सतीश सिंह।

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के पहली जुलाई से लागू हो जाने के बाद भी कारोबारियों के बीच डर एवं ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। उनके डर का कारण जीएसटी प्रणाली का पूर्ण रूप से टेक्नोलॉजी पर आधारित होना, टैक्स एवं रिटर्न से जुड़ी जटिलताएं एवं रिटर्न की अधिकता है तो ऊहापोह की वजह जीएसटी की तस्वीर का अभी तक पूरी तरह से साफ नहीं होना है। जीएसटी से पहले केंद्रीय कर मसलन, कस्टम, एक्साइज, सेवा कर और राज्य कर जैसे, वैट, बिक्री कर, प्रवेश कर, चुंगी वगैरह प्रचलन में थे। लेकिन इस प्रणाली में अधिकांश कारोबारी टैक्स चोरी के आदी थे। जीएसटी के तहत टैक्स संरचना त्रिस्तरीय है। पहला सीजीएसटी, दूसरा एसजीएसटी और तीसरा आईजीएसटी। सीजीएसटी और आईजीएसटी के तहत केंद्र सरकार टैक्स वसूल करेगी तो एसजीएसटी के अंतर्गत राज्य सरकार।

माना जा रहा है कि जीएसटी के तहत कारोबारी टैक्स चोरी नहीं कर पाएंगे क्योंकि जो कारोबारी टैक्स नहीं दे रहे हैं या टैक्स का कम भुगतान कर रहे हैं उन्हें टैक्स की देय राशि का 10 फीसद या 10,000 रुपये जो दंड की न्यूनतम राशि है जुर्माने के रूप में देनी होगी। जानबूझ कर टैक्स चोरी करने का दोषी पाए जाने पर दोषी को देय टैक्स राशि का सौ फीसद जुर्माना देना होगा। जीएसटी की संरचना को इतना सशक्त बनाया गया है कि कारोबारियों के लिए टैक्स चोरी करना आसान नहीं होगा।

जीएसटी से छूट की सीमा 20 लाख रुपये सालाना बिक्री तय की गई है और 75 लाख रुपये तक की सालाना बिक्री रहने पर महज एक फीसद टैक्स अदा करना होगा। अगर कारोबारी निर्माता है और 75 लाख रुपये तक का सालाना उत्पादन करता है तो उसे सिर्फ दो फीसद टैक्स देना होगा। इसका सीधा मतलब है कि जिन कारोबारियों की सालाना बिक्री 20 लाख रुपये तक है उन्हें जीएसटी के लिए पंजीकरण नहीं कराना होगा। जबकि 75 लाख रुपये तक की सालाना बिक्री करने वालों या निर्माण करने वाले कारोबारियों को एक और दो फीसद टैक्स ही देना होगा। सरकार की ऐसी कवायद से माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में कारोबारी स्वत: जीएसटी देने के लिए प्रेरित होंगे जिससे टैक्स के दायरे में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी।

अभी जीएसटी की प्रक्रिया को लेकर टैक्स देने वालों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कहा जा रहा है कि उन्हें महीने में 3 से 4 और सालाना 37 फार्म दाखिल करने होंगे। हालांकि वस्तु स्थिति इसके ठीक विपरीत है। हकीकत में कारोबारी द्वारा एक बार निबंधन कराने के बाद उसे हर महीने की10 तारीख तक पिछले महीने का रिटर्न फाइल करना होगा। शेष दो रिटर्न कंप्यूटर द्वारा स्वत: सृजित होगा। जीएसटी के रिटर्न को दाखिल करने के लिए आॅफलाइन प्रारूप पर काम करना होगा जो माइक्रोसॉफ्ट के एक्सेल शीट जैसा होगा। रिटर्न को आॅफलाइन भेजा जाएगा जिसे बाद में आॅनलाइन किया जाएगा। इस प्रक्रिया में गलती होने पर उसका सुधार आसान नहीं होगा। जमा टैक्स के रिफंड की स्थिति में वेंडर की पुष्टि की जरूरत होगी जिसमें कारोबारियों को अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।

वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) करदाता और सरकार के बीच इंटरफेस के रूप में कार्य करेगा। जीएसटीएन एक गैर सरकारी संगठन है जिसका काम केंद्र व राज्य सरकार एवं करदाताओं के बीच साझा आईटी नेटवर्क उपलब्ध कराना है। करदाताओं को पंजीकरण कराने के बाद जीएसटीएन नंबर मिलेगा। जीएसटीएन नंबर के जरिये ही कारोबारी जीएसटी से जुड़े तमाम कार्य कर सकेंगे। देखा जाए तो जीएसटी प्रौद्योगिकी का सबसे अहम हिस्सा जीएसटीएन ही है। इसके तहत जीएसटी रिटर्न दाखिल करने और जमा टैक्स के रिफंड दावों के निपटारे के लिए सरकार ने 1,400 करोड़ रुपये की व्यवस्था की है। इस नेटवर्क के दो हिस्से हैं। पहला जीएसटीएन प्लेटफॉर्म और राज्यों का नेटवर्क। आईटी कंपनी इंफोसिस द्वारा तैयार जीएसटीएन की मदद से हर महीने की 10 तारीख तक 3.2 अरब रसीदें अपलोड होंगी लेकिन एक राज्य में प्रणाली के असफल होने पर नेटवर्क से जुड़ी समूची प्रक्रिया ठप्प पड़ जाएगी।

इसमें दो राय नहीं है कि जीएसटी प्रौद्योगिकी का स्वरूप बेहद जटिल है। फिर भी माना जा रहा है कि लगभग 80 लाख करदाता जीएसटी में पंजीकरण कराएंगे। इसमें 70 लाख लघु और मध्यम कारोबारी होंगे। लेकिन भारत जैसे देश में अभी भी कस्बाई एवं ग्रामीण इलाकों में बहुत सारे ऐसे कारोबारी हैं जो हर साल 75 लाख रुपये से अधिक की बिक्री करते हैं लेकिन वे या तो अनपढ़ हैं या कम पढ़े-लिखे। जीएसटी प्रौद्योगिकी की जटिल प्रक्रिया को समझना पढ़े-लिखे कारोबारियों के लिए भी आसान नहीं है। ऐसे में अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे की क्या बिसात है। इससे स्पष्ट है कि कारोबारियों को जीएसटी की जटिलताओं को सुलझाने के लिए निश्चित रूप से पेशेवरों की मदद की जरूरत होगी।
मौजूदा समय में चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी सेक्रेटरी, टैक्स सलाहकार, वकील आदि कारोबारियों के टैक्स से जुड़े कार्यों का निष्पादन करते हैं। लेकिन जीएसटी से जुड़ी समस्याओं का निष्पादन करने में ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश टैक्स सलाहकारों एवं वकीलों को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि जीएसटी की प्रणाली बेहद जटिल है। ऐसे में जीएसटी से जुड़ी समस्याओं का निष्पादन करने का सारा दारोमदार चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी पर आ जाएगा। जीएसटी के तहत 80 लाख करदाताओं के पंजीकरण कराने की उम्मीद है। अगर एक पेशेवर 20 कारोबारियों का रिटर्न फाइल करेगा तब भी 80 लाख कारोबारियों का रिटर्न फाइल करने के लिए 4 लाख पेशेवरों की जरूरत पड़ेगी। इतनी बड़ी संख्या में हमारे देश में चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी नहीं हैं। पहली अप्रैल, 2015 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में कुल 2,39,974 चार्टर्ड अकाउंटेंट थे जिनमें से केवल 1,15,540 ही प्रैक्टिस कर रहे थे। जबकि 31 मार्च, 2016 तक केवल 7,776 कंपनी सेक्रेटरी ही प्रैक्टिस कर रहे थे। साफ है कि चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी की मांग ज्यादा होने पर वे अपनी फीस में इजाफा करेंगे जिससे कारोबारियों की देयता में बढ़ोतरी होगी।

ऐसे में कहा जा सकता है कि जीएसटी की सफलता के लिए कारोबारियों की आशंकाओं को दूर करने के साथ-साथ जीएसटी प्रौद्योगिकी एवं रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रियाओं को भी सरल बनाने की जरूरत है। पहले तो टैक्स का रिटर्न मैन्युअल भी दाखिल किया जाता था लेकिन जीएसटी प्रणाली पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत है। इससे अधिकांश कारोबारी खुद से अपना रिटर्न दाखिल करने में असमर्थ हैं। मोटे तौर पर पेशेवरों का काम जीएसटी के तहत कारोबारियों का पंजीकरण कराना, रिटर्न दाखिल करने एवं इससे जुड़े दूसरे कार्यों का निष्पादन, टैक्स दस्तावेज तैयार करना, टैक्स वसूली अधिकारियों के समक्ष कारोबारियों की समस्याओं को रखना और उनका निपटारा करना, विविध कानूनों के दायरे में आॅडिट कराना, अधिक टैक्स जमा कर देने पर कारोबारियों को उसका रिफंड दिलाना, टैक्स कानूनों के दायरे में कारोबार करने के लिए कारोबारियों को प्रोत्साहित करना आदि हैं। चूंकि सरकार न तो पेशेवरों की संख्या बढ़ाने की स्थिति में है और न ही कारोबारियों की मदद करने के। इसलिए टैक्स सलाहकारों और वकीलों को जीएसटी से संबंधित जानकारी के दायरे को बढ़ाने की कोशिश करनी होगी ताकि वे जल्द से जल्द इससे जुड़े कार्यों का निष्पादन करने में समर्थ हो सकें। इससे उनकी आमदनी में भी इजाफा होगा।