राजीव थपलियाल

भारत से अंग्रेजों के जाने के साथ ही कुछ चीजें अधूरी छूट गई थीं जो आजादी के 68 साल बाद भी पूरी नहीं हो सकी हैं। पहाड़ में रेल चलाने का जो काम अंग्रेज कर गए थे, स्वतंत्र भारत की सरकारें उसे बहुत आगे नहीं बढ़ा पाई हैं। परिणाम यह कि आज भी लोग विकास के लिए यातायात के सुगम और सस्ते साधन की आस करते-करते पहाड़ छोड़ कहीं अन्यत्र सुविधाजनक जगह जाने को विवश हैं। ऐसी ही एक उम्मीद थी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन की।

लंबी जद्दोजहद और सियासी गुणा-भाग के बाद आखिरकार वित्तीय वर्ष 2010-11 में 4295 करोड़ की स्वीकृति मिली थी। बताया गया कि 125.9 किलोमीटर लंबी इस रेलवे लाइन पर प्रति किलोमीटर 134.31 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। अब यह परियोजना 16815.53 करोड़ की है, जिस पर कुल 18 हजार करोड़ की लागत आएगी। उत्तराखंड के राजस्व विभाग के मुताबिक इस लाइन का 105 किमी भाग अर्थात 83 फीसदी हिस्सा 16 सुरंगों से गुजरेगा, जिसमें सबसे लंबी सुरंग की लंबाई 15.1 किलोमीटर की होगी। यह रेल लाइन देहरादून (ऋषिकेश), टिहरी,  पौड़ी, रुद्रप्रयाग तथा चमोली जिलों से गुजरेगी। लाइन में 16 छोटे-बड़े नए पुलों का निर्माण किया जाएगा, जिसमें से पांच स्थानों पर दोहरे पुल होंगे। इस रेल लाइन पर 13 रेलवे स्टेशन बनाए जाएंगे।

rishikesh-karnprayag-rail-line-1नौ नवंबर 2011 को गौचर हवाई पट्टी में शिलान्यास के बाद से ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के निर्माण कार्य को लेकर आमजन में जो उम्मीदें जगी थीं, अभी उनके फलीभूत होने में वक्त लगना तय है। रेल लाइन निर्माण के लिए बीते दो वर्षों में रेलवे बोर्ड ने जियोलॉजिकल सर्वें आफ इंडिया की मदद से दो चरणों में सर्वेक्षण कार्य पूरा कराने के साथ ही अपने स्तर से वन विभाग और राजस्व विभाग से निर्माण में उपयोग होने वाली भूमि के सत्यापन की प्रक्रिया पूरी कर दी है। केंद्र सरकार की इस परियोजना के लिए रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) ने इन चार सालों में सर्वे सहित अपने हिस्से के सभी कार्य करीब-करीब पूरे कर लिए हैं। केंद्र सरकार के उपक्रम आरवीएनएल ने अपना कार्य तो कर दिया, लेकिन सवाल यह है कि आखिर काम कब शुरू होगा? दरअसल लाखों लोगों की उम्मीद ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन पर राज्य सरकार की छुकछुक भारी पड़ रही है।

राज्य सरकार की नीयत में शायद विकास की जल्दी नहीं है। इसीलिए केंद्र सरकार द्वारा पारित ‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013’ के विभिन्न प्राविधानों की अधिसूचना जारी करने में उत्तराखंड सरकार कछुआ चाल चल रही है। इसका सीधा असर ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन पर पड़ रहा है। इस अधिनियम के तहत विभिन्न अधिसूचनाएं जारी करने के बाद राज्य सरकार भूमि अधिग्रहीत कर रेल मंत्रालय को हस्तातंरित करेगी।

yashpal-Aryaभूमि अर्जन, पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013’ के तहत सरकार अधिसूचना जारी करने की दिशा में है। इस अधिनियम में बहुत सी वैधानिक प्रक्रियाओं की बाघ्यताएं हैं, जिसके कारण थोड़ा बिलंब होना स्वाभाविक है। राज्य सरकार इस रेल मार्ग का महत्व अच्छी तरह समझती है और इसका काम जल्द शुरू कराने के लिए जुटी है। अब अधिसूचना जारी होने में ज्यादा टाइम नहीं लगने वाला।

-यशपाल आर्य, राजस्व मंत्री, उत्तराखंड

मालूम हुआ है कि सर्वेक्षण के पश्चात आरवीएनएल ने अपने स्तर से भू अधिग्रहण संबंधी प्रारंभिक कार्रवाई पूर्ण कर ली है। अब देरी राज्य स्तर से है। रेल मार्ग में टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग और चमोली जिले के निवासियों की निजी भूमि आ रही है। इनकी पत्रावलियां कई माह पूर्व जिलों से शासन को भेजी जा चुकी हैं। अधिग्रहण के लिए प्राथमिक नोटिफिकेशन जारी होना जरूरी है, जिसमें भूमि स्वामियों का ब्यौरा होगा। साथ ही एसएआईए और आरआर (पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन) के नोटिफिकेशन होने हैं। लेकिन ये तभी हो पाएंगे, जब राज्य सरकार ‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013’ का नोटिफिकेशन जारी करे।

इस अधिनियम के तहत एक हजार एकड़ तक की भूमि के लिए जिला कलेक्टर को अधिकृत करने के साथ ही सामाजिक समाघात आकलन के लिए कमेटियों का गठन किया जाना है। इसके अलावा विशेषज्ञ समूहों का गठन भी होगा। पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन के लिए प्रशासक के रूप में अपर जिलाधिकारी को नियुक्त करने की अधिसूचना के साथ पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन आयुक्त के पद पर मंडल कमिश्नर की नियुक्ति की भी अधिसूचना जारी होनी है। सोशल ऑडिट के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन समिति के गठन की अधिसूचना भी जारी की जाएगी। सोशल ऑडिट के लिए ही सरकारी अधिकारियों से अलग सदस्यों की नियुक्ति की भी अधिसूचना जारी करने का प्रावधान अधिनियम में है। इस सबके बाद मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य अनुश्रवण समिति के गठन की अधिसूचना जारी होनी भी आवश्यक है। इस सबसे ऊपर पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन के क्रियान्वयन का पुनरावलोकन करने के लिए भूमि अर्जन, पुनर्वासन, पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। पूर्व की कांग्रेसनीत कांग्रेस सरकार के समय जनता के हित के बनाए गए ‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013’ में अधिसूचनाओं का अंबार है। इन अधिसूचनाओं से पहले अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए नियमावली बनानी जरूरी है।

अधिनियम की अधिसूचना में लेटलतीफी पर राजस्व विभाग के अंडर सेक्रेटरी आलोक कुमार सिंह कहते हैं कि नियमावली बनाई जा चुकी है, जिसे नियमानुसार विधायी और न्यायिक विभाग में परीक्षण के लिए भेजा गया है। न्यायिक विभाग से नियमावली पास होकर आ गई और उम्मीद है कि विधायी विभाग से भी जल्द ही आ जाएगी, जिसे आते ही आगे की कार्यवाही के लिए मंत्रिमंडल के सम्मुख रखा जाएगा। अधिनियम में वैधानिक बाध्यता के तौर पर साफ लिखा है कि नियमावली और अधिसूचना को जारी करने से पूर्व मंत्रिमंडल की अनुमति लेने के बाद विधानसभा पटल पर रखा जाना जरूरी है। यानी अभी अधिसूचना जारी करने की प्रक्रिया में ही बहुत वक्त लगने वाला है।

भूमि अधिग्रहण की नियमावली उत्तराखंड शासन स्तर पर पांच माह से लम्बित है। जिस कारण आगे का काम रुका हुआ है। निययमावली बने तो भूमि अधिग्रहित कर रेल लाइन का काम आगे बढ़े।

– डॉ एस के बर्णवाल, डीजीएम, रेल विकास निगम लिमिटेड

इस देरी का खामियाजा आरवीएनएल के साथ ही इससे प्रभावित होने वाले लोग भुगत रहे है। रेल मार्ग में टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग और चमोली जिले के निवासियों की निजी भूमि आ रही है। इसलिए अभी तक अधिसूचना जारी न होने के कारण सरकारी योजनाओं के लिए ली जाने वाली निजी नापभूमि के मुआवजे की दर तय नहीं हो पाई है। इस कारण सामाजिक समाघात निर्धारण (सोशल इंपैक्ट असेसमेंट) प्रक्रिया भी शुरू हो नहीं हो पाएगी। इस लेटलतीफी के चलते रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) रेल मार्ग के लिए स्थानीय निवासियों की भूमि अधिग्रहीत नहीं कर पा रहा है। हालांकि इस देरी पर राजस्व मंत्री यशपाल आर्य का कहना है कि पहले सरकार के लिए जमीन लेना आसान था, लेकिन अब ‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013’ में यह सरल नहीं रह गया है। अधिनियम की कानूनी बाघ्यताओं के कारण जमीन अधिग्रहण की कार्यवाही में थोड़ी देरी स्वाभाविक है। इस परियोजना में करीब 45 गांवों की 169.151 हेक्टेयर भूमि, राजस्व विभाग की 104.558 हेक्टेयर के साथ ही कई सरकारी विभागों की  5.758 हेक्टेयर जमीन व परिसंपत्तियों का अधिग्रहण होना है। इसके अलावा देहरादून, टिहरी, रुद्रप्रयाग और चमोली जिले में 323.116 हेक्टेयर भूमि का अर्जन होना है।

राजस्व मंत्री के मुताबिक कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछने की पहली बाधा दूर हो गई है। करीब 308 हेक्टेयर वन भूमि पर रेलवे लाइन के लिए पहले चरण में क्लियरेंस मिल गया है। दूसरे चरण के क्लियरेंस का कार्य तेजी से चल रहा है।

रेल अधिकारियों के मुताबिक पूरे प्रोजेक्ट को पांच से सात वर्ष में पूरा कर लिया जाएगा। जिसे तीन चरणों में पूरा किया जाएगा। लेकिन  सरकारी कामकाज को भलीभांति जानने वाली जनता इसे मजाक मान रही है। रुद्रप्रयाग के निवासी नवल किशोर खाली कहते हैं जब राज्य सरकार वर्ष 2011 से वर्ष 2015 तक चार सालों में भूमि अधिग्रहण का काम ही नहीं निपटा सकी है, तो आगे की बात सोचना फिलहाल बेमानी होगा।

रेल से विकास की आस लगाने वाले चमोली जिले के नागनाथ पोखरी (देवस्थान) निवासी सतीश चंद्र सती दुखी मन से कहते हैं कि राज्य सरकार के लेटलतीफ रवैये के खिलाफ भाजपा नेताओं की चुप्पी भी निराशाजनक है। पूर्व रेल राज्य मंत्री सतपाल महाराज की राजनीति रेल पर ही रही है, लेकिन वे भी भाजपाई पदों के तिलिस्म में इस कदर खो गए हैं कि उन्हें भी रेल की याद नहीं रही। जबकि इन प्रभावित होने वाले जिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी का भी ज्यादा सरोकार नजर नहीं आता।