नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अस्सी में से तिहत्तर सीटों पर अभूतपूर्व सफलता हासिल की थी जो अपने आप में एक रिकार्ड है। 42 फीसदी वोट जुटाने में मोदी लहर का महत्वपूर्ण योगदान था। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में यही पुनरावृत्ति आसान नहीं थी। खासकर तब जब उत्तर प्रदेश का सामाजिक तानाबाना विविधताओं और जटिलताओं से भरा हो, लोकसभा चुनाव के बाद दिल्ली और बिहार में भाजपा को हार का स्वाद चखना पड़ा हो और यूपी में दो बड़े दलों सपा-कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया हो। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में पार्टी की कोई अच्छी स्थिति नहीं थी और वह तीसरे नंबर पर रही थी। इसमें संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं लेकिन उत्तर प्रदेश जैसी क्लिष्ट राजनीतिक जमीन पर मोदी की लोकप्रियता को भुनाना आसान काम नहीं था। इसके लिए बहुत ही प्रभावी और सुनियोजित रणनीति की जरूरत थी, जिसकी जिम्मेदारी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ली।

नए सामाजिक समीकरण
भाजपा सवर्णों की पार्टी के तमगे से अभिशप्त थी और मंदिर आंदोलन का असर कम होने के साथ साथ पार्टी का जनाधार घटता गया। 2012 विधानसभा चुनावों में भाजपा को सिर्फ पंद्रह फीसदी वोट मिले। 2013 में पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में यूपी की कमान मिलने के बाद अमित शाह ने पिछड़ों और दलितों को पार्टी की मुख्यधारा में लाने का बीड़ा उठाया। उपेक्षा के शिकार इस समाज को जोड़ते हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में 28 पिछड़ों को प्रत्याशी बनाया। अपना दल से गठबंधन नए वोटों को जोड़ने का एक और महत्वपूर्ण कदम था। दूसरी ओर जमीनी राजनीति के जरिए दलितों के बड़े वर्ग को मोदी लहर से जोड़ने में सफलता हासिल की।

उत्तर प्रदेश के 2014 के उपचुनावों में करारी हार और फिर बिहार में मिली पराजय से समझा गया कि 2014 में जो नया वोट पार्टी से जुड़ा वह कहीं बिखर रहा है। यूपी में नए सिरे से प्रभावी सामाजिक समीकरण बिठाने की शुरुआत हुई। केशव मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। मौर्या जैसी अति पिछड़ी जाति को प्राथमिकता देकर शाह ने सोशल इंजीनियरिंग की क्षमता का परिचय दिया। अन्य पिछड़ी जातियों और सवर्णांे के साथ कोई प्रतिस्पर्द्धा न होने के कारण राजनीतिक रूप में मौर्य समाज के नेता के लिए बड़ी सामाजिक गोलबंदी करना आसान हुआ। ओबीसी के कई बड़े चेहरे सपा, बसपा से तोड़कर भाजपा से जोड़े गए। इससे सपा सिर्फ यादव और बसपा सिर्फ जाटव पार्टी बनकर रह गई। राजभर पार्टी से हाथ मिलाए और अपना दल की अनुप्रिया पटेल को केंद्रीय मंत्री बनाया गया। विधानसभा चुनाव में 140 से ज्यादा पिछड़ों को टिकट देकर इस समाज को मजबूत संदेश दिया गया।

गरीबों को राजनीतिक पहचान
भाजपा के गरीब कल्याण के नारे ने दलितों, पिछड़ों और वंचितों को जातिगत राजनीति के ऊपर उठकर एक आर्थिक वर्ग के रूप में संगठित किया। मोदी की परिकल्पना और शाह की दूरदर्शिता ही थी कि उज्वला गैस, मुद्रा बैंक, फसल बीमा, जनधन याजनाओं का सर्वाधिक लाभ उत्तर प्रदेश को दिया गया। नोटबंदी से भी संदेश गया कि भाजपा अमीरों नहीं बल्कि गरीबों के हितों के लिए काम कर रही है। नोटबंदी की परेशानियों को नजरअंदाज कर गरीबों ने इसे अपने हित में उठाया कदम माना और भाजपा को भरपूर समर्थन दिया। हर मंच से गरीबों का आह्वान कर और उनके लिए योजनाएं बनाकर प्रधानमंत्री ने गरीबों का विश्वास जीता।

केंद्र सरकार के कार्य
सबका साथ सबका विकास को चरितार्थ करते हुए मोदी सरकार ने उज्वला गैस कनेक्शन, बिजली कनेक्शन, मुद्रा ऋण या किसी अन्य जनकल्याण योजना का लाभ देते समय जाति या धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया। इसका भी यूपी के मतदाताओं में सकारात्मक संदेश गया।
-मोदी सरकार ने प्रदेश सरकार को विकास के लिए प्रतिवर्ष एक लाख करोड़ रु. अतिरिक्त दिए।
-52 लाख से अधिक गरीब, पिछड़ी व दलित महिलाओं को रसोई गैस सिलेंडर दिए।
-कम ब्याज पर छोटे उद्यमियों को बीस हजार करोड़ का ऋण दिया गया जिससे यूपी में करीब एक करोड़ लोगों को रोजगार मिला।
-सिर्फ 12 रु. भुगतान पर एक करोड़ ग्यारह लाख लोगों को दो लाख का बीमा।
-तीन करोड़ से ज्यादा जनधन खाते।
-दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना के जरिए 1464 गांवों में पहली बार बिजली पहुंची।
-दशकों से बंद गोरखपुर के यूरिया कारखाने को फिर से जीवित करने का उपक्रम।
-गोरखपुर में एम्स का शिलान्यास।

मुख्यमंत्री न घोषित करना
पहले से मुख्यमंत्री घोषित कर समाज के एक बड़े वर्ग को जोड़ने की परिकल्पना को ठेस लग सकती थी। इसलिए मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया। इसके बावजूद मिली सफलता ने साबित किया कि जनता का मोदी पर भरोसा कायम है और वह विकास और स्वच्छ प्रशासन चाहती है।

लोक कल्याण संकल्प पत्र
औपचारिकता के निर्वाह के बजाय उत्तर प्रदेश के विकास के विजन को ध्यान में रखकर घोषणापत्र तैयार किया गया। लोक कल्याण संकल्प पत्र में चालीस लाख लोगों से संपर्क साधकर जनता का आकांक्षाओं को प्राथमिकता ने आधार पर महत्व दिया गया। राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तबकों गरीबों और किसानों का खास ध्यान रखा गया।

संगठन मजबूत किया
2014 के लोकसभा चुनावों से पहले शाह से भाजपा संगठन को पुनर्जीवित करने का जो काम यूपी में किया था उसे जारी रखा गया। प्रदेश में एक करोड़ अस्सी लाख लोगों को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता दी गई। मंडल स्तर पर 75428 और जिला स्तर पर 13676 कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया गया। कार्यकर्ताओं से संवाद ने संगठन को नई ऊर्जा दी। बूथ प्रहरियों का गठन किया गया। सभी बूथों में बूथ समितियां बनाई गर्इं जिनमें दस से इक्कीस सदस्य थे।

सघन जनसभाएं
संगठित और अनुशासित पार्टी के रूप में प्रचार। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ सभी वरिष्ठ नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों में प्रचार में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने सात बार प्रदेश का दौरा किया और हर कोने तक पहुंचे। सभाओं में दोतरफा संवाद एक नई पहल थी। अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में मोदी ने सामान्य कार्यकर्ता की तरह जनसंपर्क, एक रोड शो और तीन जनसभाएं कीं। मोदी के बाद उम्मीदवारों में सबसे अधिक मांग अमित शाह की थी। उन्होंने भी ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों तक पहुंचने का प्रयास किया। जनसभाओं के अलावा इलाहाबाद और गोरखपुर में रोड शो किए। इसने पार्टी का जनाधार बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई।

गृहमंत्री राजनाथ सिंह, प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य, सांसद योगी आदित्यनाथ के अलावा कई केंद्रीय मंत्रियों ने सघन प्रचार किया।
परिवर्तन यात्राएं- बिहार की हार से सबक लेते हुए पार्टी ने प्रदेश के चार विभिन्न छोरों से परिवर्तन यात्राएं शुरू कीं। ये सभी 75 जिलों तथा 403 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरीं और मास मोबिलाइजेशन का नया इतिहास रचा। बाद में ये यात्राएं लखनऊ में एक बड़ी जनसभा के रूप में परिवर्तित हुर्इं। इसमें दस लाख से ज्यादा पार्टी कार्यकर्ता शामिल हुए और प्रधानमंत्री मोदी ने इस जनसभा को संबोधित कर यूपी में भाजपा की विराट विजय की आधारशिला रखी। इसके अलावा 88 युवा सम्मेलन, 77 महिला सम्मेलन और 200 पिछड़ा वर्ग सम्मेलन भी किए गए। अनुसूचित जाति व जनजाति तक पहुंचने के लिए 18 स्वाभिमान सम्मेलन और 14 मंडलों में व्यापारी सम्मेलन किए गए।

यूपी के मन की बात
आम जनता के बीच जाकर उनकी अपेक्षाओं और समस्याओं को जानने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह ने ‘यूपी के मन की बात’ अभियान शुरू किया। चालीस लाख लोगों से संपर्क कर उनकी बातें जानी गर्इं। युवाओं, किसानों का दिल जीता- भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ‘युवा टाउनहाल’ के द्वारा 156 स्थानों के 74200 युवाओं से सीधे बातचीत की और उनके सवालों के जवाब व भाजपा का संदेश दिया। किसान महाअभियान के तहत साढ़े तीन हजार से ज्यादा अलाव सभाओं के जरिए दो लाख से अधिक किसानों से संपर्क किया गया। 75 जिलों में माटी तिलक रैलियां की गर्इं। एक लाख 34 हजार किसान अपने खेतों की मिट्टी लाए। भाजपा नेताओं ने उसका तिलक लगाकर उनकी मांगें पूरा करने की प्रतिज्ञा ली।

शाह का प्रवास और रणनीति
शाह वाररूम से सीधे युद्धक्षेत्र में पहुंचे सेनापति बने। वहीं प्रवास किया। रणनीति बनाई। संचालन किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में 17 दिन प्रवास किया। कार्यकर्ताओं के साथ देर रात तक रणनीति पर चर्चा की।

प्रभावी मॉनिटरिंग
अमित शाह ने चुनावी सभाओं के बीच में फोन पर लगातार कार्यकर्ताओं से संपर्क साधा। बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक संपर्क सूत्र स्थापित किया। जिन्हें टिकट नहीं मिलता वे असंतुष्ट बनकर पार्टी को नुकसान पहुंचाते हैं। शाह ने उनसे तुरंत संपर्क साधा और व्यक्तिगत मुलकात कर नब्बे फीसदी से ज्यादा को संतुष्ट कर काम में लगाया। कमजोर और सीमांत सीटों की पहचान कर वहां के लिए प्रभावी रणनीति बनाई। ऐसी पचास सीटों पर पार्टी जीती।

प्रचार
शाह के नेतृत्व में एक प्रभावी प्रचार अभियान चलाया गया। मुख्य बिंदु थे- उत्तर प्रदेश का कुशासन, मोदी सरकार की उपलब्धियां और भाजपा का गरीब कल्याण संकल्प पत्र। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के विज्ञापनों की रचना वैसे तो स्वतंत्र प्रोफेशनल ने की लेकिन कई मौकों पर शाह ने खुद क्रिएटिव टीम को सीधे निर्देश देकर राजनीतिक मुद्दों को धार दी। परिवर्तन संदेश वीडियो वैन्स, कमल मेला, कमल संदेश मोटर साइकिल अभियान, नुक्कड़ सभाएं। इसके अलावा सोशल मीडिया, फेसबुक और ट्विटर हैंडल के जरिए भी उत्तर प्रदेश वासियों से लगातार संपर्क बनाए रखा।

मीडिया प्रबंधन
मीडियाकर्मियों को लगातार जानकारी दी गई। शाह खुद समय निकालकर पार्टी के मुद्दे जनता तक पहुंचाने के लिए मीडियाकर्मियों के संपर्क में रहे। इसके अलावा मीडिया प्रबंध के लिए बनी टीम ने यूपी के पार्टी प्रवक्ताओं को नियमित रूप से ब्रीफ किया ताकि वे एक सुर में पार्टी का पक्ष विभिन्न माध्यमों में रख सकें। लखनऊ के अलावा वाराणसी और गोरखपुर में मीडिया सेंटर बनाए गए। कई शहरों में प्रेस कांफ्रेंस की गर्इं जिनमें वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्रियों ने भागीदारी की।