अभिषेक रंजन सिंह

संसद के बजट सत्र में बहुचर्चित शत्रु संपत्ति कानून संशोधन विधेयक 2017 पारित हो गया। विधेयक पारित होने के बाद शत्रु संपत्ति पर अपने मालिकाना हक की कानूनी लड़ाई लड़ने वालों को बेहद निराशा हुई है। दरअसल, नए कानून के तहत शत्रु संपत्ति से संबंधित कोई भी मुकदमा निचली अदालतों में दायर नहीं किया जा सकेगा। शत्रु संपत्ति पर कोई पक्ष अगर अपने उत्तराधिकार का दावा करता है तो उसे हाई कोर्ट एवं सुप्रीम में मुकदमा करना होगा। वैसे इस कानून को कई लोग गलत बता रहे हैं। राज्यसभा के पूर्व सांसद मोहम्मद अदीब शत्रु संपत्ति कानून में किए गए बदलाव को सरासर नाइंसाफी करार दे रहे हैं। ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘शत्रु संपत्ति के नाम पर मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जा रहा है क्योंकि बंटवारे के समय पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान जाने वाले मुसलमान ही थे। भारत छोड़कर जाने वालों में कई परिवार ऐसे भी थे जिनके एक-दो सदस्य ही पाकिस्तान गए और बाकी सदस्यों ने यहीं रहना पसंद किया। लिहाजा यहां रहने वाले लोगों से उनके पुरखों की जमीनें छीनना कहां की इंसानियत है।’

मोहम्मद अदीब बताते हैं कि व्यापक रूप से इस कानून में बदलाव करने का काम साल 2006 में यूपीए की सरकार में हुआ। अब भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने कांग्रेस से दो कदम आगे जाकर शत्रु संपत्ति कानून में अनाप-शनाप संशोधन कर मामले को और अधिक जटिल बना दिया है। उनका आरोप है कि यूपीए या फिर एनडीए सरकार ने शत्रु संपत्ति कानून में इसलिए बदलाव किया ताकि भू-माफियाओं को इसका फायदा मिल सके। वरना ऐसी कोई जल्दी नहीं थी कि इस कानून में ऐसे सख्त प्रावधान किए जाएं कि कोई पीड़ित पक्ष अपना दावा-दलील ही न कर पाए।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के लहरपुर के जमींदार ताज फारुखी का किस्सा भी कुछ इसी तरह का है। ताज फारुखी के चाचा बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए थे। लिहाजा उनकी तमाम जमीनों को सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर जब्त कर लिया। हैरानी की बात यह है कि ताज फारुखी आज भी अपने पुरखों की जमीनों का लगान अदा कर रहे हैं। भले ही वह जमीन उनके दखल से बाहर है। पटवारी जब ताज फारुखी को भू-लगान की रसीद देते हैं तो उसमें लिखा जाता है ताज फारुखी (शत्रु)। यह अकेले ताज फारुखी जैसे लोगों की कहानी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता शाहिद अली शत्रु संपत्ति कानून में किए गए हालिया संशोधन को अलोकतांत्रिक बताते हैं। ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘शत्रु संपत्ति से जुड़े मामलों में निचली अदालतों में अपील करने की मनाही केंद्र सरकार के गलत इरादों की तरफ इशारा करती है।’

जिन देशों से भारत का युद्ध हुआ है उन देशों में जाकर बसने वाले लोगों की संपत्तियों को शत्रु संपत्ति घोषित किया गया है। इस संशोधित कानून में पाकिस्तान एवं चीन गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर उत्तराधिकार के दावों को रोकने के प्रावधान किए गए हैं। बजट सत्र में लोकसभा में शत्रु संपत्ति संशोधन विधेयक 2017 पारित हुआ। राज्यसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। लोकसभा में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार अपने शत्रु देश या उसके नागरिकों को संपत्ति रखने या उसका व्यावयायिक इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देगी। शत्रु संपत्ति से जुड़े सभी अधिकार सरकार के पास होना चाहिए न कि शत्रु देशों के नागरिकों या उनके उत्तराधिकारियों के पास। गृहमंत्री ने कहा कि जब किसी देश के साथ लड़ाई होती है तो उसे शत्रु माना जाता है। लिहाजा शत्रु संपत्ति संशोधन विधेयक 2017 को 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। राजनाथ सिंह के मुताबिक, इस विधेयक को पारित कराना इसलिए जरूरी था क्योंकि ऐसा नहीं होने से देश को करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान हो रहा था। गौरतलब है कि भारत छोड़कर पाकिस्तान जाकर बसे लोगों की संपत्तियां भारत के रक्षा नियम (डिफेंस आॅफ इंडिया रूल्स) 1962 के तहत अपने कब्जे में लेने का प्रावधान है।

राजा महमूदाबाद की अरबों की संपत्तियां
भारत में जब भी शत्रु संपत्ति कानून का जिक्र होता है तो राजा महमूदाबाद की हजारों करोड़ की संपत्तियों के बारे में खूब चर्चा होती है। राजा महमूदाबाद मोहम्मद अमीर अहमद खान दिसंबर 1957 में पाकिस्तान चले गए थे। मगर उनकी पत्नी और बेटे राजा मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान ने भारत में रहना पसंद किया। आजादी के दस वर्षों तक राजा महमूदाबाद भारत के नागरिक थे। बाद में उन्होंने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली। वह किन वजहों से पाकिस्तान गए, इस बारे में उनके बेटे राजा मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान का कहना है, ‘बंटवारे के समय पूरे देश में खून-खराबे का माहौल था। इससे परेशान हमारा परिवार समय-समय पर पाकिस्तान, ईरान, इराक और लेबनान में रहने को मजबूर हुआ। साल 1950 में मैं अपनी मां और बहनों के साथ इराक पहुंचा। उस वक्त मेरे पिता वहीं रहते थे। उस वक्त मेरी उम्र करीब सात साल थी।’ उनके पिता राजा महमूदाबाद पाकिस्तान और भारत आते-जाते रहे। लंदन में उन्होंने इस्लामिक कल्चरल सेंटर में बतौर डायरेक्टर नौकरी भी की थी। राजा महमूदाबाद साल 1961 में जब भारत आए थे तो पंडित जवाहर लाल नेहरू से उनकी मुलाकात भी हुई थी। नेहरू जी उन्हें मियां साहब कहते थे। नेहरू जी की मृत्यु के बाद वह फिर भारत आए और उस वक्त इंदिरा गांधी से उनकी मुलाकात हुई। 14 अक्टूबर, 1973 को लंदन में उनका इंतकाल हुआ और उन्हें ईरान के मसहद में दफनाया गया।

साल 1968 में जब शत्रु संपत्ति कानून बना तो उसके प्रावधानों के मुताबिक गृह मंत्रालय द्वारा नियुक्त कस्टोडियन ने राजा महमूदाबाद के महल में रहने वाले राजा मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान, उनकी पत्नी विजया खान, उनके बेटे मोहम्मद डॉ. अमीर अहमद खान और मोहम्मद अमीर हसन खान को संपत्ति का मेंटीनेंस अलाउंस देना शुरू किया। 1973 में जब राजा महमूदाबाद की मौत हुई तब उनके बेटे मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान लंदन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे। चूंकि वह भारतीय नागरिक थे इसलिए उन्होंने अपने पिता की संपत्ति पर उत्तराधिकार का दावा पेश किया। उन्होंने तमाम केंद्र सरकारों से अपनी संपत्ति लौटाने की गुहार लगाई लेकिन उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली। 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी 25 फीसदी संपत्ति लौटाने का भरोसा दिया था लेकिन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद राजा महमूदाबाद मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान की उम्मीदें भी खत्म हो गर्इं। इसके बाद उन्होंने अदालत का रुख किया। इसकी पहल उन्होंने साल 1986 में लखनऊ सिविल कोर्ट में उत्तराधिकार वाद दायर करके किया। इस मुकदमे में मिली जीत के बाद उन्होंने बांबे हाई कोर्ट में कस्टोडियन के खिलाफ मामला दायर किया। इसमें भी उन्हें सफलता मिली और हाई कोर्ट ने साल 2001 में राजा महमूदाबाद के पक्ष में फैसला सुनाया। इस फैसले को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी लेकिन साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी राजा महमूदाबाद के पक्ष में आया। लगातार शिकस्त खाने के बाद साल 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार इस बाबत एक अध्यादेश लेकर आई जिसे राजा महमूदाबाद ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। फिलहाल मामला सर्वोच्च अदालत में लंबित है। राजा महमूदाबाद को यकीन है कि देश की सबसे बड़ी अदालत से उन्हें से इंसाफ जरूर मिलेगा।

नए कानून की जद में पटौदी खानदान की भी संपत्तियां
नए शत्रु संपत्ति कानून की वजह से देश में शत्रु संपत्ति से जुड़े कई गड़े मुर्दे उखड़ने की आशंका प्रबल हो गई है। भोपाल में नए शत्रु संपत्ति कानून से 10 हजार परिवारों पर विपरीत असर पड़ेगा। देश भर में 2013 में जहां शत्रु संपत्ति से जुड़े 2,111 मामले थे वहीं 2014 में उनकी संख्या बढ़कर 12,090 हो गई जबकि साल 2015 में 14,759 मामले सामने आए। 2016 में इनकी संख्या करीब 19,000 हो गई, जो विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। वैसे तो देश के अलग-अलग शहरों में शत्रु संपत्तियां हैं लेकिन अकेले उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1500 है। नए कानून का असर नवाब मंसूर अली खान पटौदी के बेटे फिल्म अभिनेता सैफ अली खान की भोपाल स्थित संपत्तियों पर भी पड़ेगा। गौरतलब है कि मंसूर अली खान पटौदी की मां साजिदा सुल्तान बेगम भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान की छोटी बेटी थीं। हमीदुल्ला खान की सिर्फ दो बेटियां थीं। उनकी बड़ी बेटी आबिदा सुल्ताना 1950 में पाकिस्तान जाकर बस गई थीं। ऐसे में उनके नाम पर भोपाल में मौजूद तमाम जमीन-जायदाद शत्रु संपत्ति घोषित हो जाएंगी। हालांकि पटौदी परिवार की तरफ से इस बारे में कोई बयान नहीं आया है लेकिन माना जा रहा है कि संशोधित शत्रु कानून की जद में उनकी भी जमीनें आएंगी।

दिल्ली और कोलकाता की शत्रु संपत्तियां
अगर आप पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक, सदर बाजार और नई सड़क इलाकों में जाते रहे हैं तो वहां मौजूद वर्षों पुरानी दुकानें आपको यह सोचने पर मजबूर जरूर करती होंगी कि इतनी जर्जर इमारतों और दुकानों को तोड़कर नया निर्माण क्यों नहीं किया जाता। दरअसल, यह संभव नहीं है क्योंकि पुरानी दिल्ली में मौजूद ज्यादातर दुकानें और इमारतें शत्रु संपत्तियां हैं जो केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा नियुक्त कस्टोडियन के अधीन हैं। कस्टोडियन के पास पुरानी दिल्ली की शत्रु संपत्तियों से जुड़ी लंबी फेहरिस्त है। बंटवारे से पहले पुरानी दिल्ली की ज्यादातर दुकानें और इमारतें मुसलमानों की थीं जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए। भारत सरकार ने पाकिस्तान से आए कुछ हिंदुओं और सिखों को शुरुआती दिनों में ये दुकानें आवंटित की थी लेकिन 1968 में शत्रु संपत्ति कानून बनने के बाद गृह मंत्रालय ने यहां की संपत्तियों को चिन्हित कर शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया। हालांकि सच यह भी है कि पुरानी दिल्ली की कई दुकानों पर अवैध कब्जा भी है जिसे मुक्त कराने में कस्टोडियन भी नाकाम रहा है। पुरानी दिल्ली स्थित दुकानों को कस्टोडियन ने किराये पर भी दे रखा है। कुछ इसी तरह का नजारा आपको कोलकाता, हैदराबाद, लखनऊ और मुंबई में भी दिखेगा। कोलकाता के पार्क स्ट्रीट, एजीसी बोस रोड, मलिक बाजार, बड़ा बाजार, चौरंगी और बेक बागान आदि इलाकों में भी काफी शत्रु संपत्तियां हैं। यहां की ज्यादातर इमारतों की उम्र सौ साल से अधिक है। ये संपत्तियां उन लोगों की हैं जो बंटवारे के बाद ढाका जाकर बस गए।