2010 में हरियाणा में एक घटना ने पूरे राज्य को सदमें में लाकर रख दिया था। दरअसल,, 21 अप्रैल, 2010 को जब गांव मिर्चपुर में कुछ जाट युवक वाल्मीकि समाज की ओर से गुजर रहे थे, तब उन्हें देखकर वहां कुत्ते भौंकने लग गए। इन युवकों को असमय इन कुत्तों का भौंकना रास नहीं आया। आम दिनों की तरह ही मामला गाली-गलौज से होता हुआ मार-पीट तक पहुंच गया, जिसमें कर्णपाल और वीरभान नामक दलित युवक बुरी तरह जख्मी हो गए थे।

मामले ने तूल पकड़ा और 400 के करीब जाट समुदाय के लोगों ने दलितों के घरों को चारों ओर से घेर लिया और आग लगा दी। जलते घरों में एक सोलह साल की विकलांग बच्ची सुमन और उसके पिता ताराचंद की जिंदा जलने से मौत हो गई। इसके अलावा दो दर्जन से अधिक दलितों के घरों को जला दिया गया था।

इस वीभत्स मामले में कुल 97 आरोपी थे। साल 2011 में दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने अपने फैसले में 82 आरोपियों को बरी कर दिया था। जबकि 15 को दोषी बताते हुए सजा सुनाई थी। पीड़ित पक्ष ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की। जिस पर शुक्रवार को फैसला आया है।