निशा शर्मा।

योगी आदित्यनाथ एक साल पहले आज ही के दिन देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। राजनीतिक जानकारों की मानें तो योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से पहले और मुख्यमंत्री बनने तक को एक राजनीति की सतत प्रक्रिया के तौर पर देखा जाना चाहिए। जिसमें योगी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरी तरह से योजनाएं और अभियान शामिल रहे हैं। जानकार बताते हैं कि कट्टर हिन्दु की छवि ने ही उन्हें मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचाया है। यूपी में इसी अभियान के तहत जो सबसे जरुरी चीज़ें हुई उसमें योगी आदित्यनाथ के व्यवहार में आता लगातार बदलाव रहा। पहले के योगी और मुख्यमंत्री बने योगी में वर्तमान में कई बदलाव देखने को मिलते हैं। यह बदलाव सार्वजनिक जगहों पर दिए भाषणों और उनकी वक्ता शैली में भी नजर आता है। क्या यह मीडिया मैनेजमैंट है या योगी यह समझ चुके हैं कि कट्टर हिन्दुवादी की छवि उन्हें राजनीति में लंबी रेस का घोड़ा नहीं बना सकती।

जिस तरह हिंदुत्व की राजनीति से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गुजरात से अपनी पहचान बनाई थी, लेकिन अपनी छवि को लगातार बदलते रहने के लिए वे लगातार मेहनत करते रहे। अब ऐसा लगता है कि योगी आदित्यनाथ भी प्रधानमंत्री के नक्शे कदम पर हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री बनने से पहले भाजपा में रहते हुए भी उनका हर चुनाव में भाजपा नेताओं से टकराव होता रहा। कहा जाता है कि वह अपने लोगों की सूची नेतृत्व के सामने रख देते और उन्हें टिकट देने की मांग करते। कई बार उन्होंने भाजपा के ख़िलाफ़ बाग़ी उम्मीदवारों को खड़ा किया और उनके प्रचार में उतरकर पार्टी के सामने संकट खड़ा कर दिया, लेकिन मुख्यमंत्री बनने से पहले ही उनके रुख में नरमी दिखने शुरु हो गई थी। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने नाराज़ हियुवा नेताओं को सलाह दी कि वो पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों का विरोध न करें। अपने में यह बदलाव उन्होंने इसलिए किया है ताकि पार्टी की ‘बड़ी भूमिकाओं’ में फ़िट हो सकें। इन भूमिकाओं में मुख्यमंत्री की भूमिका को अहम माना जा सकता है।

अपनी मुस्लिम विरोधी टिप्पणियों के लिए विख्यात योगी अब खुद पर काबू करने लगे हैं, अब वह किसी धर्म या जाति के विरूद्ध कट्टर टिप्पणियां करते नजर नहीं आते हैं। इसकी एक वजह उनका सांसद के पद से मुख्यमंत्री बनना हो सकता है। क्योंकि इस बात का जिक्र उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभालते वक्त भी किया था। कि उनकी सरकार का जोर विकास और कानून और व्यवस्था पर होगा। साथ ही वह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच कोई भेदभाव नहीं करेंगे जैसा कि पहले उनके भाषणों से जाहिर होता था।

2017 के चुनावों से पहले पार्टी में कई लोग उनकी आक्रामकता को उनके ख़िलाफ़ अंकित करते रहे। बीजेपी के कुछ नेता उन्हें ‘समावेशी’ नेता नहीं मानते थे, जो सभी धाराओं को साथ लेकर चल सके। 2017 से पहले कुछ नेताओं ने ऐलानिया तौर पर उन्हें वजह बता कर पार्टी छोड़ी। जिसके बाद यह आरोप और मजबूत हुआ कि योगी समावेशी नेता नहीं हैं। लेकिन योगी आदित्यनाथ ने खुद पर जबरदस्त काम किया। उन्होंने अपने कामों के जरिये उन दावों को झूठा साबित करने की कोशिश की जो उन्हें समावेशी नहीं बताते थे। मुख्यमंत्री बनने से पहले एम्स की स्थापना, हवाई सेवाओं के विस्तार और सालों से बंद फ़र्टिलाइज़र कारख़ाने को शुरू करवाने जैसी मुहिम चलाई। जो कारगार भी साबित हुई। और मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रशासन ही नहीं युवाओं के लिए नौकरियों की सौगात देने की भी बात कहीं।

हालांकि मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी कुछ गतिविधियों ने उनकी छवि को नुकसान जरुर पहुंचाया। जिसमें बूचड़खानों पर पाबंदी, और ताजमहल का नाम बदलकर राम महल करना शामिल था। इन गतिविधियों को विपक्ष ने उनके खिलाफ़ हथकंडे के तौर पर अपनाया।  यह मामला इसलिए भी सुर्खियों में रहा क्योंकि उनकी छवि ऐसे नेता कि रही जो लव जिहाद, अल्पसंख्यक विरोधी, मुस्लिम समाज विरोधी बात करता रहा है।

योगी अच्छे से जानते हैं कि अगर वह सिर्फ हिंदुत्व की ही बात करते रहेंगे तो वह आगे तक नहीं जा सकते। उनसे युवाओं का तबका दूर हो सकता है, जो विकास, नौकरियां और अवसर चाहते हैं, ऐसे मतदाताओं की दुनिया में योगी आदित्यनाथ खुद को फिट करने के लिए हिंदुत्व के साथ साथ विकास की राजनीति को आगे बढ़ाने के प्रयास में लगे हुए हैं।