वीरेंद्र नाथ भट्ट
अप्रैल-मई 2014 में उत्तर प्रदेश के हर शहर और गांव की गलियों में ‘हर हर मोदी घर घर मोदी’ का नारा बुलंद हो रहा था। बाकी देश की तरह उत्तर प्रदेश में भी ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ का नारा गूंज रहा था। लोकसभा चुनाव परिणाम से साबित हुआ कि दोनों नारों का प्रदेश में जबरदस्त असर हुआ और भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 73 पर विजय हासिल की। आज 18 महीने बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए वादों के बोझ तले कराह रही है।

namo

अच्छे दिनों के वादे से भाजपा के लिए उन्माद की हद तक पहुंचा जनसमर्थन अब घोर निराशा में बदलता जा रहा है। केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ लोगों में निराशा का भाव देखकर सहज विश्वास नहीं होता कि इसी दल ने मात्र 18 माह पहले प्रदेश की अस्सी लोकसभा सीटों में से 71 सीटें अपने बूते जीती थीं और दो सीटें उसके गठबंधन साथी अपना दल को मिली थीं। कांग्रेस तो मां-बेटा की दो सीटों में सिमट गई और समाजवादी पार्टी केवल परिवार की पार्टी बन कर रह गयी जिसके एक ही परिवार के पांच सदस्य जीते। बहुजन समाज पार्टी का तो खाता भी नहीं खुल सका।

लेकिन सच यह भी है कि लोगों में निराशा और नाराजगी का कारण मोदी की असफलता या नाकारापन नहीं है बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान उनके द्वारा लोगों में जगाई गई उम्मीदें हैं। किसान, छात्र , बेरोजगार, व्यापारी और हर व्यक्ति जिसकी कोई भी समस्या थी उसको पक्का विश्वास था कि मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही उसकी हर समस्या का निदान पलक झपकते हो जाएगा, जबकि वास्तव में ऐसा होना संभव नहीं था।

2014 में नरेंद्र मोदी के सामने उत्तर प्रदेश के सभी नेता और दल बौने नजर आते थे, अब वे खुलकर मोदी पर निशाना साध रहे हैं। प्रधानमंत्री जनता के गुस्से का निशाना बन रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद मोदी के जादू का असर इतना जबरदस्त था कि उत्तर प्रदेश में केंद्र और राज्य सरकार का अंतर समाप्त हो गया। अब लोग उन छोटी छोटी बातों जैसे- बिजली, पानी, खाद, पुलिस का भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था के लिए भी मोदी को दोष देते नजर आते हैं, जो सीधे तौर पर राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन लोग मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। भाजपा के ही एक नेता ने कहा- मोदी का टीआरपी इस समय बहुत डाउन चल रहा है। कानून व्यवस्था राज्य सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन दादरी में अखलाक के हत्या के बाद पूरे देश में बवाल मचा और सारा दोष केंद्र सरकार पर थोप दिया गया। एक माह से भी अधिक समय तक चले दादरी विवाद में एक बार भी किसी ने राज्य सरकार की जिम्मेदारी पर चर्चा तक नहीं की। उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार भी इस स्थिति का जमकर लाभ उठा रही है। अरहर की दाल महंगी होने से पूरे देश में हाहाकार है। केंद्र ने राज्यों से जमाखोरी रोकने के लिए कार्यवाही करने के लिए कहा। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात व अन्य राज्यों में ताबड़तोड़ छापेमारी की गई। अकेले महाराष्ट्र में कई लाख टन दाल बरामद की गई और उसके बाद देश में अरहर दाल के मूल्य में गिरावट आई। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस तरह की कार्यवाही करने की जरूरत नहीं समझी। समझते भी क्यों, ठीकरा तो मोदी के सिर पर फूट रहा था।’

अब लोग उन छोटी छोटी बातों के लिए भी मोदी को दोष देते नजर आते हैं, जो सीधे तौर पर राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। भाजपा के ही एक नेता ने कहा- मोदी का टीआरपी इस समय बहुत डाउन चल रहा है

भाजपा के एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष का कहना था, ‘लोग केंद्र की कांग्रेस सरकार के रोज नए घोटालों, महंगाई और अखिलेश यादव सरकार की लूट, भ्रष्टाचार से परेशान थे। मोदीजी में एक आशा की किरण दिखी इसलिए लोगों ने भरपूर समर्थन दिया। लेकिन बाद में यह प्रदेश भाजपा के नेताओं की जिम्मेदारी थी कि वे जनता से संवाद करते और वस्तुस्थिति बताते कि क्या काम केंद्र का और क्या राज्य सरकार का है। प्रदेश के नेता अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह से नाकाम रहे।’

शिकायतों की लंबी दास्तान

मोदी सरकार के खिलाफ लोगों की शिकायतों की दास्तान बहुत लम्बी है लेकिन सबसे ऊपर है किसानों के ऊपर प्रकृति की दोहरी मार। गत वर्ष मार्च/अप्रैल में असमय वर्षा से रबी की खेतों में तैयार फसल चौपट ही गयी तो रही सही कसर बाद में सूखे ने पूरी कर दी। धान की फसल में उपज कम हो गई और अब रबी की फसल भी सूखे की मार झेल रही है। मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर और प्रधानमंत्री पर प्रदेश के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली। अब मरे और झेले किसान और नरेन्द्र मोदी!

विडंबना यह है कि मौजूदा उप्र सरकार की जड़ता और लोगों की मोदी से नाराजगी का सीधा लाभ बसपा को मिलता दिख रहा है, लेकिन वोटों की खाई काफी बड़ी है। लोकसभा चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुला था।

हैरत की बात यह भी है कि लोग मोदी सरकार को उस उपलब्धि का श्रेय दे रहे हैं जो कि उसकी नहीं है। बाराबंकी के किसान आनंद सिंह ने कहा कि मैं उत्तर प्रदेश बीज निगम को बीज के लिए गेहूं और धान सप्लाई करता हूं। यदि डीजल के दाम कम न हुए होते तो मैं तो बर्बाद हो जाता क्योंकि वर्षा न होने के कारण धान की फसल को जिंदा रखने के लिए सितम्बर और अक्टूबर में लगातार इंजन चलाकर फसल को सींचना पड़ा। आज लोग कह रहे हैं कि तेल के भाव इसलिए कम हो गए क्योंकि कच्चे तेल का भाव गिर गया, यदि ऐसा ही था तो मनमोहन सिंह की सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया?

क्या बसपा आएगी

विडंबना यह है कि मौजूदा उप्र सरकार की जड़ता और लोगों की मोदी से नाराजगी का सीधा लाभ बसपा को मिलता दिख रहा है। इसके दो कारण नजर आते हैं। एक- सपा सरकार में लचर कानून व्यवस्था जिसको मायावती ‘गुंडाराज’ कहती हैं, के कारण आज लोग मायावती सरकार के दौरान चुस्त दुरुस्त कानून के राज को याद कर रहे है। तब कम से कम आम आदमी को लुटने और घर पर गुंडों द्वारा कब्जा होने का डर नहीं था। दूसरा- 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में मायावती को सत्ता विरोधी लहर का सामना नहीं करना पडेगा। लेकिन समाजवादी पार्टी और भाजपा दोनों को भिन्न-भिन्न कारणों से सत्ता विरोधी लहर का सामना करना होगा।

लेकिन यह भी याद रखना होगा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी और उसका वोट प्रतिशत भी घटकर 19.6 प्रतिशत रह गया था। ऐसे में 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा के लिए वोट की इस खाई को पार करना आसान नहीं होगा क्योंकि विधानसभा चुनाव जीतने के लिए न्यूनतम 30 प्रतिशत वोट की जरूरत होगी।

namo4

भाजपा सांसदों का क्षेत्र में न दिखने, हर जिले में गुटबाजी और उठापटक से भी लोग नाराज हैं। कुछ सांसद तो ऐसे हैं जिन्हें मालूम है की 2019 में ना तो उनको टिकट मिलना है और ना ही उनको उस क्षेत्र से दोबारा चुनाव लड़ना है। भाजपा के एक नेता ने आरोप लगाया कि तमाम सांसद तो मोदी लहर में जीत गए। वो पांच साल केवल मौज करेंगे और 2019 में लोगों का गुस्सा पार्टी को झेलना पडेÞगा। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी चुटकी लेने से नहीं चूकते। वह आए दिन बयान देते हैं कि प्रदेश की जनता को केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी के 73 सांसदों का कोई लाभ नहीं मिल रहा है। सांसदों को चाहिए कि वे केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर विकास योजनाओं के लिए पैसा दिलवाएं, लेकिन ये सांसद कुछ करते ही नहीं हैं और इनकी प्रदेश के विकास में कोई दिलचस्पी नहीं है।

राजनीतिक विश्लेषक अनिल कुमार वर्मा का मत है कि अभी उत्तर प्रदेश में प्रांतीय राजनीति का दौर खत्म होने के आसार कम ही नजर आते हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में अभी भी दो तिहाई पोलिटिकल स्पेस पर सपा और बसपा का ही कब्जा है और यदि अन्य छोटे दलों के जनाधार को जोड़ लिया जाए तो राष्ट्रीय दलों के लिए कम ही जगह दिखती है। हालांकि अपनी बात में वर्मा यह भी जोड़ते हैं कि अभी चुनाव एक साल दूर हैं। यदि भाजपा मुख्यमंत्री के लिए चेहरा प्रोजेक्ट कर चुनाव में उतरती है तो निश्चय ही इससे फर्क पड़ेगा।