‘शर्मीली अम्मू से तमिलनाडु की मशहूर अम्मा बनने तक के सफर में अगर कहें तो उनका साहस ही उनके साथ लगातार था। जयललिता निसंदेह दृढ़ निश्चयी और साहसी महिला थीं। उनके व्यक्तित्व के बहुरंगी आयाम थे। बिना उनके तमिलनाडु की सियासत रंगहीन हो जाएगी।’ ‘अम्मा : जयललिताज जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टू पॉलिटिकल क्वीन’ की लेखिका वासंती ने 2011 में ‘द हिंदू’ को दिए अपने एक इंटरव्यू में यह बात कही थी। आज जबकि जयललिता ने अपना सफर पूरा कर लिया है, तो संध्या द्विवेदी  से बातचीत करते हुए वह दोबारा इस बात को दोहराती हैं और कहती हैं, ‘मैं आज भी मानती हूं कि तमिलनाडु की राजनीति के कई रंग अम्मा यानी जयलिलता के साथ चले गए।’

बायोग्राफी के लिए आपने जयललिता को ही क्यों चुना? कोई खास वजह।
नहीं, मैंने नहीं चुना, मेरे प्रकाशक ने चुना। इस बायोग्राफी को लिखवाने के लिए मुझे प्रकाशक ने जरूर चुना। इंडिया टुडे में मैं तमिल संस्करण की संपादक भी रही हूं। इसलिए मैंने जयललिता को बहुत आब्जर्व जरूर किया था। उनके बारे में खूब पढ़ा था। जयललिता के बारे में मेरे पास जानकारी थी। समझ भी थी। जब प्रकाशक ने मुझे लिखने के लिए कहा तो मैंने और ज्यादा गहराई से उनके बारे में पढ़ना शुरू किया। आब्जर्व करना शुरू किया। मैं उनके बारे में बहुत कुछ जानती हूं क्योंकि मैंने बायोग्राफी लिखने के वक्त उनके बारे में बहुत पढ़ा, आब्जर्व किया, उन्हें खूब परखा देखा। (आर्ई नो लॉट आॅफ थिंग एबाउट हर बिकॉज आई हैव रेड हर ए लॉट, आई हैव आब्जर्व्ड हर ए लॉट, आई हैव वाच्ड हर ए लॉट)।

‘द हिंदू’ को दिए एक साक्षात्कार में आपने कहा था कि आपने दस साल तक कोशिश की उनसे मिलने की। लेकिन उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया? ऐसा क्यों?
हां, मैंने बहुत कोशिश की कि उनसे मुलाकात हो जाए, पर नहीं हुई। वह मिलने को तैयार ही नहीं हुर्इं। दरअसल उनका सोचना था कि पत्रकार उनके बारे में अच्छा नहीं लिखते। सही नहीं लिखते। इसलिए वह किसी को साक्षात्कार देने को तैयार नहीं होतीं थीं। बहुत कम मौकों पर उन्होंने किसी जर्नलिस्ट से व्यक्तिगत मुलाकात की होगी। जब वह किसी पत्रकार के बारे में बिल्कुल आश्वस्त हो जातीं थीं कि वह उनके बारे में अच्छा ही लिखेगा तभी वह साक्षात्कार के लिए तैयार होती थीं।

अम्मा : ‘जयललिताज जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टू पॉलिटिकल क्वीन’ के कुछ अंश-

फिल्मी माहौल पसंद नहीं – ‘जयललिता हमेशा अपनी दोस्त श्रीमती से कहती थीं कि उन्हें फिल्मी दुनिया का माहौल पसंद नहीं। यहां काम करने वाले पुरुष गलत निगाहों से उन्हें देखते हैं। जया कहती थीं, जब मैं घर लौटती तो कई पुरुष वहां बैठे मिलते थे। उन्हें देखकर मैं काफी घबरा जाती। लंबे, छोटे, काले, गोरे, पतले और मोटे और तेल से पुते हुए पुरुष! मां मुझे उनके साथ बैठकर बात करने को कहती थी। मुझे चिढ़ होती थी।’ श्रीमती की यह बातें इस ओर इशारा करती हैं कि जयललिता एक आम जिंदगी जीने की इच्छुक थीं। फिल्मी दुनिया से दूर रहना चाहती थीं। लेकिन नीयति ने उस शमीर्ली लड़की को ग्लैम गर्ल में तब्दील कर दिया।

संबंध – एमजीआर के बेहद करीबी रहे वीरप्पन जयललिता को एक बुरी आत्मा मानते थे। और वह नहीं चाहते थे कि एम.जी.आर. जयललिता के करीब रहें। यकीन नहीं होता मगर किताब को सच मानें तो एम.जी.आर. खुद भी वीरप्पन की बात मानकर जयललिता से संबंध तोड़ने को तैयार हो गए थे।

लूजर जयललिता – जब स्पेशल कोर्ट ने जयललिता को होटल मामले में दोषी करार दिया तो उनके पार्टी समर्थकों ने लड़कियों से भरी एक बस को आग लगा दी। इस घटना में तीन लड़कियों की जलकर मौत हो गई थी। जयललिता की प्रतिक्रिया एक लूजर की तरह की थी।
इमेज मेकओवर – बैंगलोर में श्रीरंगम तमिल ब्राह्मण परिवार में जन्मीं, जयललिता वेनिरा आडई (1965) से तमिल सिनेमा में आर्इं। तब से 1978 तक उनकी तूती बोलती रही। अपने हीरो एमजीआर से एक बार मिलने के बाद जयललिता का ईमेज मेकओवर हुआ। इसके बाद उनके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव आए।

कन्नड़ को नकार बनीं तमिल – एक मैगजीन में छपे लेख में उन्होंने कहा, ‘मैं तमिल हूं, मेरी मां श्रीरंगम से संबंध रखती हैं।’ इसने कर्नाटक में रहने वाले कन्नड़ों को गुस्से से भर दिया जो ये मानते थे कि वो कन्नड़ हैं। लगातार मिलती धमकियों को देखते हुए जयललिता ने मैसूर में होने वाले दूसरे आर्ट फेस्टिवल में पहले से तय अपना डांस कार्यक्रम रद्द कर दिया। दो महीने बाद वे मैसूर के चामुंडी स्टूडियो में निर्देशक पंथुलु की फिल्म की शूटिंग कर रही थीं। स्टूडियो के मैनेजर को खबर मिली कि जयललिता को मारने के लिए लगभग 100 प्रदर्शनकारी उस तरफ बढ़ रहे हैं। उन्होंने स्टूडियो का गेट बंद करने का आदेश दिया।

हाथों में लाठी लिए प्रदर्शनकारी गेट फांद कर अंदर आ गए और कन्नड़ में चिल्लाते हुए पूछा, ‘कहां है चुड़ैल?’ दरवाजे पर खड़े गार्ड और पत्रकारों को धक्का देकर वह अंदर घुस आए। पंथुलु ने कन्नड़ में बात कर उनसे वहां से लौट जाने की विनती की। लेकिन वो जयललिता के खुद को कन्नड़ नहीं बताने के लिए माफी मांगने की मांग कर रहे थे। जयललिता न तो उनसे डरी हुई थीं न ही घबराई थीं। उन्होंने प्रदर्शनकारियों की आंखों में आंख डालकर कन्नड़ में कहा, ‘मैंने कुछ गलत नहीं कहा है. मैं क्यों माफी मांगूं? मैं एक तमिल हूं, कन्नड़ नहीं!’
सोहन बाबू से करीबी- कुछ समय के लिए जब वो एमजीआर के संपर्क से दूर हुर्इं, तो तेलगू अभिनेता सोहन बाबू के साथ उनके प्रेम संबंध बने, बात शादी के बंधन तक पहुंच गई।

गुटबाजी से पाई मंजिल- प्रजातांत्रिक भारत में, व्यक्तियों की बनाई पार्टी एमजी रामचंद्रन, एनटी रामा राव, कांशीराम, ममता बनर्जी- कभी किसी को अपनी बागडोर नहीं सौंप पातीं। लीडर ही उत्तराधिकार की घोषणा करता है। जयललिता इसी का एक उदाहरण हैं। वह एमजीआर की विधवा से लड़कर और जीतकर उनकी निर्विवाद उत्तराधिकारी बनीं। इसका चयन पार्टी की अंदरूनी प्रक्रिया से नहीं हुआ बल्कि टूट और गुटबाजी से हुआ। (मुकुल केसवन के ‘द टेलीग्राफ’ में छपे लेख का हवाला)

जब वह आपसे मिलने को तैयार नहीं हुर्इं तो उनकी आत्मकथा आपने कैसे लिखी? क्या स्रोत थे आपके पास?
पहली बात यह कि मैं इसे बायोग्राफी से ज्यादा पोर्ट्रेट मानती हूं। मैंने उनके बारे में पुरानी नई हर खबर पर नजर रखी। गहराई से पढ़ा। उनको जानने वालों से मुलाकात की। उनके बचपन के कुछ दोस्तों से मुलाकात की। कुछ राजनीतिक सहयोगियों से बात की।

क्या जयललिता को आप एक लाइन में परिभाषित कर सकती हैं? या एक शब्द में।
वेरी ब्रेव वुमन। जयललिता बहुत साहसी औरत थीं। उनके व्यक्तित्व को जब आप गहराई से देखेंगे तो पाएंगे कि उनका साहस ही उन्हें दूसरों से अलग करता है। और यही वजह है कि छोटी सी शमीर्ली अम्मू एक बहादुर और मशहूर नेता बन गई। उनके रास्ते में चुनौतियां ही चुनौतियां थीं। आरोप थे। आलोचनाएं थीं। लेकिन उन्होंने एक लंबा सफर तय किया। रास्ते से लौटीं नहीं।

क्या जयललिता की तुलना इंदिरा गांधी, मायावती से की जा सकती है?
बिल्कुल नहीं। ये दोनों ही बिल्कुल अलग हैं। इंदिरा गांधी के पिता जवाहर लाल नेहरू थे। उनके पास मजबूत राजनीतिक पृष्ठभूमि थी। मायावती एक दलित परिवार में पैदा हुई थीं। उनके पास राजनीति के लिए एक खास और मजबूत समुदाय के लोग थे। एक खास समुदाय की राजनीति उन्होंने की। मगर जयललिता एक अदाकारा थीं। अयंगार ब्राह्मण परिवार से थीं। राजनीतिक सफर में बहुत कठिनाइयां थीं। चुनौतियां मेरी नजर में ज्यादा थीं। पर इन सबमें एक बात कॉमन है- वह यह कि ये सभी बेहद साहसी महिलाएं हैं।

दक्षिण की राजनीति उत्तर की राजनीति से कैसे अलग है? दक्षिण में अगर कोई महिला राजनीति में आना चाहती है तो उसके सामने क्या अलग तरह की चुनौतियां होती हैं?
हां, बिल्कुल। उत्तर से दक्षिण में एक बड़ा सांस्कृतिक फर्क है। या कहें यह एक सांस्कृतिक समस्या है। दक्षिण में एक औरत अगर किसी पुरुष से बात करती है तो उसे मिसअंडरस्टैंड किया जाता है। लोग उसके बारे में बात करेंगे, गॉसिप्स करेंगे। यही वजह थी कि जयललिता ने अपने मंत्रियों से हमेशा एक दूरी बनाकर रखी। इस वजह से उन्होंने महिला सहयोगियों से करीबी बनाकर रखी। जबकि मायावती को ऐसी कोई समस्या नहीं आई होगी। उनकी आलोचना एक राजनेता के तौर पर तो होती है। लेकिन किसी पुरुष से नजदीकी या बातचीत करने पर उनके खिलाफ गॉसिप्स नहीं होती हैं। इसलिए एक महिला के लिए दक्षिण में राजनीति करना उत्तर के मुकाबले कठिन और चुनौती भरा है।

आपकी जयललिता पर लिखी बायोग्राफी बेहद मशहूर हुई। अगर आपको एक और मौका मिले किसी भारतीय महिला नेता की बायोग्राफी लिखने का तो किसे चुनेंगी?
नहीं, अब मैं किसी को नहीं चुनूंगी। बायोग्राफी लिखना बहुत कठिन काम है। आप जब किसी की बायोग्राफी लिखते हैं तो फिर उसके साथ न्याय करने के लिए आपको उसमें बिल्कुल डूबना पड़ता है। मेरी समझ में कुछ भी लिखने से ज्यादा कठिन बायोग्राफी लिखना है।

आपकी नजर में जयललिता एक बेहतर और संपूर्ण नेता थीं?
कोई भी व्यक्ति पूरी तरह से अच्छा व्यक्ति नहीं होता। आप यह नहीं कह सकते कि कोई भी पूरी तरह से अच्छा या पूर्ण नेता है। वह बहुत टफ नेता थीं। साहसी और जीवट वाली महिला नेता थीं। उन्होंने जनकल्याण की कई योजनाएं राज्य में चलार्इं। वह बेहद लोकप्रिय नेता थीं। मेरी नजर में वह एक साहसी और चुनौतियों को सामना करने वाली महिला थीं। 