उत्तराखंड कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने से जुड़ी याचिका पर आज नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई जिसके बाद कोर्ट ने मामले  में फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट अपना  फैसला 9 मई को सुनाएगा। बाग़ी विधायकों ने उनकी सदस्यता रद्द करने के विधानसभा अध्यक्ष के फ़ैसले को हाइकोर्ट में चुनौती दी थी। बाग़ी विधायकों की ओर से वरिष्ठ वकील सी ए सुंदरम और दिनेश द्विवेदी ने पैरवी की जबकि स्पीकर और शिकायतकर्ता की ओर से कपिल सिब्बल, उनके बेटे अमित सिब्बल जैसे वकील दलील देने में जुटे थे। जिन बागी विधायकों के भविष्य का फैसला होना है, वे हैं- अमृता रावत, हरक सिंह रावत, प्रदीप बतरा, प्रणव सिंह, शैला रानी रावत, शैलेंद्र मोहन सिंघल, सुबोध उनियाल, उमेश शर्मा, विजय बहुगुणा।
दरअसल,,  सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दिनांक 10 मई को विधानसभा में बहुमत परीक्षण किया जा रहा है। कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को स्पीकर ने अयोग्य करार दिया है, जिसके कारण अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि वे विधानसभा में होने वाले शक्ति परीक्षण में मतदान कर पायेंगे या नहीं।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश से राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश दे दिया था, जिसके बाद केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली, जहां से केंद्र को राहत मिली और प्रदेश में पुन: राष्ट्रपति शासन बहाल कर दिया गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि वहां बहुमत परीक्षण क्यों ना करा लिया जाये, जिसके बाद वहां 10 मई को शक्ति परीक्षण हो रहा है।

यह है पूरा मामला
18 मार्च को विधानसभा में विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की भाजपा की मांग का कांग्रेस के नौ विधायकों ने समर्थन किया था, जिसके बाद प्रदेश में सियासी तूफान पैदा हो गया और उसकी परिणिति 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन के रूप में हुई थी। गौरतलब है कि उत्तराखंड के चल रहे सियासी संकट के बीच राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को सीबीआई ने स्टिंग मामले की जांच के सिलसिले में पेश होने का समन जारी किया है। इस  स्टिंग के कथित तौर पर उन्हें एक पत्रकार से बागी विधायकों का फिर से समर्थन हासिल करने के लिए डील करते हुए दिखाया गया था।