प्रियदर्शी रंजन

राजद अपने विधायकों को लालू के बिना क्या एकजुट रख पाएगी? क्या लालू के बिना तेजस्वी पार्टी को चला पाएंगे? तेजस्वी का वही हाल होगा जो मुलायम के किनारे हो जाने से यूपी में अखिलेश का हुआ? क्या बिहार में विपक्ष कमजोर होगा? क्या सजायाफ्ता होने के बावजूद लालू प्रसाद ने भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने का जो अभियान चलाया था, उस पर पूर्णविराम लग जाएगा? क्या लालू की अनुपस्थिति में उनके परिवार के भीतर ही महाभारत हो जाएगा? ये वे कुछ बहुतेरे सवाल हैं जो चारा घोटाले के दूसरे मामले में सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा लालू प्रसाद यादव को दोषी करार दिए जाने और जेल भेजे जाने के बाद उठ खड़े हुए हैं।
दरअसल, पिछली जेल यात्रायों की तुलना में लालू की इस बार की जेल यात्रा भिन्न है। वैयक्तिक, राजनीतिक और पारिवारिक तीन स्तरों पर लालू के जीवन में 2013 की पिछली जेल यात्रा की बनिस्पत व्यापक बदलाव हो चुका है। एक ओर जहां जेल जाने पर उनकी दूसरी पीढ़ी विरासत संभालने को मुस्तैद है तो परिवार में पेंच भी इसी बात का है कि राजद सुप्रीमो की अनुपस्थिति में उनके परिवार का हाल महाभारत सा न हो जाय। दूसरी ओर पिछली बार लालू जेल गए थे तो झारखंड में उनके सहयोगी दलों की सरकार थी। वहां की सरकार में राजद के दो मंत्री होने से उनका रुतबा बना हुआ था। इस बार झारखंड से लेकर केंद्र तक भाजपा की सरकार है। हालांकि असली बदलाव बिहार की राजनीति में होना है, जिसे सभी राजनीतिक दल अपने-अपने चश्मे से देख रहे हैं।
राजद के बड़े नेता रघुवंश प्रसाद सिंह, जगतानंद सिंह व शिवानंद तिवारी सरीखे बड़े नेताओं का दावा है कि लालू के जाने के बाद राजद कमजोर नहीं होगी और उनकी पार्टी एकजुट रहेगी। इन नेताओं के दावे में कितना दम है यह भाजपा-जदयू के पराक्रम पर निर्भर करेगा कि वह राजद को तोड़ पाती है या नहीं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ताजा घटनाक्रम से राजद को कितना नुकसान होगा, यह तो समय बताएगा लेकिन भाजपा-जदयू को इसका तुरंत फायदा होता दिख रहा है। विधानसभा में सबसे बड़े हाने के बाद भी राजद सत्ता में नहीं है और जख्मों पर नमक यह कि राजद जिस तेजस्वी में अपना भविष्य देख रही है, उस पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। विरासत के वारिस के जेल जाने की संभावना और भ्रष्टाचार के आरोपों से चौतरफा घिरे लालू के परिवार के लिए मुश्किलोंं से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं होगा। वरिष्ठ पत्रकार और कभी लालू के करीब रहे सुरेंद्र किशोर की मानें तो तेजस्वी ही नहीं पत्नी राबड़ी, बड़े पुत्र तेज समेत बेटी मीसा का भी जेल जाना अब-तब की बात है। राजद भले ही कुछ समय के लिए संभलने की कोशिश कर ले मगर एक वक्त चोरों की पूरी बारात जेल में होगी, जिसकी शुरुआत लालू से हुई है। मुझे नहीं लगता कि 2019 लोकसभा चुनाव आते-आते लालू के परिवार में कोई राजनीति करने वाला खुली हवा में सांस ले पाएगा। लालू के जेल जाने के बाद राजद अपने को बचा ले तो इसे चमत्कार ही माना जाएगा।
एक मत यह भी है कि राजद सुप्रीमो के जेल जाने से राजद को फायदा ही होगा। इस मत को मानने वाले लोगों में शैवाल गुप्ता जैसे नाम भी शामिल हैं जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दोस्त के तौर माने जाते हंै। आद्री के सदस्य सचिव और प्रमुख अर्थशास्त्री डॉ. शैवाल गुप्ता के मुताबिक चारा घोटाले में लालू के जेल जाने से राजद का वोटर और एकजुट होगा। वर्ष 2003 में जब राजद प्रमुख जेल गए थे, तब नेतृत्व को लेकर थोड़ी उहापोह जरूर थी, लेकिन अभी स्थिति ठीक उलट है। अभी तो पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव राजद कार्यकर्ताओं को दिशा निर्देश देने के लिए तैयार हैं। राजनीतिक विश्लेषक और प्रो. डॉ. एनके चौधरी भी कुछ इसी तरह की राय रखते हैं। उनके मुताबिक लालू के जेल जाने से राजद में नया नेतृत्व उभरेगा। लालू ने अपने पुत्र में पहले ही नेतृत्व के बीज बो दिए हैं। खासकर तेजस्वी यादव के लिए यह मौका होगा कि वे अपने पिता की विरासत पर अपना अधिकार पक्का कर लें। राजद के मूल वोट बैंक की चिंता तेजस्वी को वैसे भी नहीं करनी है। राजद का वोटबैंक आक्रोश की आग में पहले के मुकाबले और बढ़कर हिस्सेदारी करेगा। एनके चौधरी के मुताबिक यह एनडीए के लिए भी सोचने का समय है कि राजद कार्यकर्ताओं में पनप रहे आक्रोश को इस तरह अपने विरोध में मुखर न होने दे।
राजद के वरिष्ठ नेताओं और राजनीतिक जानकारों की समझ भले ही यह कह रही हो कि लालू के जेल जाने से पार्टी और परिवार पर कोई असर नहीं पड़ने वाला लेकिन देश की राजनीति में लालू के होने के जो मायने थे उसकी भरपाई कौन करेगा? दरअसल, लालू अपनी बुलंद भाजपा विरोधी आवाज की वजह से उन तमाम दलों के डार्लिंग हैं, जो भाजपा के खिलाफ देश में एकजुट होने की बात करते हैं। राजद प्रमुख का जेल जाना सिर्फ उनके दल नहीं वरन तमाम दलों के बड़े नेताओं को दुखी कर गया है जो नरेंद्र मोदी और भाजपा के विरोध में लालू को बड़ा लड़ाका मान रहे थे। और इस उम्मीद में थे कि नरेंद्र मोदी के ताप से बचाने के लिए देश भर के भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने में कामयाब होंगे। पत्रकार देवांशु मिश्रा के मुताबिक भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद भी लालू उन दलों में सबसे स्वीकार्य नेता थे जो भाजपा के विरोध में एकजुट होने की बात कर रहे थे। लालू उन नेताओं में शामिल थे जो भाजपा के खिलाफ एकजुट होने के प्रयास में लगे विपक्षी दलों के अहम नेता थे। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी उनके करिश्माई नेतृत्व की हमेशा कायल रहीं। कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष लालू से भले ही दूरी बनाते दिखते हों मगर झारखंड के बड़े कांग्रेसी नेता लालू की जेल यात्रा में मुलाकात कर यह जता रहे हैं कि भाजपा के विपक्ष में लालू का कद क्या है।
लालू के लाल संभाल लेंगे: भाई धर्मेंद्र
लालू के जेल जाने के बाद राजद कार्यकर्ताओं में गजब की मायूसी और गुस्सा देखा जा रहा है। राजद के कार्यकर्ता इस बात से मायूस हैं कि लालू को चारा घोटाला के एक और मामले में जेल जाना पड़ा तो गुस्से का कारण जगन्नाथ मिश्रा को निर्दोष करार दिया जाना है। राजद कार्यकर्ता इसे पचा नहीं पा रहे कि पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को उसी मामले में बरी कर दिया गया। रघुवंश प्रसाद व जगतानंद सिंह जैसे नेता ऊपरी अदालत में देख लेने की बात कर रहे हैं तो सामान्य कार्यकर्ता इसे भाजपा का षड़यंत्र मान रहा है। लालू के बेहद करीब और उनके हनुमान कहे जाने वाले भाई धर्मेंद्र इसे भाजपा की साजिश मानते हुए कहते हैं कि उनके प्रमुख को जो लोग वोट के अखाड़े में पटखनी नहीं दे सके वे षड़यंत्र के तहत जेल भेजने की राजनीति कर रहे हैं। भाई धर्मेंद्र ही नहीं राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी भी लालू की जेल यात्रा को षड़यंत्र मानते हैं। तिवारी उन लोगों में शामिल हैं जो कभी लालू के खिलाफ चारा घोटाले का आरोप मढ़ते हुए नीतीश कुमार के साथ चले गए थे। भाई धर्मेंद्र के मुताबिक आज शिवानंद तिवारी जैसे लोग भी मान रहे हैं कि जो षड़यंत्र रचा गया था उसमें वो भी शामिल थे। तिवारी जैसे नेताओं का बयान यह साबित करने के लिए काफी है कि चारा घोटाला एक साजिश है। अगर आज चुनाव हो जाए तो राजद को दो सौ से अधिक सीटें हासिल होंगी और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगे।