अभिषेक रंजन सिंह।

2 जून 1995 को उत्तर प्रदेश की राजनीति में जो हुआ वह शायद ही कहीं हुआ होगा। मायावती उस वक्त को जिंदगी भर नहीं भूल सकतीं। उस दिन को प्रदेश की राजनीति का काला दिन कहें तो कुछ भी गलत नहीं होगा। उस दिन एक उन्मादी भीड़ सबक सिखाने के नाम पर दलित नेता की आबरू पर हमला करने पर अमादा थी। उस दिन को लेकर तमाम बातें होती रहती हैं लेकिन यह आज भी कौतूहल का विषय है कि 2 जून को लखनऊ के राज्य अतिथि गृह में क्या हुआ था। मायावती के जीवन पर आधारित अजय बोस की किताब ‘बहनजी’- बायोग्राफी आॅफ मायावती’, में स्टेट गेस्ट हाउस की इस घटना का पूरा ब्योरा दिया गया है।
दरअसल, 6 जून 1992 को बाबरी ढांचे के ध्वंस के बाद 1993 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के मध्यावधि चुनाव से पूर्व समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में गठबंधन हुआ था। चुनाव में इस गठबंधन को स्पष्ट जीत तो नहीं मिली लेकिन कांग्रेस, जनता दल और वामपंथी दलों के गठजोड़ से यह सरकार बनाने में सफल रहा और मुलायम सिंह यादव मुख्य मंत्री बने। 176 सीट जीत कर सबसे बड़े दल भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। लेकिन आपसी मनमुटाव के चलते 2 जून 1995 को बसपा ने सरकार से किनारा कर लिया और मुलायम सरकार अल्पमत में आ गई। सरकार को बचाने के लिए जोड़ घटाव किए जाने लगे। जब बात नहीं बनी तो नाराज सपा के कार्यकर्ता और विधायक लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए जहां मायावती सूट नंबर 1 में ठहरी हुई थीं। सपा के नेता बसपा के विधायकों का अपहरण कर उन्हें ले गए। इस कारनामे को अंजाम देने वाला एक नेता सपा का विधायक बना तो दूसरा विधान परिषद का सदस्य। इस बीच मौके पर लखनऊ की जिला अधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ओमप्रकाश सिंह पहुंचे। लेकिन मूकदर्शक बने रहे। ओमप्रकाश सिंह आजकल उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक हैं।
अजय बोस अपनी पुस्तक में लिखते हैं- ‘चीख पुकार मचाते समाजवादी पार्टी के विधायक, कार्यकर्ता और भीड़ अश्लील भाषा और गाली गलौज का इस्तेमाल कर रहे थे। कामन हाल में बैठे बहुजन समाज पार्टी के विधायकों ने जल्दी से हाल का मुख्यद्वार बंद कर दिया परन्तु उन्मादी भीड़ ने उसे तोड़कर खोल दिया। फिर वे असहाय बसपा विधायकों पर टूट पड़े और उन्हें बुरी तरह मारा पीटा। कम से कम पांच विधायकों को घसीटते हुए जबरदस्ती गेस्ट हाउस के बाहर ले जाकर गाड़ियों में डाला गया जो उन्हें मुख्यमंत्री (मुलायम सिंह यादव) के निवास स्थान पर ले गर्इं। उन्हें राजबहादुर के नेतृत्व में बसपा विद्रोही गुट में शामिल होने के लिए और एक कागज पर मुलायम सिंह सरकार को समर्थन देने की शपथ लेते हुए दस्तखत करने के लिए कहा गया। उनमें से कुछ तो इतना डर गए थे कि उन्होंने कोरे कागज पर दस्तखत कर दिए।
विधायकों को देर रात तक वहां बंदी बनाए रखा गया। जिस समय स्टेट गेस्ट हाउस में बसपा विधायकों को इस तरह से धर दबोचा जा रहा था जैसे मुर्गियों को कसाईखाने ले जाया जा रहा हो, मायावती सूट नंबर एक में कुछ विधायकों के साथ बैठी थीं। एक विचित्र नाटक घटित हो रहा था। बाहर की भीड़ से कुछ विधायक बच कर निकल आए थे और उन्होंने मायावती के कमरे में छिपने के लिए शरण ले ली थी। अन्दर आने वाले आखिरी वरिष्ठ बसपा नेता आरके चौधरी थे जिन्हें सिपाही रशीद और चौधरी के निजी सुरक्षा गार्ड लालचंद बचा कर लाए थे। कमरे में छिपे विधायकों को लालचंद ने दरवाजा अन्दर से लॉक करने की हिदायत दी। उन्होंने दरवाजे अभी बंद ही किए थे कि भीड़ में से एक झुंड गलियारे से चीखता हुआ घुसा और दरवाजा पीटने लगा।
जातिसूचक गाली और औरत को उसकी मांद से घसीट कर बाहर निकालो जैसे शब्दों में भीड़ का शोर सुनाई दिया। इस भीड़ में कुछ विधायक और महिलाएं भी शामिल थीं। दरवाजा पीटने के साथ साथ चिल्ला चिल्ला कर भीड़ गंदी गंदी गालियां देते हुए व्याख्या कर रही थी कि एक बार घसीट कर बाहर निकालने के बाद मायावती के साथ क्या किया जाएगा। हालात बहुत तेजी से काबू के बाहर हो रहे थे। मायावती को दो कनिष्ठ पुलिस अफसरों ने बचाया। ये थे लखनऊ के थाना हजरतगंज के थानेदार विजय भूषण और सुबच सिंह बघेल जिन्होंने कुछ सिपाहियों को साथ लेकर बड़ी मुश्किल से भीड़ को पीछे धकेला। फिर वे सब गलियारे में कतारबद्ध होकर खड़े हो गए ताकि कोई उन्हें पार न कर सके। क्रोधित भीड़ ने फिर से नारे लगाना और गाली देना शुरू कर दिया और मायावती को घसीट कर बाहर ले जाने की धमकी देने लगे।
कुछ पुलिस अफसरों की इस साहसपूर्ण और सामयिक कार्रवाई के अलावा ज्यादातर उपस्थित अधिकारियों ने जिनमें राज्य अतिथि गृह के मैनेजर और सुरक्षा कर्मचारी भी शामिल थे, इस पागलपन को रोकने की कोई कोशिश नहीं की। यह सब एक घंटे से ज्यादा चलता रहा। चश्मदीद गवाहों के अनुसार पुलिस के अधिकारी खड़े सिगरेट फूंक रहे थे। स्टेट गेस्ट हाउस में भीड़ का आक्रमण होने के तुरंत बाद रहस्यात्मक ढंग से गेस्ट हाउस की बिजली और पानी की सप्लाई काट दी गई जो कि प्रशासन की मिलीभगत का एक और संकेत था। लखनऊ के जिला अधिकारी के वहां पहुंचने के बाद ही हालत में कुछ सुधार आया। उन्होंने क्रोधित भीड़ का डटकर मुकाबला करने की हिम्मत की और जागरूकता का परिचय दिया। लखनऊ के पुलिस अधीक्षक राजीव रंजन के साथ मिलकर जिला अधिकारी ने सबसे पहले भीड़ के उन सदस्यों को गेस्ट हाउस से बाहर धकेला जो विधायक नहीं थे। बाद में अतिरिक्त पुलिस बल आने पर उन्होंने समाजवादी पार्टी के विधायकों समेत सभी को गेस्ट हाउस परिसर के बाहर निकलवा दिया। यद्यपि ऐसा करने के लिए उन्हें विधायकों पर लाठी चार्ज का आदेश देना पड़ा। सपा विधायकों के खिलाफ कार्रवाई न करने की मुख्यमंत्री कार्यालय से मिली चेतावनी को अनसुना कर वे अपने फैसले पर डटे रहे। अपनी ड्यूटी बिना डरे और बिना पक्षपात के करने के फलस्वरूप रात 11 बजे जिला अधिकारी का तबादला कर दिया गया।
राज्यपाल के कार्यालय, केंद्र सरकार और वरिष्ठ भाजपा नेताओं के दखल देते ही ज्यादा से ज्यादा पुलिस बल वहां पहुंचने लगा। मायावती और पार्टी विधायकों को, जिन्होंने अपने को सूट नंबर एक में बंद किया हुआ था, यकीन दिलाने के लिए जिला अधिकारी और अन्य अधिकारियों को बार बार अनुरोध करना पड़ा कि अब खतरा टल गया है और वे दरवाजा खोल सकते हैं। जब उन्होंने दरवाजा खोला तब काफी रात हो चुकी थी।