जीएसटी से पहले वाले स्तर में लाना जरूरी है। केंद्र सरकार के मुताबिक राज्यों को जीएसटी की वजह से अगर राजस्व में नुकसान होता है तो मुआवजा देना होगा, इसलिए टैक्स दरों में बढ़ोतरी जरूरी है। जीएसटी लागू होने से पहले लग्जरी कारों पर सभी टैक्स करीब 52 से 54 फीसदी के आसपास थे लेकिन जीएसटी के बाद यह सिर्फ 43 फीसदी रह गए थे।
वैसे सरकार ने महीने भर में आॅटो सेक्टर को नाराज किया है तो टेक्सटाइल सेक्टर पर थोड़ा मरहम भी लगाया है। जीएसटी लागू हुए डेढ़ महीने हो चुके हैं। सरकार को इसे लेकर जितनी आशंका थी वैसा कुछ नहीं हुआ। हालांकि अभी भी जीएसटी सिस्टम की असली परीक्षा सितंबर में होगी जब कारोबारी रिटर्न फाइल करेंगे। जीएसटी से कितना टैक्स कलेक्शन बढ़ा, करोड़ों इनवॉयस लोड हुई या टैक्स चोरी रुकी, इसका सही असर दिखने में डेढ़ महीने और इंतजार करना होगा। अभी तो जीएसटी भरने वाले कारोबारी और उनकी मदद करने वाले अधिकारी दोनों ही नियमों को समझने और एक्सपेरिमेंट करने में लगे हुए हैं। हालांकि सरकार इस बात से उत्साहित है कि शुरुआती संकेतों से साफ है कि टैक्स का दायरा और वसूली बढ़ने की उम्मीद है। जीएसटी में कंफ्यूजन नोटबंदी जैसा नहीं है। सरकार अलर्ट नजर आ रही है। लेकिन छोटे कारोबारी जिन्हें खुद ही इनवॉयस बनानी है और उसे सॉफ्टवेयर में भरना है, वो अभी भी परेशानी से जूझ रहे हैं।

कुछ तो नया हुआ
जीएसटी का सबसे बड़ा फायदा लॉजिस्टिक सेक्टर में दिखने लगा है। करीब-करीब सभी राज्यों ने अपनी सीमा से चेक नाके हटा लिए हैं। इन नाकों की वजह से ट्रकों के जरिये सामान पहुंचने में कई-कई दिन खराब होते थे लेकिन अब उनका वक्त बहुत बचने लगा है। सामानों की अवैध आवाजाही कम होने लगी है क्योंकि ट्रक वाले जीएसटी बिल के बगैर सामान लाने ले जाने से मना करने लगे हैं। जीएसटी लागू करते वक्त सबसे बड़ा वादा था कि राज्यों की सीमाओं पर चेक नाकों पर लगने वाला वक्त बहुत कम हो जाएगा। ये वादा अब हकीकत बनने लगा है। सड़क परिवहन मंत्रालय के ताजा सर्वे के मुताबिक 1 जुलाई के बाद ट्रक रोजाना 30 फीसदी ज्यादा दूरी कवर कर रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि जीएसटी के पहले एक ट्रक दिनभर में औसतन 225 किलोमीटर चलता था लेकिन अब ट्रक दिनभर में 300 से 325 किलोमीटर की दूरी तय कर रहे हैं। ज्यादातर राज्यों ने चेकपोस्ट हटा दिए हैं। इससे दो फायदे हुए हैं। एक तो ट्रैफिक की स्थिति सुधरी है, दूसरा चेकपोस्ट पर जांच के दौरान लगने वाला कई-कई दिन का वक्त बच गया है। जानकार तो यह अनुमान भी लगा रहे हैं कि इससे लॉजिस्टिक्स कंपनियों की लागत में 10 से 12 फीसदी की कमी आएगी। विकसित देशों में लॉजिस्टिक्स की लागत करीब 14 फीसदी होती है। ट्रांसपोर्ट मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक एक ट्रक को अपनी यात्रा का 20 फीसदी वक्त चेकपोस्टों में लग जाता था। जीएसटी से पहले एक ट्रक सालभर में करीब 60 हजार किलोमीटर की दूरी तय करता था जबकि यूरोप में एक ट्रक सालभर में औसतन दो लाख किलोमीटर चलता है।

मगर दिक्कतें बरकरार
हालांकि नेशनल ट्रांसपोर्ट के प्रेसीडेंट प्रदीप सिंघल का कहना है कि जीएसटी की जटिलता की वजह से अभी कंपनियां पुराना स्टॉक ही ज्यादा इस्तेमाल कर रही हैं। नए आॅर्डर में कमी आई है। वहीं आॅल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि छोटे शहरों के कारोबारियों को नए जीएसटी सॉफ्टवेयर को नहीं समझ पाने की वजह से इनवॉयस बनाने और इनपुट क्रेडिट भरने में दिक्कत हो रही है। हजारों छोटे मैन्युफैक्चरर और छोटे कारोबारियों ने आॅनलाइन कंपनियों के जरिये सामान बेचना बंद कर दिया है क्योंकि उन्हें जटिल सिस्टम समझने और जरूरी दस्तावेज जुटाने में दिक्कत हो रही है। इसी तरह एक ही तरह के आइटम के अलग-अलग जीएसटी रेट से मुश्किल हो रही है। जैसे 500 रुपये से कम के जूते का एक रेट और इससे ऊपर के जूतों के अलग रेट। इससे कंफ्यूजन बढ़ा है। जानकारों का कहना है कि कानून से नहीं बल्कि कानून की व्याख्या अभी लोगों को परेशान कर रही है लेकिन अब काफी कुछ पटरी पर आने लगा है। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, लंबी अवधि में जीएसटी के फायदे से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन अभी कुछ दिनों तक परेशानी बनी रहेगी। हालात चाहे जो भी हों विकास दर में कुछ न कुछ बढ़ोतरी जरूर होगी क्योंकि बिजनेस और टैक्स का दायरा बढ़ जाएगा और वो सिस्टम में आ जाएंगे।

टैक्स वसूली का दायरा बढ़ेगा
इन दिक्कतों को अलग कर दें तो कहा जा सकता है कि जीएसटी के पहले महीने में काफी हद तक कामकाज सामान्य तरीके से हुआ। जीएसटी नेटवर्क में रजिस्ट्रेशन कराने वालों की संख्या एक करोड़ के पास पहुंच गई है। सबसे खास बात है कि इसमें 12 लाख से ज्यादा नए रजिस्ट्रेशन हैं। सरकार को लग रहा है कि टैक्स का दायरे बढ़ाने के मकसद में जीएसटी कामयाब होती दिख रही है। हालांकि इसमें एक पेंच यह है कि सेवा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों जैसे बैंक, इंश्योरेंस, रेलवे, टेलीकॉम आॅपरेटर को हर राज्य में अलग-अलग रजिस्ट्रेशन कराना होगा। पहले सर्विस टैक्स में सिर्फ एक बार सेंट्रल रजिस्ट्रेशन कराना पर्याप्त था। जिन कंपनियों के अलग-अलग कारोबार हैं उन्हें भी अलग-अलग रजिस्ट्रेशन कराना होगा। रजिस्ट्रेशन 22 सितंबर तक होना है। सरकार को उम्मीद है कि टैक्स देने वालों का दायरा इतना बढ़ा लिया जाएगा कि इनडायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में काफी बढ़ोतरी हो जाएगी।
सरकार इस बात से बेहद खुश है कि जीएसटी के लिए अब तक रजिस्ट्रेशन एक करोड़ के करीब पहुंच गया है। पहले टैक्स देने वालों में 80 लाख के करीब कारोबारी थे। डेलॉयट इंडिया के सीनियर डायरेक्टर आर मुरलीधरन के मुताबिक, छोटे कारोबारी और सर्विस प्रोवाइडर जिस तरह से रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं वो बहुत ही अच्छा संकेत है। ये लोग बिजनेस के मौके खोना नहीं चाहते इसलिए रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं। राजस्व सचिव हंसमुख अधिया के मुताबिक अब तक जीएसटी को अच्छा रिस्पॉन्स मिला है। जीएसटी के बारे में जो खबरें फैलाई जा रही हैं उनमें से ज्यादातर अफवाह हैं।
जीएसटी के पहले 15 दिनों को संकेत मानें तो टैक्स कलेक्शन की तस्वीर बड़ी सुहावनी दिख रही है। सेंट्रल बोर्ड फॉर एक्साइज एंड कस्टम (सीबीईसी) के मुताबिक आयात से टैक्स कलेक्शन 11 फीसदी बढ़ गया है। हालांकि जीएसटी कलेक्शन की सही और स्पष्ट तस्वीर अक्टूबर में ही दिखेगी जब जीएसटी लागू होने के बाद की पहली तिमाही के आंकड़े आएंगे। फिर भी टैक्स कलेक्शन बढ़ने से सरकार का एक बड़ा टेंशन कम हुआ है। पहली जुलाई से 15 जुलाई के बीच आयात से आय 12,673 करोड़ रुपये हो गई है जो जून के पहले 15 दिनों से 11 फीसदी ज्यादा है। जीएसटी में आयात को आईजीएसटी के तहत माना गया है। इसमें बेसिक कस्टम ड्यूटी भी लागू है। वित्त वर्ष 2016-17 में इनडायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 22 फीसदी बढ़कर 8.63 लाख करोड़ रुपये रहा था।

खामियां दूर करना जरूरी
भारत-अमेरिका चेंबर आॅफ कॉमर्स (आईएसीसी) के वसंत सुब्रमण्यम के मुताबिक, जीएसटी में अभी कई खामियां हैं जो वक्त के साथ ही दूर होंगी। पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा का कहना है कि ज्यादा स्लैब जीएसटी की सबसे बड़ी खामी है। इससे इंडस्ट्री और ग्रुप लगातार इस बात के लिए लॉबिंग करते रहते हैं कि उन्हें कम दर वाले स्लैब में डाल दिया जाए। आईएसीसी के मुताबिक छोटे कारोबारी अभी भी जीएसटी को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं और वे डरे सहमे हुए हैं। यह सही है कि छोटी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को जीएसटी में दबाव झेलना पड़ेगा। जैसे पहले 1.5 करोड़ रुपये से ज्यादा के टर्नओवर वाली मैन्युफैक्चरिंग कंपनी को एक्साइज ड्यूटी देनी पड़ती थी लेकिन जीएसटी में यह सीमा घटकर सिर्फ 20 लाख रुपये रह गई है। जाहिर है इससे छोटी इंडस्ट्री पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा। इसके अलावा जीएसटी में रिटर्न फाइलिंग से भी उनकी लागत बढ़ेगी।
टैक्स बचाने के नए तरीके निकाले
सरकार ने अपनी तरफ से जीएसटी में टैक्स चोरी के तमाम तरीकों पर लगाम लगाने की कोशिश की है लेकिन कारोबारियों ने टैक्स बचाने के नए तरीके निकालने शुरू कर दिए हैं। जैसे रेडीमेड कपड़ों पर एक हजार रुपये से ऊपर के बिल पर 12 फीसदी जीएसटी है। इसलिए इन्हें अब अलग-अलग बेचा जा रहा है। शर्ट पैंट के सेट में शर्ट के लिए अलग और पैंट के लिए अलग बिल बनाया जा रहा है। सलवार सूट और दुपट्टे के सेट में दुपट्टे का अलग बिल बनाया जा रहा है। हालांकि जानकारों का कहना है कि ऐसा करने के बावजूद टैक्स चोरी पकड़ी जाएगी क्योंकि इनपुट क्रेडिट से जुड़े बिल मैच नहीं होंगे तो यह साफ हो जाएगा कि हेराफेरी की गई है। यानी कारोबारी तमाम कोशिश कर लें पर जीएसटी के सिस्टम में टैक्स चोरी उन्हें बड़े संकट में डाल सकती है, जिनसे उन्होंने माल खरीदा है और उसमें जो वैल्यू एडिशन हुआ है उन सबकी पूरी चेन है और यह जीएसटी नेटवर्क में उपलब्ध होगी। इसलिए टैक्स लेने और देने में चालाकी बहुत महंगी भी पड़ सकती है। 