संध्या द्विवेदी।

‘औरत होने का कोई टैक्स नहीं होना चाहिये। और सैनिटरी पैड पर लगने वाला टैक्स एक तरह से किसी औरत से औरत होने के कारण वसूला गया टैक्स जैसा ही है।’ असम की सिलचर लोकसभा से कांग्रेस सांसद सुश्मिता देव का यह कहना तर्क संगत भी है और जेंडर इक्वेलिटी की ओर बढ़ा बेहद अहम कदम भी है।

सुश्मिता देव कहती हैं ‘कंडोम और कांट्रासेप्शन की तरह ही सैनिटरी नैपकिन भी महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा गंभीर मसला है।’ सुश्मिता कहती हैं यह बुनियादी जरूरत है न कि लक्जरी। इसलिये टैक्स फ्री करने में कोई बाधा नहीं आनी चाहिये।

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी 31 मार्च को वित्त मंत्री को एक पत्र लिखकर अभियान को सफल बनाने की गुजारिश की है।

सुश्मिता देव ने पिछले महीने से एक हस्ताक्षर अभियान चला रखा। टैक्स से बाहर रखे गये कंडोम और कांट्रासेप्शन की तरह ही सैनिटरी पैड को भी टैक्स फ्री करने की मांग इस अभियान में की गई है। ऑन लाइन  हस्ताक्षर अभियान चलाने वाली चेंज.ओआरजी संस्था के जरिये #टैक्सफ्रीविंग्स नाम से यह मुहीम चलाई जा रही है। अभियान  तीन लाख लोगों से इसमें हस्ताक्षर करवाने का लक्ष्य रखा गया है। अभी तक पूरे देश से करीब ढाई लाख लोग इस पेटिशन पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।

 

 तीन लाख हस्ताक्षर वाली इस पेटिशन को वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास इसी हफ्ते भेजा जाना है, ताकि जीएसटी बिल को क्रियान्वित करने से पहले टैक्स फ्री सैनिटरी पैड को भी इसमें जोड़ा जा सके।

जरूरी है टैक्स फ्री पैड?

देश में महज 12 फीसदी औरतें औऱ लड़कियां सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। 88 फीसदी इसके विकल्प में फूस, पत्तियां, कपड़ा, अखबार, राख का इस्तेमाल करती हैं। इन औऱतों में से 70 फीसदी औरतें जननांग संबंधी संक्रमण का शिकार होती हैं। ग्रामीण इलाकों में सैनिटरी नैपकिन आज भी कई अंधविश्वासों और फिजूल खर्च के नाम पर इस्तेमाल नहीं होते हैं।

ग्रामीण इलाकों में स्कूल जाने वाली लड़कियां हर महीने पांच दिन स्कूल नहीं जातीं। इन लड़कियों का ड्रॉप आउट रेट 23 फीसदी है। एसी नील्सन द्वारा 2010 में सैनिटरी नैपकिनः एव्री वुमेन हेल्थ राइट प्रोजेक्ट के तहत किये गये एक सर्वे में यह सामने आया कि 70 प्रतिशत लड़कियां और औरतें इसलिये पैड का इस्तेमाल नहीं करती हैं क्योंकि उनका परिवार इसे खरीदने में सक्षम नहीं है या फिर सैनिटरी नैपकिन की जगह दूसरे विकल्प इस्तेमाल करने में बुराई नहीं समझता है। इस सर्वे में यह भी सामने आया कि गाइनेकोलोजिस्ट भी सैनिटरी नैपकिन की सलाह देते हैं। उनका कहना है इससे जननांग संबधी संक्रमण 64 फीसदी तक कम हो जाता है। सबसे अहम बात यह संक्रमण सरवाइकल कैंसर का एक बड़ा कारण होता है।