डॉ. संतोष मानव।

रीवा में आयोजित भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में उस समय खामोशी छा गई जब ग्वालियर के भाजपा नेता जय सिंह कुशवाह ने प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ मुंह खोला। सकपकाए मुख्यमंत्री ने उन्हें चुप कराने के लिए प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान को इशारा किया। चौहान ने किसी तरह जय सिंह को चुप कराया। इससे पहले पेश राजनीतिक प्रस्ताव में प्रमोशन में आरक्षण का समर्थन किया गया था। इस बैठक के दो दिन बाद ग्वालियर में सामान्य-पिछड़ा वर्ग-अल्पसंख्यक कर्मचारी-अधिकारी संगठन यानी सपाक्स ने जय सिंह का सत्कार किया। इसमें भी जय सिंह गरजे कि प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ वे मरते दम तक लडेंगे।

दरअसल, अनुसूचित जाति-जनजाति कर्मचारी-अधिकारी संगठन (अजाक्स) के सम्मेलन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था, ‘कोई माई का लाल प्रमोशन में आरक्षण नहीं छीन सकता। सरकार इसके लिए सारे नियम-कानून बदल डालेगी।’ उन्होंने इसके लिए मंत्रियों की एक कमेटी भी बना दी। भाजपाई दबे स्वर में कह रहे हैं कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है। ऐसे में मुख्यमंत्री को ऐसा कड़ा बयान देने की आवश्यकता नहीं थी। उनके ‘माई के लाल’ ने ही विरोध की चिंगारी को हवा दी है। उनका दावा है कि जय सिंह के बाद और भी नेता मुंह खोलने को तैयार बैठे हैं। वहीं पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता रामेश्वर शर्मा का कहना है कि पार्टी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री के साथ है।

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अजाक्स से अलग होने वाले आईएएस अधिकारी व पंचायत व ग्रामीण विभाग के सचिव रमेश थेटे से हुई बातचीत के अंश:-

नया संगठन कब तक बनेगा?
इसकी प्रक्रिया चल रही है।
इस संगठन का नाम क्या होगा?
यह भी प्रक्रिया में है। इसी माह सब तय होगा। बात चल रही है।
क्या आप अजाक्स को तोड़ेंगे?
यह तो बाद की बात है।
अजाक्स से क्या नाराजगी है?
यह छोटा मामला है। इस पर बाद में बात करेंगे।
फिर भी, क्या दिक्कत थी?
वह तो एससी-एसटी का संगठन है। हमारा संगठन सभी के लिए होगा।
अचानक से यह विचार क्यों आया?
मैं तो पब्लिक का आदमी हूं। लगा कि कुछ करना चाहिए।

इस मसले पर दल ही नहीं, संगठन भी टूट रहे हैं। अब तक अजाक्स में रहे आईएएस अधिकारी रमेश थेटे और शशि कर्णावत ने नया संगठन बनाने की बात कही है। दोनों का कहना है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान होना चाहिए। थेटे ने कहा कि अजाक्स के कुछ लोग संगठन के नाम पर अपना हित साध रहे हैं। यानी अजाक्स में फूट का बीजारोपण हो चुका है।

यह विवाद मई महीने में उस समय शुरू हुआ जब हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच ने प्रमोशन में आरक्षण को असंवैधानिक ठहराया। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि जिन्हें प्रमोशन में आरक्षण का लाभ मिला है उन्हें पदावनत किया जाए। फैसला सुनाते समय कोर्ट ने टिप्पणी की कि आरक्षित वर्ग को वरीयता और सामान्य वर्ग को पीछे रखना ठीक नहीं है। इससे वास्तविक प्रतिभा कुंठित होती है। प्रमोशन में आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 16 व 355 के साथ-साथ कोर्ट द्वारा केंद्र को दिए गए दिशा-निर्देशों के खिलाफ है।

इसी के साथ शिवराज सरकार की सांस फूल गई। राज्य सरकार की बेचैनी इसी से समझी जा सकती है कि फैसले के दो दिन बाद ही प्रदेश के तीन बड़े अधिकारी फैसले को चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। इसी के साथ रैली, बैठक, हस्ताक्षर अभियान, धरना, बयानबाजी, सम्मेलन का दौर शुरू हो गया। मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष व महिला-बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव जेएन कंसोटिया ने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण खत्म हुआ तो वे सब धर्म बदल लेंगे। इसे लेकर संघ ने रैली भी निकाली। उधर दो-तीन संगठनों ने मिलकर मध्य प्रदेश सामान्य-पिछड़ा वर्ग-अल्पसंख्यक अधिकारी व कर्मचारी संयुक्त मोर्चा यानी सपाक्स का गठन कर लिया।
दरअसल, 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान किया था। 11 जून, 2002 को जारी अधिसूचना में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 16 फीसदी और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 20 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया। इसमें एससी-एसटी के लिए तय कोटे में इस वर्ग के कर्मचारियों-अधिकारियों को ही पदोन्नति देकर भरने का उल्लेख था। 2002 से 2011 तक सब कुछ ठीक रहा। मगर 2011 में इसके विरोध में दनादन 24 याचिकाएं कोर्ट में दाखिल हो गर्इं। याचिकाकर्ताओं में सामाजिक संगठन व कर्मचारी शामिल थे। पांच साल की लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट का फैसला आया। ऐसे में सरकार की परेशानी वाजिब है। 14 साल में आरक्षण के तहत लगभग 50 हजार प्रमोशन हुए। इन्हें पदावनत करना आसान नहीं है।

हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल स्टे दे दिया है और यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। मामले की अंतिम सुनवाई सितंबर में होगी। सुप्रीम कोर्ट के स्टे से शिवराज सरकार को तात्कालिक राहत तो मिल गई है लेकिन जानकारों का मानना है कि सरकार संकट में फंस गई है। इसी तरह के मामले दूसरे राज्यों में भी आए थे। उन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण को अमान्य करार दिया था। बहुत संभव है कि मध्य प्रदेश के मामले में जो प्रमोशन पा गए हैं उन्हें पदावनत न किया जाए लेकिन आगे से ऐसा नहीं हो पाएगा। जिस तरह से प्रमोशन में आरक्षण का विरोध करने वाले संगठन संगठित हुए हैं, वह भी सरकार के लिए परेशानी का सबब है।