ओपिनियन पोस्ट ने शायरा बानो के मसले को मजबूती से उठाया है। शायरा के इंसाफ की लड़ाई में हम उनके साथ हैं। उन्हेें इंसाफ मिलने तक इस मुद्दे पर लगातार नजर रखे रहेंगे।

नई दिल्ली तलाक के चर्चित शायरा बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से कहा कि संदर्भ लाएं, कहां लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम समुदाय के कानूनी मामलों में दखल नहीं दे सकता? दरअसल तीन तलाक मामले में 29 जून को पहली तारीख पड़ी थी। पीड़ित पक्ष के वकील और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कोर्ट के सामने पेश हुए। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का तर्क था कि तीन तलाक, बहु विवाह, हलाला के खिलाफ जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में डाली गई है, उसमें कोर्ट फैसला नहीं सुना सकता। लॉ बोर्ड का कहना था कि मुस्लिम समुदाय से जुड़ मामलों में सुनवाई का हक कोर्ट को नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलो की दलील सुनन के बाद 6 सितंबर की तारीख दी है। कोर्ट ने लॉ बोर्ड से छह हफ्तों के भीतर ऐसे दस्तावेज या संदर्भ पेश करने को कहा है जिससे यह साबित हो सके की कोर्ट इन मामलों में दखल नहीं दे सकता है। शायरा के भाई अरसद और उनके पिता इकबाल खान भी सुप्रीम कोर्ट में हाजिर हुए। शायरा के पिता ने कहा कि हम यह लड़ाई तब तक लड़ेंगे, जब तक जीत नहीं जाते। उन्होंने कहा कि शुरुवात में काशीपुर के एक मुफ्ती ने हमारे खिलाफ फतवा जारी किया था, उसमें कहा गया था कि हम मुस्लिम कहलाने के लायक नही हैं। हमें इस समुदाय से बाहर कर देना चाहिए। लेकिन समुदाय के लोग अब ऐसी जाहिलियत की बातें नहीं सुनते। हमें अपने परिवार और समुदाय के लोगों का समर्थन मिला है। हमारे साथ महिला पर्सनल लॉ बोर्ड, भारतीय मुस्लिम महिला संगठन तो पहले पहले से ही थे, अब मुंबई का एक गैर सरकारी संगठन बेबाक कलेक्शन भी हमारे साथ आ गया है। इसके अलावा जयपुर की आफरीन, फरीदाबाद की एक मोहतरमा और अब रामपुर का भी एक मामला कोर्ट में आया है। हमें यकीन है कि शायरा के बहाने कई महिलाएं इन कुप्रथाओं पर बोलेंगी। महिला हिंसा के खिलाफ आवाज उठाएंगी। पूरा भरोसा है कि हमें इंसाफ मिलेगा।

  यह मामला 1980 के दशक के चर्चित शाह बानो केस की याद दिलाता है। इसमें इंदौर की रहने वाली 62 साल की शाह बानो ने पति पर केस कर तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने की मांग की थी। अदालत ने शाह बानो के हक में फैसला सुनाया था। लेकिन उस समय की तत्तकालीन कांग्रेस सरकार rcने मुस्लिम समाज के सामने घुटना टेकते हुए मुस्लिम महिला(प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स आन डिवोर्स अधिनियम 1986 में पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया था। इस अधिनियम के अनुसार निराश्रित और तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं से गुजाराभत्ता पाने का हक छीन लिया गया था।