वीरेंद्र नाथ भट्ट, लखनऊ।

जमाने बाद उत्तर प्रदेश में खाकी वर्दी को इकबाल मिला है। जिस वर्दी पर मुजफ्फरनगर के दंगों से लेकर मथुरा कांड तक के घिनौने दाग लगे थे,  उस वर्दी को आज नए मुखिया के तौर पर सुलखान सिंह जैसा ईमानदार चेहरा मिला है।

यह वही सुलखान हैं,  जिन्होंने सपा सरकार में हुए पुलिस भर्ती घोटाले की जांच कर ऐसा सच उजागर किया किया था कि मुलायम सिंह और शिवपाल खार खा बैठे।

नतीजा यह हुआ कि अगली बार सपा सरकार आने पर उन्हें सजा के तौर पर पिछले पांच साल से महत्त्व पूर्ण पद से दूर रखा गया। उत्तर प्रदेश के आईपीएस कैडर के सबसे सीनियर इस आईपीएस अफसर को बहुत पहले ही डीजीपी बन जाना चाहिए था,  मगर उन्हें अखिलेश सरकार ने कभी उन्नाव के दो कमरे वाले ऑफिस में तो कभी ट्रेनिंग जैसे महत्वहीन महकमे में भेजकर हमेशा हाशिये पर रखा।

उत्तर प्रदेश में 2007 से पहले मुलायम सिंह के शासनकाल में कांस्टेबल भर्ती घोटाला हुआ था। भर्ती घोटाले के तार शिवपाल यादव तक जुड़े थे।  पैसे लेकर जाति विशेष के अभ्यर्थियों को नौकरी दिए जाने की शिकायतों पर 2007 में आई बसपा सरकार में मुख्यमंत्री मायावती ने जांच कराई। तत्कालीन सीनियर आईपीएस शैलजाकांत मिश्रा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने जांच की। इस जांच कमेटी में 1980 बैच के सुलखान भी शामिल थे।

वरिष्ठ अफसरों की कमेटी ने पुलिस भर्ती में मानकों को दरकिनार करने का खेल पकड़ा। कमेटी की सिफारिशों पर उस वक्त कई सीनियर पुलिस अफसरों को सस्पेंड किया गया था।  नतीजा था कि जब 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो पहले से खार खाए मुलायम और शिवपाल ने सुलखान सिंह से बदला लेने में देरी नहीं की। उन्हें महत्वहीन पद पर पहले उन्नाव के ट्रेनिंग स्कूल भेजा गया और बाद में डीजी ट्रेनिंग बनाया गया।