राजीव थपलियाल ।
उत्तराखंड में भाजपा के सत्ता प्राप्ति के सारे ‘जतन’ वक्त के साथ उसी के लिए भारी पड़े हैं। पार्टी के जतन उसी के लिए गुटबाजी, अंदरूनी असंतोष और जगहंसाई का सबब तक बनते आए हैं। उत्तराखंड की सत्ता को जबरन हथियाने में नाकाम रही भाजपा के लिए इससे शर्मनाक बात क्या होगी कि उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की बहुप्रचारित 25 जून की हरिद्वार रैली में वह भीड़ नहीं जुट सकी जिसके दावे किए जा रहे थे। भाजपाई सियासत में मंगलवार पांच जुलाई को एक नया अध्याय लिखा गया। केंद्रीय मंत्रिमंडल में उत्तराखंड के अल्मोड़ा से सांसद अजय टम्टा को राज्यमंत्री बनाया गया। भाजपा नेता इसे युवा और दलित चेहरा कहकर इसके चुनावी लाभों का गुणगान कर रहे हैं लेकिन सच यह है कि इसकी वजह से पार्टी में असंतोष बढ़ सकता है। भाजपा के बड़े नेता अनुशासन के नाते बधाइयां और शुभकामनाएं लेने-देने के कर्म में तल्लीन नजर आए, लेकिन उनके समर्थक कार्यकर्ताओं को मोदी सरकार का फैसला पसंद नहीं आया। भाजपा के लोगों ने ही सवाल किया कि उत्तराखंड को समझने में हाईकमान बार-बार क्यों चूक रहा है?

बहुत देर से लिया फैसला
2014 में हुए लोकसभा चुनावों में उत्तराखंड ने सभी पांचों संसदीय सीटें भाजपा की झोली में डाली थीं। उम्मीद थी कि सूबे को इसका प्रतिफल मिलेगा। भाजपा के पास उत्तराखंड से अनुभवी चेहरे थे भी, जिनमें पौड़ी के सांसद पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी का नाम प्रमुख था। बीसी खंडूड़ी पहले भी अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में बतौर सड़क परिवहन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) देशभर में अपनी ईमानदार छवि से पहचान बना चुके थे। नैनीताल से चुने गए सांसद पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के पास लंबा राजनीतिक और संसदीय अनुभव था। हरिद्वार से रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के पास उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में काबीना मंत्री का लंबा अनुभव था। उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर कमान संभाली थी। इस सबके बावजूद उत्तराखंड से मोदी मंत्रिमंडल में जब किसी भी नेता को तरजीह नहीं मिली तो विपक्षी कांग्रेसियों ने इन दो सालों में भाजपा पर खूब तानाकशी की। खैर! अब मोदी मंत्रिमंडल के पहले विस्तार में दो साल बाद ही सही उत्तराखंड से अजय टम्टा को राज्यमंत्री का दर्जा मिला है। अजय टम्टा भी करीब दो साल खंडूडी सरकार में कैबीनेट मंत्री रहे थे।

टम्टा के बहाने दलितों पर राजनीति
उत्तराखंड में चुनावी सरगर्मी शुरू हो गई। हाल में कांग्रेस ने अल्मोड़ा के पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा को राज्यसभा में भेजकर दलित कार्ड खेला था। प्रदीप उत्तराखंड मूल के पहले दलित नेता थे, जो राज्यसभा में भेजे गए। विगत लोकसभा चुनाव में प्रदीप टम्टा को अजय भट्ट ने हराया था। अब भाजपा ने भी कांग्रेस के इसी दलित कार्ड के जवाब में प्रदीप के सियासी प्रतिद्वंद्वी अजय टम्टा को केंद्र में मंत्री बनाया है। उत्तराखंड का पहाड़ी दलित वोटर ज्यादातर कांग्रेसी है, जबकि मैदानी दलित वोटर बसपा और कांग्रेस दोनों का समर्थन करता है।
भाजपा के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता प्रकाश सुमन ध्यानी ने कहा भी कि देश की आजादी के बाद यह पहला मौका है कि उत्तराखंड से किसी दलित को केंद्र सरकार में मंत्री बनाया गया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस वोट के चक्कर में केवल सांसद ही बना सकती है, लेकिन बीजेपी ने तीन वरिष्ठ सवर्ण सांसदों के होते हुए भी एक दलित को मंत्री बनाकर दलितों के सम्मान की अपनी मंशा साबित कर दी है।

यह अलग बात है कि कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप भट्ट ने अजय टम्टा की नियुक्ति को सीधे-सीधे चुनावी हथकंडा करार दिया। उन्होंने कहा दो साल तक मोदी कहां सोए थे। अब विधानसभा चुनाव सिर पर आया तो दलित प्रेम का दिखावा कर दिया। उन्होंने कहा कि भाजपा कुछ भी कर ले दलित और पिछड़े वर्ग का वोट मुख्यमंत्री हरीश रावत को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला।
बहरहाल इस चुनावी वर्ष में मोदी ने अजय टम्टा को राज्य मंत्री बनाकर दलितों को लुभाने का जो प्रयास किया है, वह कितना प्रभावी होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

क्षत्रपों से मुक्ति की जद्दोजहद में लिया निर्णय
राज्य गठन के समय से ही भाजपा कोश्यारी-खंडूड़ी-निशंक के त्रिकोण में फंसी थी। इन तीनों नेताओं की आपसी रार ने भाजपा को जीती बाजियां भी हरा दीं। इनकी गुटीय जंग न होती तो शायद वर्ष 2012 में भाजपा दोबारा सत्ता पर काबिज हो चुकी होती। भाजपा के अंदरूनी शीतयुद्ध में गरमी तब आई जब इसी साल 18 मार्च को विधानसभा में हंगामे के साथ नौ विधायकों ने हरीश सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया और भाजपा के पाले में आ गए। हंगामा करने में माहिर और मुंहफट नेता हरक सिंह रावत, सुुबोध उनियाल और कुंवर प्रणव चैम्पियन के भाजपा में प्रवेश ने नए गुटीय समीकरण बनाने शुरू कर दिए हैं। हालांकि इन सबकी कमान पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के हाथों में है, लेकिन गरमदल नेताओं की एंट्री से भाजपा के पुराने दिग्गजों में खलबली मची है।

भाजपा के पुराने तीनों क्षत्रपों ने कभी भी नए नेताओं को नहीं बढ़ने दिया। बगैर इनकी सहमति के न तो प्रदेश में पार्टी अध्यक्ष बना और न ही टिकट बंट पाए। अब केंद्रीय नेतृत्व ने पुराने चेहरों को दरकिनार कर युवा चेहरे अजय टम्टा को आगे किया है। अजय टम्टा को आगे किया जाना पार्टी में नए समीकरण पैदा करेगा।

मजबूरियां कम नहीं थीं
सूत्रों की मानें तो अजय टम्टा को यूं ही नहीं मंत्री बना दिया गया। सभी नामों पर मंथन के बाद ही अजय टम्टा का नाम सामने आया। दरअसल चुनावी लिहाज से सर्वाधिक लोकप्रिय चेहरे बीसी खंडूड़ी की उम्र उनके मंत्री बनने की राह में आ गई। दूसरा, आगामी विधानसभा चुनावों में वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में भी पेश किए जा सकते हैं।

उत्तराखंड में कांग्रेस विधायक दल में विद्रोह के बावजूद सत्ता हासिल न करा पाने का दाग कोश्यारी पर है। साल 2012 में भी कोश्यारी की महत्वाकांक्षाओं के चलते भाजपा सत्ता में आते-आते रही थी। और तो और 2000 में प्रथम अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को उतार कर कोश्यारी खुद इस दावे के साथ सत्ता के मुखिया बने थे कि अगली सरकार भाजपा की ही होगी। लेकिन कोश्यारी के सीएम बनने के बाद अगली सरकार कांग्रेस की आ गई।

रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को मुख्यमंत्री की कुर्सी से घोटालों के आरोपों के कारण हटाना पड़ा था। मोदी जैसे पाक-साफ छवि वाले व्यक्तित्व को निशंक जैसे दागी व्यक्ति शायद ही पसंद आते हों। इसलिए निशंक के मंत्री बनने का सवाल ही नहीं था।
उत्तराखंड में इन्हीं कारणों से केंद्रीय मंत्रिपद के लिए टिहरी की सांसद महारानी माला राज्यलक्ष्मी का नाम भी जोरों से प्रचारित किया जा रहा था। माना जा रहा था कि कोश्यारी मंत्री बनने में खुद नाकाम हुए तो अपनी समर्थक टिहरी सांसद को टीम मोदी में जगह दिलवा ही देंगे। लेकिन महारानी की ‘गुड़िया’ वाली छवि से बेहतर मोदी को अजय टम्टा दिखे जिन पर कोई दाग नहीं था।

टेक्नीकली सही, पॉलिटिकली गलत
राजनीतिक विश्लेषक अजय गौतम के मुताबिक उत्तराखंड भाजपा को कोश्यारी-खंडूड़ी-निशंक की तिकड़ी से बाहर निकालने की दृष्टि से भले ही मोदी ने सही निर्णय लिया हो। बेशक टम्टा बेदाग, युवा और दलित चेहरा हैं, लेकिन सियासी रूप से राज्य में उनका कद इतना बड़ा नहीं है कि चुनावी लाभ मिल सके। टम्टा को खंडूड़ी समर्थक माना जाता है। इस लिहाज से वे ईमानदारों की पांत में गिने जाते हैं, लेकिन जब चुनावी जंग शुरू होगी तो टम्टा शायद ही कांग्रेसी दिग्गजों के आगे ठहर सकें। इसलिए अजय टम्टा के मंत्री पद पर चयन हेतु तकनीकी आधार भले सही हों, लेकिन राजनीतिक रूप से मोदी का यह निर्णय सही नहीं माना जा सकता। इसके अलावा टम्टा को दिया गया कपड़ा मंत्रालय भी राज्यवासियों को अटपटा लग रहा है। पिथौरागढ़ के सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार खत्री कहते हैं कि उत्तराखंड के रहने वाले टम्टा को पर्यटन, स्वास्थ्य, शिक्षा, धर्म जैसा विभाग दिया जाता तो शायद वे कुछ कर भी पाते।

भाजपा पर भी क्षेत्रवाद का आरोप
अभी तक कांग्रेस पर ही क्षेत्र विशेष के तुष्टीकरण के आरोप लग रहे थे। खुद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री हरीश रावत पर कुमाऊं क्षेत्र पर ही ध्यान केंद्रित करने का आरोप लगाया था, जब प्रदीप टम्टा का नाम राज्यसभा के लिए चयनित किया गया। कांग्रेस ने राज्यसभा में दो लोग कुमाऊं से भेजे हैं, जबकि विधानसभा अध्यक्ष और हरीश रावत भी कुमाऊं से ही हैं। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष गढ़वाल से हैं। भाजपा इससे भी दो हाथ आगे निकल चुकी है। बीजेपी ने नेता प्रतिपक्ष और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष कुमाऊं से हैं। इसके अलावा भाजयुमो अध्यक्ष भी कुमाऊं से ही बनाया गया। अब केंद्र में मंत्री भी कुमाऊं से ही बनाया गया है। क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से बीजेपी को इनमें कोई एक पद गढ़वाल को देना चाहिए था।