निशा शर्मा।

‘भाषा बहता नीर’ यह पंक्तियां हिन्दी भाषा के लिए बिल्कुल सटीक बैठती है। कहा जाता है कि किसी भाषा को खत्म करना है तो उसके रूप और स्वरूप को बदलने नहीं देना चाहिए। जिसका दायरा एक तालाब के मेंढक तक कर दो तो वह भाषा धीरे-धीरे मर जाएगी।

वहीं अगर किसी भाषा को संपन्न बनाना है तो उसे बहते हुए पानी की तरह ही अपना स्वभाव रखने दो ताकि जो रास्ते में आए उसे आत्मसात करते चलो। आज की हिंदी सिर्फ बोलचाल की हिंदी नहीं है, किताबों की हिंदी नहीं है उसका विस्तार हुआ है, उसका भूमंडलीकरण हुआ है। वह एक बाजार की भी भाषा है जिस पर सालाना करोड़ों खर्च होते हैं। अब हिन्दी सिर्फ आलमारी की किताबों तक, घर की किसी सेल्फ तक या दुकानों तक ही सीमित नहीं रही है अब वह आपको हर जगह उपल्बध हो रही है, जहां आप चाह रहे हैं। जिस रूप में आप चाह रहे हैं।

अब हिन्दी की किताबों को पाठक नहीं ढूंढ रहा है, हिन्दी खुद अपने पाठकों तक दफ्तरों, बसों, मेट्रो, हवाई जहाजों में पहुंच रही है । जैसे- जैसे हिन्दी का पाठक वर्ग बढ़ रहा है वैसे वैसे लेखकों की संख्या भी बढ़ रही है। दुनिया बदल रही है ऐसे में हिन्दी भी बदल रही है। उसका उपयोग, प्रयोग बदल रहा है। हिन्दी एक ऐसे बाजार की भाषा हो चुकी है जिसका उपभोक्ता युवा है।

हिन्दी को लिखने, छापने और पढ़ने का तरीका बदला है। नए जमाने में अब हर बात ‘ई’ से जुड़ गई है। इस इंटरनेट ने जब सभी क्षेत्रों को खुद में समेट लिया है तब हिन्दी का संसार इससे कैसे अछूता रहता। यह अलग बात है कि हिंदी जगत को इंटरनेट का सहारा मिलने से इसके फलक का भी विस्तार हो गया है। पिछले कुछ सालों में बहुत से नए प्रकाशक आए जिन्होंने इंटरनेट को अपनी ताकत बनाया और देश के उन लोगों तक भी हिंदी किताबों को पहुंचाने का जिम्मा लिया जो हिंदी की किताबें पढऩा तो चाहते थे पर क्या पढ़ें और किताबें उन्हें कैसे मिले के प्रश्न से जूझते रहते थे।

हिन्द युग्म उनमें से एक है जो हिन्दी को एक ढर्रे की किताबों में बांधने की सोच से सहमत नहीं हैं। हिन्द युग्म में प्रकाशित होने वाली अधिकतर किताबें नए लेखकों की हैं। नई पीढ़ी की हैं। हिन्द युग्म प्रकाशन के पास परंपरागत लेखक नहीं थे। लेकिन उन्होंने लेखकों की नई जमात पर भरोसा किया और इसका फल भी उन्हें मिला। अमेजॉन, फ्लिपकार्ट पर हिंदी की 100 लोकप्रिय किताबों में 7 किताबें हिंदी युग्म की भी हैं।

यह प्रकाशन नई वाली हिन्दी की बात करता है। नई वाली हिन्दी को परिभाषित करते हुए हिन्द युग्म प्रकाशन के संस्थापक और संपादक शैलेश भारतवासी कहते हैं नई वाली हिन्दी जीवंत शब्द है। यह आज के लेखकों और पाठकों की हिन्दी है। आज के युवा जो पढ़ना चाहते हैं, जैसे पढ़ना चाहते हैं हम उन्हें वैसे ही सामग्री उपल्बध करवाते हैं।

हिन्दी भाषा को लेकर दिन प्रतिदिन नए प्रयोग हो रहे हैं। शैलेश कहते हैं, ‘हिंद युग्म की मंशा बस यही है कि पाठकों की रुचि को ध्यान में रख कर साहित्यिक किताबें प्रकाशित करें और नए-नए पाठक जोड़े। हम उन लोगों को भी पाठक बनाना चाहते हैं जो हिंदी पढ़-समझ सकते हैं पर हिंदी की किताबें नहीं पढ़ते।’

आज लेखक बनना या होना कोई बड़ी बात नहीं है। बाजार में ऐसे भी प्रकाशक उपल्बध हैं जो किताबों की संख्या निर्धारित नहीं करते बल्कि कुछ प्रतियों के तौर पर भी किताबें छाप रहे हैं। जिसमें पोथी डॉट कॉम जैसे प्रकाशक उभर रहे हैं।

हिन्दी में आज भी नाम के आधार पर किताबें बिकती हैं जिसका अपना एक वर्ग है। लेकिन इस बात को निराधार बताते हुए शैलेश कहते हैं कि आज के समय में नाम नहीं बिकता पहले उसका कंटेंट बिकता है फिर उसका नाम बनता है। हम उसी कंटेंट के आधार पर नए लेखकों को मौका दे रहे हैं। नाम में कुछ नहीं है सिर्फ इतना जरूर है कि आपकी मार्केटिंग वेल्यू से थोड़ा इजाफा हो जाता है और कुछ नहीं। जैसे ठंडा मतलब कोका कोला, लेकिन  ऐसा तो नहीं है ना कि कोका कोला के अलावा कोई दूसरा ड्रिंक ठंडा नहीं है या बिक नहीं रहा है। इसी तरह आज की पीढ़ी हिन्दी पढ़ रही है, लिख रही हैं और नए मापदंड स्थापित कर रही है।

ऐसा माना जाता है कि अंगेजी या इंग्लिश भाषा का प्रचार और प्रसार भारत में हिन्दी से ज्यादा है। आज की पीढ़ी हिन्दी से ज्यादा इंग्लिश पढ़ती है, बोलती है और लिखती है। इस बात का खंडन करते हुए शैलेश कहते हैं कि ऐसा नहीं है पारंपरिक प्रकाशक ऐसा कह सकते हैं कि हिन्दी का विस्तार 300 से 500 प्रतियों तक सीमित है लेकिन मैं मानता हूं कि हमारे यहां सिर्फ शुरूआती दौर में अॉनलाइन में इसकी संख्या कहीं ज्यादा है।