सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई में डांस बार मामले में महाराष्ट्र सरकार को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि सड़कों पर भीख मांगने से अच्छा है कि महिलाएं स्टेज पर डांस कर अपनी अजीविका कमाएं। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार डास पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती। कोर्ट का मानना है कि रेगुलेशन और प्रतिबंध लगाने में फर्क होता है। सरकार डांस बार में खुलने से ना रोके बल्कि अश्लीलता रोकन के लिए नियम बनाए।

कोर्ट ने बताया कि राज्य सरकार कह रही है कि वो रेगुलेट कर रही है लेकिन उसके मन में डांस बार को प्रतिबंधित करना है। जब एक बार सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक दायरे को देखते हुए आदेश पास कर दिया तो फिर राज्य सरकार कैसे आदेश का पालन करने से इनकार कर सकती है। सरकार बार के लाइसेंस जारी कर रही है लेकिन डांस बार के लाइसेंस देने में कमियां निकाल रही है। सरकार ने बार और होटल के लिए फायर का नो ओबजेकशन सर्टिफिकेट दिया लेकिन डांस के लिए कह रही है कि शर्तें पूरी नहीं है।सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 10 मई को फिर जवाब देने को कहा है।

कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को लगाई थी फटकार 
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने पहले जारी आदेश का पालन नहीं होने पर नाराजगी जाहिर करते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा था। कोर्ट ने डीसीपी लाइसेंसिंग को 25 अप्रैल को कोर्ट में हाज़िर होने को कहा था। इसके साथ ही कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के पालन के लिए राज्य सरकार ने क्या किया इसे बताने के लिए महाराष्ट्र सरकार को हलफनामा दायर करने का आदेश दिया था।

अस्वीकार्य काम करने से स्टेज पर डांस करना अच्छा : कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार पर सवाल उठाया था कि उसके आदेश के पालन के लिए कितने प्रयास किए गए। कोर्ट ने डांस बार मालिकों को लाइसेंस देने के लिए सीमा तय की थी जिसका पालन राज्य सरकार ने नहीं किया।  जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि भीख मांगने या अस्वीकार्य काम करने से स्टेज पर डांस करना अच्छा है। यहां उनका मतलब देह व्यापार से भी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार एक हफ्ते में डांस बार के कर्मियों की पुलिस वैरिफिकेशन कर लाइसेंस जारी करे। होटल और बार के लिए पहले से ही स्वास्थ्य विभाग के नो ओबजेकशन सर्टिफिकेट जारी हैं तो डांस के लिए अलग से क्या जरूरत है।