नई दिल्ली।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता में शुक्रवार को हुई कैबिनेट की बैठक में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) बिल यानी ट्रिपल तलाक बिल 2017 को मंजूरी दे दी है। इस बिल के तहत अगर कोई शख्स एक समय में अपनी पत्नी को तीन तलाक बोलता है, तो वह गैरजमानती अपराध माना जाएगा और उसे तीन साल की सजा भी हो सकती है। इस वर्ष अगस्‍त में सुप्रीम कोर्ट ने तत्‍काल तीन तलाक को अवैध करार दिया था।

मोदी सरकार ने इस बिल को लाने का तर्क दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के बैन करने के बाद भी लगातार तीन तलाक के मामले सामने आ रहे हैं। बिल संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार का मुख्‍य एजेंडा है। राजनाथ सिंह की अध्‍यक्षता में बने मंत्री समूह ने सलाह मशवरे के बाद बिल का ड्राफ्ट तैयार किया था। ड्राफ्ट को तैयार करने वाले मंत्री समूह में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, वित्त मंत्री अरुण जेटली, विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद और विधि राज्यमंत्री पीपी चौधरी थे।

यह मसौदा गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले एक अंतर-मंत्री समूह ने तैयार किया है। इसमें अन्य सदस्य विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, वित्त मंत्री अरुण जेटली, विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद और विधि राज्यमंत्री पीपी चौधरी थे। प्रस्तावित कानून एक बार में तीन तलाक या ‘तलाक ए बिद्दत’ पर लागू होगा और यह पीड़िता को अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से गुहार लगाने की शक्ति देगा।

मसौदा कानून के तहत, किसी भी तरह का तीन तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) गैरकानूनी होगा। एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और शून्य होगा और ऐसा करने वाले पति को तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है। यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध होगा।

प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होना है। तलाक और विवाह का विषय संविधान की समवर्ती सूची में आता है और सरकार आपातकालीन स्थिति में इस पर कानून बनाने में सक्षम है, लेकिन सरकारिया आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने राज्यों से सलाह करने का फैसला किया।

बिल को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा। संसद का शीतकालीन सत्र शुक्रवार से शुरू हो गया है और 5 जनवरी तक चलेगा। ये सत्र 14 कार्यदिवस चलेगा। पिछले दिनों गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि यह भारत के लोगों की मजबूत इच्छा है कि संसद तीन तलाक और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग इन दोनों मुद्दों पर कानून बनाए और सरकार इस इच्छा को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।

कानून में तीन तलाक को लेकर सजा का कोई प्रावधान नहीं था। इसी मद्देनजर केंद्र सरकार ने तीन तलाक के खिलाफ सख्त कानून बनाने की दिशा में कदम आगे बढ़ाया है। बिल के प्रारुप को सभी राज्य सरकारों को भेजा गया था और राज्यों की राय मांगी गई थी। इसमें बीजेपी शासित ज्यादातर राज्यों ने इस पर मंजूरी दे दी है। इनमें असम,  झारखंड,  उत्तर प्रदेश,  उत्तराखंड,  मणिपुर,  मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने मंजूरी दे दी है।