उमेश सिंह

फैजाबाद शहर से दस किलोमीटर की दूरी पर है भदरसा। यहीं पर बिब्बो पैदा हुई। उस समय कौन जानता था कि यह बच्ची भविष्य की मल्लिका ए गजल बेगम अख़्तर है। तब का भदरसा गांव अब छोटा सा अलसाया हुआ कस्बा बन चुका है। दर्द से भीनी भीनी कंपकंपाती आवाज बेगम अख्तर की पहचान बनी। दुनिया ने उनको जाना लेकिन उसी भदरसा ने अपनी बेटी को बिसार दिया। भदरसा के मिरियासी मोहल्ले में बिब्बो कहां पैदा हुई, उस स्थान की पहचान करना भी मुश्किल हो गया है। अवध की राजधानी रही फैजाबाद की अदबी जमीन बहुत उर्वर रही है। यहां की माटी ने संस्कृति के नायाब हीरे दिए, जो आज भी जगमगा रहे हैं। यहां की सांस्कृतिक परंपरा की पहचान बेगम अख्तर हैं। मीर अनीस हैं। बृज नारायण चकबस्त हैं। शलभ श्री राम सिंह हैं। मजाज रुदौलवी हैं। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव भी हैं। मिर्जा मुहम्मद रफी सौदा भी हैं। सौदा पैदा हुए दिल्ली में लेकिन उनके जीवन की सांझ बेला की जमीन फैजाबाद ही रही। बेगम अख्तर की यादों को संजोने के लिए अवध विश्वविद्यालय ने महत्वपूर्ण प्रयास किया है लेकिन साथ ही यह भी सवाल उठता है कि मीर अनीस, बृज नारायण चकबस्त, सौदा, लोहिया और आचार्य, इन सब की यादों का क्या होगा? क्योंकि शलभ और मजाज रुदौलवी को छोड़कर अवध की इन विभूतियों से जुड़ी निशानियों को वक़्त के थपेड़ों ने मिटा दिया है। शलभ और मजाज का पैदाइशी घर मसोढ़ा और रुदौली में अब भी है।

मल्लिका ए गजल बेगम अख्तर के नाम से प्रसिद्ध अख्तरी बाई फैजाबादी के नाम पर अवध विश्वविद्यालय संगीत कला अकादमी खोलने जा रहा है। इसका ब्लू प्रिंट तैयार हो गया है। इसके निर्माण पर 42 करोड़ खर्च होगा। सात स्वरों सा-रे -गा -मा -पा -धा -नि के नाम पर सात फैकल्टी बनेंगी। ये सभी एक बड़े हाल से कनेक्ट होंगी। एक भव्य प्रवेश हाल भी बनेगा, जहां संगीत का म्यूजियम सजेगा। अवध विश्वविद्यालय ने आईटी के नए परिसर के पास उपलब्ध 35 एकड़ खाली पड़ी जमीन के एक हिस्से में 9,951 वर्ग मीटर में बेगम अख्तर संगीत कला अकादमी बनाने की तैयारी पूरी कर ली है। प्रोजेक्ट रिपोर्ट के मुताबिक इसे बनाने में कुल लागत 42 करोड़ 66 लाख 36 हजार रुपये आएगी। आर्किटेक्ट अनुपम अग्रवाल ने इसका डिजाइन तैयार किया है। इसमें कुल नौ हाल बनेंगे। मध्य में सबसे बड़ा हाल सभी अन्य हाल से सीधा संयोजित होगा। सात हाल एक साइज के होंगे। कुल सातों फैकल्टी में विद्यार्थियों के प्रशिक्षण का इंतजाम होगा। सभी फैकल्टी में संगीत की अलग-अलग विधाएं सिखाई जाएंगी। सा नाम की फैकल्टी का रंग नीला, रे का लाल, गा का पीला, मा का मध्यम नीला, पा का मध्यम लाल, मा का मध्यम पीला तथा नि का हल्का नीला रंग होगा। बेगम अख्तर पर अवध विश्वविद्यालय ने कार्यक्रमों का आयोजन भी शुरू कर दिया है। इसी क्रम में अवध विश्वविद्यालय के विवेकानंद सभागार में बेगम अख्तर की शिष्या रेखा का कार्यक्रम हुआ। विश्वविद्यालय देश के विभिन्न हिस्सों में बेगम अख़्तर की याद में चैरिटी कार्यक्रम आयोजित करने की दिशा में प्रयासरत है। इन आयोजनों से संगीत एकेडमी के निर्माण के लिए धन की भी प्राप्ति हो जाएगी। इसके अलावा संस्कृति मंत्रालय को भी विश्वविद्यालय ने प्रस्ताव भेजा है। विश्वविद्यालय को उम्मीद है कि वहां से भी धन इस मद में मिल जाएगा। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा, ‘संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में शैक्षिक संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसी भूमिका का निर्वहन करने में लगा हुआ हूं। बेगम अख्तर के नाम पर यहां जो एकेडमी बनेगी, उससे संगीत के क्षेत्र में यह इलाका नई पहचान हासिल करेगा। बेगम अख्तर की शिष्या रेखा सूर्य को विजिटिंग प्रोफेसर बनाने का निर्णय विश्वविद्यालय ने लिया है।’
अवध विश्वविद्यालय कार्यपरिषद के सदस्य ओम प्रकाश सिंह ने कहा, ‘साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में अवध की विभूतियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। विश्वविद्यालय की भवन नामकरण समिति का सदस्य भी हूं और इसके नाते मैं यह कह सकता हूं कि एकेडमी की सातों फैकल्टी इस क्षेत्र की विभूतियों के नाम पर होंगी।’

खनकती आवाज का जादू आज भी बरकरार
बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में कोलकाता की मशहूर रिकॉर्डिंग कंपनी मेगा फोन रिकार्ड्स की मशहूर गायिका अख्तरी बाई फैजाबादी का जन्म 7 अक्टूबर 1914 को फैजाबाद के भदरसा में हुआ था। सौ साल बाद भी बेगम अख्तर पहले से ज्यादा सुनी जा रही हैं। उनकी खनकती आवाज का जादू बरकरार है। दर्द में डूबे स्वर के साथ बह जाने के लिए रसिक जन आज भी उन पर फिदा हैं। उन्हें याद करना एक सदी के सांगीतिक सफर पर चलने जैसा है। इसी बहाने उस समय के लखनऊ और फैजाबाद शहरों के साथ ही आज बिल्कुल बेनूर हो चली उन पारंपरिक महफिलों के संगीत को भी याद कर सकते हैं। बेगम अख़्तर ने शास्त्रीय संगीत की परंपरागत तालीम पटियाला घराने के उस्ताद मोहम्मद खां और किराना घराने के उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से ली। पटियाला घराने की गंभीर गायकी में अपने उस्ताद से गजल, ठुमरी और दादरा सीखने में व्यस्त रहीं। गौरतलब है कि उसी समय बेगम अख़्तर ने किराना घराने से ख्याल की बारीकियों को भी सीखा। मल्लिका ए गजल की कंपकंपाती आवाज शब्दों की सत्ता को चिरंतन बना देती थी। अमरता के अनहद नाद से गुंजायमान कर देती थी। कई गीत ऐसे हैं जिनके जरिये उन्हें बेहद सघनता और तीव्रता से याद किया जाता रहा है, इनमें- कैसी ये धूम मचाई कोयलिया, मत कर पुकार जियारवा लागे कटार, हमरी अटरिया पे आओ रे सांवरिया देखा देखी तनिक हुई जाए, जरा धीरे से बोलो कोई सुन लेगा, चला गया परदेसिया नैना लगाए… जैसे गीतों का खजाना प्रमुखता से शामिल है।

शायर सलाम जाफरी ने पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा, ‘रीड गंज स्थित डॉक्टर अख्तर साहब के यहां मेहंदी मंजिल में बेगम अख्तर की महफिल जमती रहती थी। मैं छोटा था। श्रोता के रूप में उनको सुना और देखा भी। उस जमाने के अदब को आज की पीढ़ी को बताना जरूरी है। आने वाले वक्त के लिए इन पर फिल्म बननी चाहिए। लेकिन यह जरूरी है कि फैजाबाद के ही लोग उसमें हों। बाहर के लोग अक्सर चीजों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत कर देते हैं।’

बेगम अख्तर ने फिल्मों में भी काम किया। एक दिन की बादशाहत, नल दमयंती, अमीना, मुमताज बेगम, जवानी का नशा, नसीब का चक्कर और रोटी आदि में अदाकारा के तौर पर अपनी उपस्थिति सिनेमा के रुपहले पर्दे पर दर्ज कराई। यह भी कहा जाता है कि प्रसिद्ध संगीतकार मदन मोहन के साथ अपने दोस्ताना रिश्ते के चलते बेगम अख्तर उन्हें सलाह दिया करती थीं। अप्रतिम गायिका बेगम अख्तर ने भारतीय उपशास्त्रीय गायन और गजलों की दुनिया में बिल्कुल नए ढंग का युग रचा। दर्द में डूबी व कंपकंपाती बेगम की आवाज 30 अक्टूबर 1974 को अहमदाबाद में हमेशा के लिए शांत हो गई। वहां के टाउन हॉल में वह संगीत सभा के लिए गई हुई थीं। बेगम अख्तर की गाई हुई कुछ गजलें तो आज भी सुननेवालों को स्पंदित कर देती हैं- ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पर रोना आया…, उल्टी हो गई सब तदबीरें…, कुछ तो दुनिया की इनायत ने दिल तोड़ दिया…, पहले उल्फत के हवाले पर हंसी आती है…, वह जो हम में तुम में करार था…! रीडगंज स्थित मेहंदी मंजिल के जमशेद अख्तर ने कहा, ‘हमारी याद में हमारे घर पर बेगम अख्तर दो बार आई थीं। आखिरी बार तब, जब वह अपना मकान बेचने के लिए आई थीं। उन्होंने मुन्नू भाई को अपना मकान बेचा।’ जमशेद ने कहा, ‘हमारे वालिद क्लासिकल म्यूजिक को सपोर्ट करते थे। बेगम अख्तर के नाम पर विश्वविद्यालय बड़ा काम करने जा रहा है। संगीत तो सब को जोड़ता है यह एक अच्छा प्रयास है।’
बेगम अख्तर की यादों को संजोने के लिए जागरूक नागरिक समिति दो दशक से आंदोलन करती रही है। बेगम अख्तर के जन्म शताब्दी वर्ष पर उनके नाम पर नगर पालिका फैजाबाद ने एक सड़क का नामकरण किया जो उनके घर के सामने से गुजरती है। जागरूक नागरिक समिति के अध्यक्ष शिव कुमार फैजाबादी ने कहा, ‘वर्षांे की मेहनत के बाद बेगम के नाम पर एक रोड का नामकरण हो पाया। यह सौभाग्य की बात है कि विश्वविद्यालय ने बेगम की यादों को संजोने के लिए बड़ा निर्णय लिया है। हमें उम्मीद है कि अब जो भी बाहर से बेगम की यादों को टटोलने के लिए यहां आएगा तो उसे कम से कम उनके नाम पर विश्वविघालय में कला अकादमी मिल जाएगी। हमें उम्मीद है कि इस अकादमी के जरिए संगीत के क्षेत्र में एक नई पौध तैयार होगी।’ भदरसा के मिरियासी मोहल्ले के शबीहुल हसन उर्फ पप्पू भाई ने अपने मकान के पीछे तरफ के हिस्से की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘यहीं पर बेगम अख्तर का जन्म हुआ था इमामबाड़ा में आज भी वह मिंबर मौजूद है जिस पर बैठ कर बेगम ने पहली बार मोहर्रम में मरसिया गाया था। माना जाता है कि उनकी आवाज में इतना दर्द था कि परिंद और चरिंद खामोश हो गए थे।’ पप्पू भाई ने एक डायरी सम्हाल कर रखी है क्योंकि देश विदेश से भदरसा आने वाले संगीत रसिकों ने उसी में अपने भाव दर्ज किए हैं।