नगालैंड में बुधवार को नाटकीय घटनाक्रम के बीच राज्यपाल पीबी आचार्य ने नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के प्रमुख टीआर जेलियांग (65) को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने जेलियांग को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए 22 जुलाई तक का समय दिया गया है। हालांकि जेलियांग ने 21 जुलाई को बहुमत साबित करने का ऐलान किया है। इसके बाद ही वे मंत्रिमंडल की घोषणा करेंगे।

दरअसल, बुधवार को मुख्यमंत्री शुरहोजेली लीजित्सु (80) को विधानसभा में शक्ति परीक्षण से गुजरना था। इसी के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया था मगर विधायकों की पर्याप्त संख्या न होने के चलते लीजित्सु विधानसभा पहुंचे ही नहीं। इससे स्पष्ट हो गया कि शक्ति परीक्षण में उन्होंने हार मान ली। बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण राज्यपाल ने उनकी सरकार को बर्खास्त कर उन्हीं की पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। राज्यपाल ने जेलियांग को राज्य के 19वें मुख्यमंत्री के रूप में पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई।

क्या है मामला

शुरहोजेली लीजित्सु
शुरहोजेली लीजित्सु

निकाय चुनावों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित किए जाने पर जनजातीय समूहों के हिंसक विरोध के बाद इसी साल 22 फरवरी को जेलियांग को पद से इस्तीफा देना पड़ा था जिसके बाद लीजित्सु (80) मुख्यमंत्री बने थे। इस बीच, एनपीएफ दो धड़ों में बंट गई। एक खेमा जेलियांग को फिर से मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग करने लगा। इन सबके बीच राज्यपाल पीबी आचार्य ने 11 और 13 जुलाई को लीजित्सु से 15 जुलाई तक बहुमत साबित करने को कहा, जिसे उन्होंने अदालत में चुनौती दी। लीजित्सु की रिट याचिका गुवाहाटी हाई कोर्ट की कोहिमा पीठ ने खारिज कर दी। न्यायमूर्ति लानुसुंगकुम जमीर ने कहा कि लीजित्सु के पास सदन में बहुमत नहीं है और राज्यपाल बिना किसी सहायता व सलाह के अपने विवेक से फैसले ले सकते हैं। इसके बाद राज्यपाल आचार्य ने मंगलवार रात को बुधवार को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा की थी। पर लीजित्सु बुधवार को विधानसभा के विशेष सत्र में नहीं पहुंचे। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष इमतिवापांग आयर ने यह कहते हुए सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी कि मुख्यमंत्री द्वारा बहुमत साबित करने का प्रस्ताव नहीं रखा जा सका क्योंकि वे सदन में मौजूद नहीं हुए।

हालांकि, जेलियांग इस दौरान पार्टी के अपने 35 समर्थक विधायकों, चार भाजपा विधायकों और सात निर्दलीय विधायकों के साथ सदन में मौजूद थे। 60 सदस्यीय विधानसभा में लीजित्सु को एनपीएफ के 10 विधायकों और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन हासिल है। एनपीएफ के लीजित्सु खेमे के प्रवक्ता यिताचु ने विधानसभा में अनुपस्थिति पर कहा, “हमें बहुमत साबित करने के लिए समय नहीं दिया गया। हम विधानसभा सत्र में कैसे भाग ले सकते हैं, जब हम में से ज्यादातर सदस्य कोहिमा में मौजूद नहीं हैं। विधानसभा सत्र बुलाने की सूचना भी मंगलवार आधी रात को दी गई।” यिताचू ने कहा, “हम विधानसभा सत्र अचानक बुलाने का कारण नहीं समझ पा रहे हैं। एनपीएफ के भीतर जारी उथल-पुथल पार्टी का आंतरिक मामला है और इसे सदन के बाहर सुलझाया जाना चाहिए।” वहीं, जेलियांग खेमे के एनपीएफ के प्रवक्ता तोखेहो येप्तोमी ने कहा कि लीजित्सु को सदन में बहुमत साबित करने से बचने की बजाय सम्मानजनक तरीके से इस्तीफा दे देना चाहिए था।

कैसे शुरू हुई कलह

सत्तारूढ़ गठबंधन में कलह की शुरुआत एनपीएफ के एक धड़े द्वारा लीजित्सु पर भाई-भतीजावाद का आरोप लगाए जाने के बाद हुई। इस धड़े ने आरोप लगाया कि लीजित्सु ने अपने बेटे क्रिहू लीजित्सु को कैबिनेट दर्जे के साथ अपना सलाहकार नियुक्त किया। हालांकि क्रिहू ने इससे इनकार किया। लीजित्सु ने एनपीएफ के उम्मीदवार के तौर पर 29 जुलाई को होने वाले विधानसभा उपचुनाव (नॉदर्न अंगामी-1 विधानसभा क्षेत्र से) के लिए नामांकन-पत्र भी दाखिल किया है।