drugs

निशा शर्मा।

आज पंजाब कई समस्याओं से जूझ रहा है। इनमें किसानों की आत्महत्या, लड़कियों की भ्रूण हत्या, एड्स, हैपेटाइटिस-सी, कैंसर और ड्रग्स जैसी कई समस्याएं हैं। इनमें सबसे बड़ी समस्या नशे की है जिसकी वजह से युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है। पंजाब में ड्रग्स का खतरा बंदूकों के आतंक से कहीं ज्यादा डरावना है। बंदूक की आवाज सबको सुनाई देती है मगर ड्रग्स से पूरी पीढ़ी को बर्बाद करने की सीमा पार दुश्मनों की कोशिश कहीं ज्यादा खतरनाक है। जानकार इसे नारकोटिक्स आतंकवाद बताते हैं। यह आतंकवाद लोगों पर कब हमला करता है वे भी जान नहीं पाते। इस आतंकवाद का शिकार मासूम युवा धीरे-धीरे तड़पकर काल के गाल में समा रहा है।

ड्रग्स के लती इस बात से अनजान हैं कि जिस जहर को वह शौक में, मजबूरी में या धंधे के तौर पर ले रहे हैं वह उन्हे धीरे-धीरे मौत की तरफ ले जा रहा है। जहां से चाहकर भी लौटना उनके लिए नामुमकिन है। चिट्टा (हेरोईन) पूरे प्रदेश में वायरस की तरह फैला हुआ है। कोई शौक के चलते इसका आदी है तो किसी ने मजबूरी में इसका हाथ थामा है ताकि उसे कुछ सुकून मिल सके। पंजाब की युवा पीढ़ी यह नहीं समझ पा रही है कि यह उसकी अर्थी उठाने की तैयारी है। पंजाब में ड्रग्स हेरोईन (चिट्टा), अफीम, डोडा, भुक्की, दर्द निवारक गोलियों के तौर पर मिलती है। ड्रग्स के हिसाब से भी हर क्षेत्र की अपनी कुछ महत्ववपूर्ण बातें हैं जिसके आधार पर पंजाब को तीन हिस्सों में बांटकर समझा जा सकता कि ड्रग्स की कौन सी किस्म राज्य के किस हिस्से को किस तरह प्रभावित कर रही है और इसकी वजह क्या है।

मांझा की हकीकत
पंजाब का ऊपरी हिस्सा मांझा कहलाता है जो पाकिस्तान की सीमा से सटे व्यास नदी का उत्तरी इलाका है। इसमें अमृतसर, गुरदासपुर, तरनतारन, पठानकोट जिले आते हैं। चिट्टा (हेरोईन) के इस्तेमाल के हिसाब से माझा पहले नंबर पर है। इसकी वजह सीमा पार से आने वाली हेरोईन की यहां आसानी से उपलब्धता है।

IMG-20160625-WA0006

अमृतसर जिले के फैजपुरा गांव के 24 साल के नंदू की हेरोईन लेने से मौत हो गई। नंदू की मां वीना ने रोते हुए बताया, ‘मेरा बेटे को नशे की लत लग गई थी। वह बीमार रहने लगा तो हम उसे डॉक्टर के पास ले गए। वहां जाकर पता चला कि वह हेरोईन का नशा करता है। उसकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि वो कहने लगा था कि मां मुझे नहीं मरना है। मुझे बचा लो। डॉक्टर ने एक्स-रे करवाने के लिए कहा। जैसे ही नंदू के पापा एक्स-रे के लिए उसे ले जाने लगे उसने अपने पिता की बाहों में दम तोड़ दिया।’ वीना के आंसू रूक नहीं रहे थे लेकिन वो बताती जा रही थी कि उसका परिवार ड्रग्स के चलते किस तरह तबाह हुआ। वीना का घर कभी खिलखिलाता था। आज वही घर वीरान पड़ा है। उस वीराने की वह अकेली गवाह बनकर रह गई है। नंदू की मौत के करीब एक साल बाद उसके दूसरे बेटे की भी मौत हो गई। इस सदमे से कुछ दिन बाद ही उसके पिता की भी मौत हो गई। वीना से यह पूछने पर कि वह सरकार से क्या चाहती है? तो वह पलटकर सवाल पूछती है कि जिसका घर ही तबाह हो गया हो वह क्या चाहेगा। मौत खुलेआम बिक रही है। मेरे बेटों ने मौत खरीदी थी। इस तरह की कई कहानियां माझा के गांवों में आम है।

दोआबा का दर्द
पंजाब का दूसरा इलाका दोआबा है। यह सतलुज और व्यास नदी के बीच का इलाका है। यहां गेहूं की पैदावार ज्यादा है। इसके तहत जालंधर, होशियारपुर, नवांशहर, कपूरथला, फगवाड़ा जिले आते हैं। आर्थिक रूप से यह संपन्न इलाका है। इसका कारण यह है कि राज्य में यहीं के सबसे ज्यादा लोग विदेशों में रहते हैं। विदेशों में रहने वाले लोग या तो अपने परिवार को पैसे भेजते हैं या फिर परिवार के अन्य सदस्यों को अपने साथ विदेश ले जाते हैं। संपन्नता का स्याह पहलू यह है कि यहां के लोग शौकिया ड्रग्स के लती हैं। यहां भुक्की और चिट्टा (हेरोईन) का इस्तेमाल ज्यादा है। ये ड्रग्स को अपनी संस्कृति और रूतबे का हिस्सा मानते हैं। यहां लड़कियों की भ्रूण हत्या के मामले भी ज्यादा हैं। जालंधर के रहने वाले सुखबीर ने बताया, ‘मैंने शौकिया तौर पर नशा करना शुरू किया था। मेरे दोस्त हेरोईन का सेवन करते थे। एक दिन मेरे एक दोस्त ने कहा कि ‘इक वारी चख के तां देख, ऐथे बैठे बैठे बार (विदेशों) दी सैर कर आउगा। नाल मजा शराब तों दुगना मिलूगा।’ मतलब चखेगा तो बहुत मजा आएगा। बैठे-बैठे विदेशों की सैर हो जाएगी। ऐसे ही उसने मुझे आदत डाल दी।’ यह पूछने पर कि उसे कभी पैसे की कमी महसूस नहीं हुई तो उसने बताया कि ‘हमारे पास जमीन बहुत है। उसे ठेके पर दे देते हैं जिससे पचास लाख रुपये सालाना आ जाता है। इसके अलावा कुछ दुकानें किराये पर दे रखी हैं। उनका भी किराया आता है।’ वह रोजाना दो ग्राम हेरोईन लेता है जो करीब दस हजार रुपये की पड़ती है। इससे पता लगता है कि दोआबा की युवा पीढ़ी नशे पर कितना खर्च करती है।

Drug-pun - Copy

मालवा भी अछूता नहीं
पंजाब के मालवा इलाके में फिरोजपुर, फरीदकोट, मुक्तसर, बरनाला, बठिंडा, मनसा, लुधियाना, पटियाला, संगरूर, फतेहगढ़ साहिब, मोहाली, मोगा, रोपड़ जिले आते हैं। यह इलाका सतलुज के दक्षिण में स्थित है। इस इलाके में कपास की खेती की जाती है। यहां दो वर्ग के लोग रहते हैं। इनमें जाट सिख अमीर हैं तो दूसरे गरीब किसान जिनके पास जमीन तो है लेकिन बंजर है। इस हिस्से में सबसे ज्यादा लोग नशे के आदी हैं। यहां भुक्की का चलन ज्यादा है। हर घर में कम से कम एक सदस्य भुक्की का सेवन करता मिल जाएगा। इस क्षेत्र के लोग ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं। यहां का गरीब मानसिक, शारीरिक, सामाजिक परेशानी से जूझता ड्रग्स और आत्महत्या की ओर रुख कर लेता है। यहां के किसानों के मुताबिक मानसिक, शारीरिक, सामाजिक तनाव पर भुक्की मरहम का काम करती है। इसलिए वे इसके आदी हो चुके हैं। बिहार से यहां आए मजदूर भी इसका सेवन करते हैं। पहले इन लोगों को चाय में मिलाकर नशा दिया जाता था ताकि वे खेतों में खूब काम कर सकें लेकिन अब ये लोग इसके आदी हो गए हैं। अपनी थकान कम करने के लिए किसान और खेतिहर मजदूर इसे इस्तेमाल में लाते हैं। आम तौर पर अफीम की भुक्की का इस्तेमाल किया जाता है। मालवा इलाके का कम से कम एक तिहाई तबका अफीम का इस्तेमाल करता है। इसकी एक वजह इसका सस्ता होना है। एक दिन की खुराक की कीमत करीब 25-30 रुपये के बीच पड़ती है। भुक्की को यहां के लोग ड्रग्स नहीं बल्कि तंबाकू या खैनी की तरह मानते हैं।

मालवा के अमीर किसानों के पास बड़ी मात्रा में जमीन है। वे जमीनों को ठेके पर देकर सालाना लाखों कमाते हैं। बिना मेहनत के लाखों की कमाई होने से ये लोग शौकिया ड्रग्स की चपेट में आते हैं।

पंजाब सरकार के सोशल सिक्योरिटी डिपार्टमेंट आॅफ वूमन एंड चिल्ड्रन की वेबसाइट के आंकड़े को मानें तो राज्य में ड्रग्स लेने वालों की संख्या खतरे के निशान से ऊपर पहुंच गई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पंजाब के सीमावर्ती इलाके में हेरोईन के इस्तेमाल (15 से 25 साल के युवकों के बीच) का आंकड़ा 75 प्रतिशत है। हालांकि और इलाकों में यह आंकड़ा 73 प्रतिशत के आस-पास है। अमृतसर के फैजपुरा में शायद ही कोई ऐसा घर बचा है जो ड्रग्स की चपेट में ना आया हो या किसी घर में ड्रग्स के चलते कोई मौत ना हुई हो। मकबूल पुरा जैसे गांव तो विधवाओं के नाम से मशहूर हो चुके हैं। यहां हर घर में किसी न किसी की मौत ड्रग्स के चलते हुई है।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा कराए गए पंजाब ओपिओएड डिपेंडेंसी सर्वे के मुताबिक पंजाब में साल 2000 से पहले अफीम की लत लोगों में पाई जाती थी। लेकिन 2007 में फार्मा ड्रग (दर्द निवारक गोलियां आदि) लेने वालों की संख्या 90 प्रतिशत हो गई। 2012 में पचास फीसदी फार्मा ड्रग और पचास फीसदी हेरोईन की लत देखने को मिली। 2015 की बात करें तो आंकड़े बताते हैं कि हेरोईन लेने वालों का आंकड़ा राज्य में 90 फीसदी पहुंच गया है। इससे जाहिर है कि महंगी ड्रग्स सीमा पार से धड़ले से आ रही है।

हाल ही में पंजाब पुलिस ने 7000 पदों के लिए भर्ती निकाली है। इस दौरान डोप टेस्ट भी किया जाएगा। अमूमन पुलिस की भर्ती में डोप टेस्ट नहीं होता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पंजाब किस कदर ड्रग्स की चपेट में है। हेरोईन लेने के लिए औसतन रोजाना 1,400 रुपये चाहिए। ऐसे में पैसे की कमी होने पर नशाखोर अपराध का रास्ता अपना लेते हैं। ज्यादातर नशाखोर खुद ही ड्रग्स का छोटा-मोटा धंधा शुरू कर देते हैं। वह इसे खरीद कर आगे दूसरों को बेचते हैं और अपने लिए मुनाफे का एक हिस्सा जुगाड़ लेते हैं। नशे के आदी लोगों को ड्रग्स मिलने से मतलब होता है। उनके लिए पैसा मायने नहीं रखता।

ड्रग्स कैसे पंजाब में हर तबके तक पहुंच रहा है इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बॉर्डर की पहरेदारी करने वालों में भी कुछ लोग इस कारोबार से जुड़े हैं। माफिया पर नजर रखने वाली इंटेलिजेंस का रवैया भी ढीला है। पुलिस जितनी ड्रग्स कब्जे में लेती है उसका आधा ही सार्वजनिक करती है। बाकी को बेच कर पुलिस वाले कमाई करते हैं। सरकार भी इस मामले पर चुप्पी साधे बैठी है। अफीम पर लगाम लगाने की सरकार की नीति ने भी ड्रग्स के बाजार में हेरोईन की जरूरत पैदा की है।