सुनील वर्मा।

संविधान की आठवीं अनुसूची में अंग्रेजी कहीं भी भारतीय भाषाओं में शामिल नहीं है। संविधान की धारा 343 में भी स्पष्ट किया गया है कि हिन्दी हमारी राजभाषा है। संविधान में सीआरपीसी की व्याख्या करते हुए उसकी धारा 272 में भी स्पष्ट वर्णन है कि गवाह जिस भाषा में बोलेगा, अदालत में उसका बयान उसी भाषा में लिखना होगा। हैरानी की बात है कि देश को आजाद हुए 69 साल से अधिक हो गए लेकिन आज भी देश की अदालतों खासकर हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में अंग्रेजी का ही बोलबाला है।

अदालती कामकाज में अंग्रेजी के इसी प्रभुत्व को खत्म करने व सभी न्यायालयों में हिन्दी या उस राज्य की राजभाषा एवं समझी जाने वाली भाषा के प्रयोग को लागू कराने के लिए भारतीय भाषा अभियान इन दिनों विधि मंत्रालय पर अपना लगातार दबाव बना रही है। विधाई भाषा में सुधार के लिए दो साल पहले बनी ‘भारतीय भाषा अभियान’ संस्था के दिल्ली संयोजक उमेश शर्मा कहते हैं, ‘संविधान के अनुच्छेद 348 में उच्च न्यायालयों की भाषा के लिए उच्च न्यायालय के कार्य को दो भागों में बाटा गया है। पहला भाग है-न्यायालय की कार्यवाही जिसके अंतर्गत आवेदन, याचिका, शपथ पत्र, दस्तावेज, मौखिक और लिखित बहस आदि आते हैं जो राज्यपाल के आदेश द्वारा राष्ट्रपति की सहमति से हिन्दी या उस राज्य की राजभाषा में किए जा सकते हैं। इसके लिए किसी कानून की आवश्यकता नहीं है।
दूसरा भाग है-निर्णय। इसके लिए अनुच्छेद 348 में संसद से अधिनियम बनाने की अपेक्षा की गई। इसके तहत 1963 में संसद ने राजभाषा अधिनियम पारित कर प्रावधान किया है कि सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के आदेश-निर्देश व कामकाज की भाषा तो अंग्रेजी ही रहेगी लेकिन राज्यपाल राष्ट्रपति की सहमति से कानून बनाकर हिन्दी या उस राज्य की भाषा को कामकाज में अपनाने का नियम बना सकते हैं। लेकिन ऐसा अभी तक देखने में नहीं आया कि किसी भी राज्य में हिन्दी या उस प्रदेश की भाषा को अदालती कामकाज के लिए प्रयोग में लाया गया हो।

केंद्र्र सरकार के कई मंत्रालयों में बतौर सलाहकार अधिवक्ता के रूप में जुडेÞ उमेश शर्मा कहते हैं कि बड़ी अदालतों में न्यायाधीशों से लेकर रजिस्ट्रार तक हिन्दी को दोयम दर्जे की उपेक्षित भाषा के रूप में देखते हैं। एक जनहित याचिका पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने अधिवक्ता इंद्र देव की जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के कामकाज की भाषा अंग्रेजी ही होगी। इसकी जगह हिन्दी को लाने के लिए कोर्ट केंद्र सरकार या संसद को कानून बनाने के लिए नहीं कह सकता।

हिन्दी लागू नहीं करना चाहती सरकार
दरअसल, जनवरी 2015 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था कि संविधान में संशोधन कर हिंदी को सुप्रीम कोर्ट एवं सभी 24 हाई कोर्टों के कामकाज की भाषा बनाया जाए। गृह मंत्रालय का हलफनामा 2008 में विधि आयोग द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर आधारित था जिसमें आयोग ने विचार व्यक्त किया था कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों में हिंदी का इस्तेमाल अनिवार्य करने का प्रस्ताव व्यावहारिक नहीं है क्योंकि हाई कोर्ट के न्यायाधीशों का अकसर एक राज्य से दूसरे राज्य में तबादला होता रहता है। इसलिए उनके लिए यह संभव नहीं है कि वे अपने न्यायिक कर्तव्यों को अलग-अलग भाषाओं में पूरा कर सकें।

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के कामकाज में हिन्दी और भारतीय भाषाओं के प्रयोग के लिए विधि आयोग के इनकार के बाद भारतीय भाषा अभियान जिसमें दिल्ली के ही 2000 वकील सदस्य हैं, ने वकीलों के संगठनों और स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर आंदोलन व हस्ताक्षर अभियान शुरू किए हैं। निचली अदालतों में हिन्दी में कामकाज को लेकर दिल्ली की ही अलग-अलग अदालतों में 300 से अधिक याचिकाएं लगी हुई हैं।
उमेश शर्मा बताते हैं कि अंग्रेजी में कामकाज के कारण अकसर ऐसा होता है कि मुवक्किल को यह भी पता नहीं चल पाता कि उसका वकील उसका पक्ष रखने के लिए अदालत के सामने क्या दलीलें रख रहा है। अदालती कामकाज की भाषा अंग्रेजी न होकर हिन्दी और अन्य राज्यों की भाषाएं हों। शर्मा कहते हैं कि अदालती कामकाज हिन्दी में हो इसके लिए जरूरी है कि स्टेनोग्राफर की भर्ती के समय उसके हिन्दी अथवा क्षेत्रीय भाषा के ज्ञान को आधार बनाया जाए। इसी को आधार बनाकर हिन्दी दिवस पर भाषा अभियान समिति ने एक याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में दायर की है। इसमें दिल्ली की अदालतों में अंग्रेजी योग्यता वाले स्टेनोग्राफर्स की भर्ती पर रोक लगाने की मांग की है।

उमेश शर्मा नौकरशाही के हिन्दी विरोधी होने के बावजूद इस बात से खुश हैं कि दिल्ली की साकेत आदलत के दो अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जयचंद्र व इंद्रजीत सप्ताह में एक दिन अपने कामकाज हिन्दी भाषा में करते हैं। वे इसे बदलाव की शुरुआत मानते हैं। 