नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त की नियुक्ति कर दी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस वीरेंद्र सिंह को यूपी का नया लोकायुक्त बनाया गया है। सर्वोच्च अदालत ने अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए पहली बार किसी राज्य का लोकायुक्त किया है। दरअसल, एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यूपी सरकार को 16 दिसंबर को दोपहर साढ़े बारह बजे तक लोकायुक्त नियुक्त करने का अल्टीमेटम दिया था। मगर राज्य सरकार तय समय में ऐसा करने में नाकाम रही। इससे नाराज अदालत ने सरकार को फटकार लगाते हुए यह फैसला सुनाया।

साफ संदेश

इस फैसले से देश की सबसे बड़ी अदालत ने उन राज्यों को भी साफ संदेश दे दिया है जो लोकायुक्त की नियुक्ति में हीलाहवाली कर रहे हैं। जस्टिस रंजन गोगोई और एनवी रमन्ना की दो सदस्यीय पीठ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जमकर फटकार लगाई। दोनों जजों ने उत्तर प्रदेश सरकार की पैरवी करने वाले वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल को फटकार लगाते हुए पूछा कि अदालत के आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया। साथ ही उनसे नियुक्ति के बारे में भी उन्होंने सवाल किया। इस पर सिब्बल ने कहा कि राज्य सरकार पांच नामों पर चर्चा कर रही है। उन नामों के बारे में जब अदालत ने पूछा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। अदालत ने संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों द्वारा सर्वोच्च अदालत के फैसले का पालन न किए जाने पर अफसोस जताया। साथ ही कहा कि अदालत को अपने आदेश का पालन करवाना आता है।

Closing ceremony of SP's cycle rallyलोकायुक्त चयन के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की चयन समिति की पांच घंटे चली बैठक मंगलवार को बेनतीजा रही। देर रात तक बैठक में किसी नाम पर सहमति नहीं बन पाई। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को नया लोकायुक्त चुनने के लिए पिछले साल छह महीने का वक्त दिया। लेकिन सरकार ने और वक्त मांगा। इस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने चार हफ्ते का समय और दिया। इसके बाद पांच अगस्त को सरकार ने जस्टिस रवींद्र सिंह का नाम लोकायुक्त के लिए तय कर राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा लेकिन राज्यपाल ने इससे पहले चयन समिति की बैठक का ब्योरा मांग लिया।

नाम पर विवाद

असल में इस नाम से सियासी जुड़ाव पर मुख्य न्यायाधीश के एतराज को राज्यपाल ने गंभीरता से लिया। इस बीच सरकार ने चयन समिति की बैठक नहीं बुलाई तो राज्यपाल ने अगस्त में रवींद्र सिंह का नाम खारिज कर दिया और नया नाम भेजने का कहा। इसी बीच अखिलेश सरकार लोकायुक्त संशोधन बिल ले आई। इसमें लोकायुक्त के चयन में हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका खत्म करने का प्रस्ताव है। राज्यपाल के पास यह बिल लंबित है।

इसी गहमागहमी के बीच सरकार ने चयन समिति की बैठक सितंबर में बुलाई। बैठक में जब सरकार की ओर से लोकायुक्त चयन के लिए पांच नामों को पेश किया गया तो मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब सरकार लोकायुक्त संशोधन विधेयक विधानमंडल से पास कर चुकी है तो यह देखा जाना चाहिए कि कहीं चयन समिति की बैठक से सदन की अवमानना तो नहीं हो रही है? इस सवाल पर सरकार को कानूनी राय लेनी चाहिए। इस पर कानूनी राय ले ली गई और पुराने लोकायुक्त एक्ट से लोकायुक्त चुनने का रास्ता साफ हो गया। इसके बावजूद राज्य सरकार लोकायुक्त का चयन तय समय पर नहीं कर पाई।