नई दिल्‍ली। देशभर में अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले और सांप्रदायिक घटनाओं के बढ़ते मामलों और उन पर केंद्र की ओर से कोई कार्रवाई न होने से इन दिनों साहित्य जगत में जबरदस्त गुस्सा है। इसकी प्रतिक्रिया में सभी भाषाओं के लेखक व साहित्यकार अपने साहित्य अकादमी व अन्य पुरस्कार लौटा रहे हैं। इसी कड़ी में हिंदी के मशहूर लेखक काशीनाथ सिंह ने भी साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की है। अब तक 30 से भी ज्यादा साहित्यकार यह कदम उठा चुके हैं। मगर हिंदी के मशहूर आलोचक व साहित्यकार और काशीनाथ सिंह के बड़े भाई नामवर सिंह लेखकों के इस कदम को सही नहीं मान रहे हैं। उनका कहना है कि लेखकों का विरोध केंद्र सरकार से है न कि साहित्य अकादमी से। पुरस्कार अकादमी देता है न कि केंद्र सरकार।

बयान ज्यादा दुखदायी

मशहूर उपन्यास ‘काशी का अस्सी’ के लेखक काशीनाथ सिंह ने पुरस्कार लौटाने की घोषणा करते हुए कहा कि कन्नड़ लेखक एमएम कुलबर्गी, डॉ. दाभोलकर और गोविंद पनसारे की हत्या, दादरी कांड और इन मामलों पर केंद्रीय मंत्रियों के बयानों से आहत होकर वे सम्मान लौटा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन घटनाओं से ज्यादा उन्हें इन पर दिए गए मंत्रियों के बयान ने उन्हें ज्यादा दुख पहुंचाया है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि प्रधानमंत्री ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साधे हैं। काशीनाथ सिंह को उनके उपन्यास ‘रेहन पर रग्घू’ के लिए वर्ष 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फिल्म निर्देशक चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने हाल ही में उनके उपन्यास ‘काशी का अस्सी’ पर आधारित फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी’ बनाई है। साहित्य अकादमी के अलावा उन्हें शरद जोशी सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, कथा सम्मान, राजभाषा सम्मान और भारत भारती अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

उन्होंने कहा कि आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई है। असहिष्णुता की स्थिति यह है कि एक विशेष पक्ष को पसंद न आने वाली बात रखने वालों की हत्या की जा रही है और दादरी जैसे कांड हो रहे हैं। इन घटनाओं ने जनपक्षधर लेखकों को आहत कर दिया है। उन्होंने कहा कि पुरस्कार लौटाने का यह फैसला काफी कठिन था। मैंने दो-तीन दिन तक इस पर विचार किया। जब मंत्रियों की बयानबाजी साहित्यकारों के खिलाफ आने लगी तो मैंने फैसला कर लिया। उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी एक स्वायत्त संस्था है और उसकी संरचना में एक सीमित लोकतंत्र अंतर्निहित है। यह भी खतरे में है। अकादमी को खुलकर भारतीय लोकतंत्र के संवैधानिक मूल्यों और लेखकों की स्वतंत्रता का पक्ष लेना चाहिए।

नामवर सिंह
नामवर सिंह

नामवर का अपना मत
लेखकों के इस कदम को बड़े भाई नामवर सिंह द्वारा ठीक नहीं ठहराए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह उनका (नामवर) मत है। हो सकता है कि दो-चार दिन में वो भी अपना मत बदल लें। नामवर सिंह का कहना है कि वह सभी साहित्यकारों का सम्मान करते हैं  लेकिन उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस नहीं करने चाहिए। यह पुरस्कार उन्हें सरकार नहीं बल्कि साहित्य अकादमी द्वारा दिया जाता है।प्रदेश सरकार या इसके तहत आने वाले पुरस्कार नहीं लौटाने के सवाल पर काशीनाथ ने कहा कि प्रदेश सरकार कम से कम बात तो सुनती है। यहां अभिव्यक्ति पर किसी तरह का कोई पहरा नहीं है। सरकार कुछ करे या न करे पर साहित्यकार अपनी बात खुलकर कह तो सकते हैं।

साहित्य किसी विचारधारा का नहीं

उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशक से सांप्रदायिक और फासीवादी शक्तियां भारतीय समाज और लोकतंत्र को अपने नियंत्रण में लेकर उसे अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं के मुताबिक गढ़ने में लगी हैं। यह पूछने पर कि क्या वे साहित्यकार ही पुरस्कार लौटा रहे हैं, जो किसी विशेष दल या विचारधारा से जुड़े हैं? प्रो. काशीनाथ सिंह ने कहा कि साहित्यकार किसी विचारधारा से जुड़ा हो सकता है, लेकिन साहित्य किसी दल या विचारधारा का नहीं होता। यह जनपक्षधर होता है। साहित्यकार लिखते समय जनता और समाज के प्रति जवाबदेह होता है।

उन्होंने कहा, ‘मैं 23 अक्टूबर का इंतजार कर रहा हूं कि उस दिन साहित्य अकादमी की इमरजेंसी मीटिंग में क्या होता है। मुझे लगता है कि भाजपा साहित्य अकादमी की आजादी खत्म करना चाहती है और उसे अपने कब्जे में लेना चाहती है।’ काशी का अस्सी और ‘रेहन पर रग्घू’ के अलावा काशीनाथ सिंह ‘अपना मोर्चा’, ‘सदी का सबसे बड़ा आदमी’, ‘घर का जोगी जोगड़ा’ जैसे उपन्यास भी लिख चुके हैं।

देश में बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा और संवेदनहीनता के खिलाफ साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटने की शुरुआत देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की भतीजी नयनतारा सहगल ने की थी। यह सिलसिला जारी है। अब तक लगभग 30 लेखक अपना सम्मान लौटा चुके हैं। केंद्र सरकार के कई मंत्री इन लेखकों द्वारा सम्मान लौटाए जाने की खिल्ली उड़ाकर अपनी संवेदनहीनता का परिचय दे चुके हैं।