निशा शर्मा

करीब पांच दशकों तक अपने दमदार अभिनय, बोलती आंखों, शोख अदाओं, दिलकश मुस्कान से हर दिल पर राज करने वाली ख्वाबों की शहजादी श्रीदेवी ने अपनी मातृभूमि से हजारों किलोमीटर दूर दुबई में अंतिम सांस ली। 54 वर्षीय इस अभिनेत्री के असमय निधन की खबर ने परिवार ही नहीं सिनेमा जगत और सिने प्रेमियों को हिला कर रख दिया। किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि करोड़ों दिलों की धड़कन जो अपने जलवों से बिजली गिराया करती थीं, पीढ़ियां जिसकी अदाकारी देखकर बड़ी व बूढ़ी हुर्इं, वह इस तरह दुनिया से कैसे जा सकती हैं?
श्रीदेवी ऐसी अभिनेत्री थीं जो सालों बाद भी अपने अभिनय से लोगों के रोंगटे खड़े करने का माद्दा रखती थीं। उनसे उम्मीद की जाती थी कि वह अपने अभिनय से सबको चौंकाएंगी और नए आयाम गढ़ेंगी। बॉलीवुड प्यार से जिन्हें श्री कहता था, उनके निधन से सिसक उठा। उनका शव जब तक दुबई से मुंबई नहीं आ गया तब तक हजारों प्रशंसक उनके घर के सामने उनके अंतिम दर्शन के लिए डटे रहे। उनकी अंतिम यात्रा में फिल्मी दुनिया के तमाम लोगों के अलावा लाखों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। हाल के वर्षों में किसी कलाकार की अंतिम यात्रा में शायद ही ऐसा हुजूम देखने को मिला हो। श्रीदेवी की अचानक मौत ने बॉलीवुड को जो नुकसान पहुंचाया है उसकी भरपाई मुश्किल है।
तमिलनाडु की अम्मा यंगर अयप्पन, जो बाद में श्रीदेवी के नाम से मशहूर हुर्इं, ने महज चार साल की उम्र में फिल्मी पर्दे पर अभिनय की शुरुआत की। उन्होंने अपनी अदाकारी से कम उम्र में ही न सिर्फ लोगों को दिवाना बनाया बल्कि बॉलीवुड में आने से पहले दक्षिण भारतीय फिल्मों में अपने नाम का डंका बजाया। बतौर लीड एक्ट्रेस सबसे पहले रजनीकांत के साथ 1976 में तमिल फिल्म ‘मून्नरू मुडिचु’ में काम किया जिसमें कमल हासन की खास भूमिका थी। 1977 में आई उनकी फिल्म ‘16 भयानिथनिले’ की सफलता से श्रीदेवी तमिल फिल्मों की स्टार बन गर्इं। दक्षिण भारतीय फिल्मों में वह वो मुकाम रखती थीं जो रजनीकांत और कमल हासन का रहा है। कॉलीवुड और टॉलीवुड में मुकाम रखने के बावजूद बॉलीवुड में श्रीदेवी को शुरुआत में काफी संघर्ष करना पड़ा। तमिल और तेलुगू फिल्मों में श्रीदेवी का रूतबा उस तरह का था जो रूतबा हिन्दी सिनेमा में स्मिता पाटिल और शबाना आजमी का रहा है। लेकिन इसके उलट हिन्दी सिनेमा में वह एक कमर्शियल अमिनेत्री के तौर पर उभरीं। फिल्म जूली से श्रीदेवी ने बाल कलाकार के तौर पर हिंदी सिनेमा में कदम रखा लेकिन इस कदम की आहट किसी ने नहीं पहचानी। फिर बतौर अभिनेत्री सोलवां सावन में नजर आर्इं लेकिन इस बार भी उनका आना, जाने जैसा रहा।
कॉलीवुड और टॉलीवुड से अलग उस समय हिंदी सिनेमा में अभिनेत्रियों के लिए खास मापदंड हुआ करते थे। अभिनेत्री की सुंदरता के साथ-साथ नृत्य में उसकी पारंगता को महत्ता दी जाती थी। श्रीदेवी ने कभी भी नृत्य की कोई पारंपरिक शिक्षा नहीं ली थी पर वह अक्सर कहती थीं कि उन्हें डांस और अभिनय का शौक है। श्रीदेवी ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि अस्सी के दशक में वह सुबह 6 बजे की शिफ्ट से काम शुरू करती थीं और रात तीन बजे तक काम करती थीं। फिल्मों के प्रति उनका यह समर्पण ही था कि 1977-1983 तक महज पांच सालों में उन्होंने 100 फिल्में की।
श्रीदेवी जब हिंदी सिनेमा में आर्इं तो वह सांवली थीं, उनका वजन करीब 75 किलो था और लोग उन्हें ‘थंडर थाइज’ कहते थे। लेकिन जैसै-जैसे श्रीदेवी ने बॉलीवुड को समझा वह सुपरहिट हिरोइन साबित होती गर्इं। बॉलीवुड की वो पहली सुपरस्टार हिरोइन थीं। 1983 में ‘हिम्मतवाला’ के रिलीज होने के बाद श्रीदेवी का नाम किसी निर्माता, निर्देशक या अभिनेता का मोहताज नहीं रहा। अस्सी, नब्बे का दौर श्रीदेवी का दौर बनकर उभरा। इसी दौर में उन्होंने सदमा, हिम्मतवाला, नगीना, मिस्टर इंडिया, चांदनी, चालबाज, कर्मा, लम्हें जैसी फिल्मों में अभिनय के अलग-अलग रंग बिखेरे। लम्हें और चालबाज के लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्म फेयर अवार्ड मिला था। अभिनय में उनके बेहतरीन योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2013 में नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से नवाजा।
फिल्म सदमा फ्लॉप रही लेकिन फिल्म में श्रीदेवी के अभिनय को सराहा ही नहीं गया बल्कि उत्कृष्ट श्रेणी का माना गया। फिल्म में श्रीदेवी ने दिमागी रूप से अवरूद्ध लड़की का किरदार निभाया था। रेलवे स्टेशन का वह सीन जहां याददाश्त वापस आने के बाद ट्रेन में बैठी श्रीदेवी कमल हासन को भिखारी समझ बेरुखी से आगे बढ़ जाती है और कमल हासन बच्चों जैसी हरकतें करते हुए श्रीदेवी को पुराने दिन याद दिलाने की कोशिश और करतब करते हैं, शायद हिंदी फिल्मों के बेहतरीन दृश्यों में से एक होगा।
ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में अभिनेत्री रेणुका शहाणे श्रीदेवी को याद करते हुए कहती हैं, ‘वह एक संपूर्ण अभिनेत्री थीं जो किसी की भी प्रेरणा हो सकती हैं। जिस अभिनेत्री ने कमल हासन जैसे कलाकार के साथ कम उम्र में काम करके खुद के लिए हिंदी सिनेमा में जगह बना ली हो उनकी अभिनय क्षमता को कोई कैसे कम आंक सकता है।’ फिल्म चांदनी ने उन्हें रुपहले पर्दे की चांदनी का ताज ही नहीं पहनाया बल्कि स्टार बना दिया। यह उनके अभिनय का ही जलवा था कि फिल्म की रिलीज के बाद सफेद रंग और शिफॉन की साड़ी श्रीदेवी का पर्याय बन गई। फिल्म में उनकी नृत्य शैली, हाव-भाव, उन पर फिल्माया गीत ‘मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ियां हैं’ कई सालों तक देश में होने वाले शादी-समारोह का हिस्सा रहा। यही नहीं फिल्म लम्हे बॉक्स आॅफिस पर फ्लॉप रही लेकिन फिल्म का गीत ‘मोरनी बागा में नाचे आधी रात में’ से श्रीदेवी ने तहलका मचा दिया था। ये वो दौर था जब लोग श्रीदेवी के नृत्य के दिवाने थे। कोरियोग्राफर सरोज खान हमेशा कहती रहीं कि उन्होंने अपनी जिंदगी में डांस में श्रीदेवी जैसा लचीलापन किसी में नहीं देखा।
वहीं फिल्म समीक्षक जय प्रकाश चौकसे कहते हैं कि श्रीदेवी में जादुई तत्व थे। श्रीदेवी के चेहरे पर बच्चों जैसी मासूमियत और शरीर में मादकता थी। इसी मासूमियत और मादकता से बनता था उनका जादू जो पर्दे पर सबको मदहोश करने का हुनर रखता था। शायद यही कारण था कि वह लटके-झटके वाले गानों में भी कभी अश्लील नहीं लगीं। मि. इंडिया का गाना ‘काटे नहीं कटते दिन ये रात..’ आज भी परिवार के साथ लोग देखते हैं। फिल्म निर्देशक, निर्माता यह जान चुके थे कि उन्होंने चाहे नृत्य सिखा ना हो लेकिन वह नृत्य की परिभाषा अच्छी तरह समझती हैं। तभी फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों और लेखकों ने उनके लिए गाने ही नहीं बल्कि उनको ध्यान में रखकर फिल्म भी लिखी। फिल्म चालबाज, मि. इंडिया इसका जीता-जागता उदाहरण है। श्रीदेवी के पति और प्रोड्यूसर बोनी कपूर ने कई बार अलग-अलग जगह इस बात को साझा किया। बोनी ने बताया कि श्रीदेवी को फिल्म मि. इंडिया के लिए साइन करने के लिए जब वह उनके घर मद्रास (आज का चेन्नई) पहुंचे तो उनकी माताजी ने उनसे 10 लाख रुपये की डिमांड की थी और उन्होंने श्रीदेवी को अपनी फिल्म में लेने के लिए ग्यारह लाख रुपये की पेशकश की थी क्योंकि वह जानते थे कि श्रीदेवी के अलावा उस फिल्म को कोई और मुकाम नहीं दिला सकता था।
श्रीदेवी ने भले ही डांस नहीं सिखा था मगर वह अभिनय की हर विधा कॉमेडी, एक्शन, डांस, ड्रामा में पारंगत थीं। मि. इंडिया में चार्ली चैप्लिन की वेशभूषा में उनका दृश्य आज भी परफेक्ट कॉमिक टाइमिंग के लिए जाना जाता है। जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा था कि चार्ली चैप्लिन का सीन आपने कैसे किया तो उनका कहना था कि शेखर कपूर ने उन्हें कुछ नया करने को कहा था और मैंने वह करके दिखा दिया। फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज कहते हैं, ‘मेरी सोच में श्रीदेवी सीमित भावमुद्रा की अभिनेत्री थीं। लेकिन वह अपनी इस क्षमता को बखूबी जानती थीं जिसकी वजह से उन भावों और मुद्राओं तक कभी कोई नहीं पहुंच पाया।’
उस दौर में फिल्में श्रीदेवी के नाम से चलने और बनने लगीं थी। लोग उन्हें लेडी अमिताभ कहने लगे थे। श्रीदेवी अपना स्टारडम कायम कर चुकी थीं जिसकी बदौलत श्रीदेवी को अभिनेता से ज्यादा मेहनताना मिलने लगा था। कहा जाता है कि जब वह किसी फिल्म की शूटिंग के लिए निकलती थीं तो ऐसा लगता था कोई महारानी अपने महल से निकल रही है। महंगा पहनावा, आलीशान गाड़ियां उनका इंतजार किया करती थीं। इस मुकाम को पाने के लिए श्रीदेवी ने अपने लहजे, हाव भाव, अभिनय क्षमता पर बहुत काम किया था। वह ऐसी अदाकारा थीं जो मोम की तरह किसी भी रोल में बखूबी ढल जाया करती थीं। वह एक ओरिजनल स्टार थीं जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती।
वैजयंती माला के बाद दक्षिण भारत से आने वाली वह इकलौती ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने हिंदी फिल्मों की खातिर हिंदी सीखी थी। अपनी जिंदगी के 54 सालों में 50 साल श्रीदेवी ने सिनेमा जगत को दिए। कई बार इस बारे में श्रीदेवी ने जिक्र किया था कि उन्होंने अपना बचपन अन्य लड़कियों जैसा नहीं जिया। शूटिंग में व्यस्त रहने के चलते उन्हें इतना भी समय नहीं मिलता था कि वह अपने कपड़े खरीद सकें। लंबे समय तक उनके कपड़े उनकी मां ही खरीदती थीं। शायद यही कारण रहा कि जब उनकी बेटियां हुर्इं तो उन्होंने उसी सिनेमा से 15 साल का अंतराल लिया जिस सिनेमा को वह चार साल की उम्र से पहनती-ओढ़ती आ रही थीं ताकि अपनी बेटियों के जरिये वह अपने बचपन को जी सकें। श्रीदेवी ने अपनी फिल्मों के नहीं चलने के चलते भी पर्दे से लंबा अंतराल लिया क्योंकि उस दौर को वो समझ चुकी थीं कि उनका सिनेमाई सूरज अस्त हो रहा है। इसका कारण माधुरी दीक्षित का उभरना भी रहा।
सिनेमाई पर्दे पर अपनी दूसरी पारी में उन्होंने इंग्लिश-विंग्लिश से धमाकेदार एंट्री करके सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। हालांकि इस बार वह संजीदा फिल्मों की अभिनेत्री थीं। उन्होंने इंग्लिश-विंगलिश और मॉम जैसी फिल्म करके समीक्षकों से खूब वाहवाही बटोरी। पहली लेडी सुपरस्टार फिर अपने चरम पर पहुंचने को तैयार थीं लेकिन एक अनहोनी ने ऐसा नहीं होने दिया। उनकी मौत को लेकर कई कयास लगाए गए जिसमें प्लास्टिक सर्जरी से लेकर उनके खुद को सुंदर दिखने के लिए पिल्स के इस्तेमाल तक की बात हुई। चमकते सितारों की अंधेर जिंदगियों पर फिर निगाह दौड़ाई गई लेकिन श्रीदेवी की मौत की वजह हादसा ही बनी। अचानक से इस करिश्माई अभिनेत्री का जाना किसी को रास नहीं आया।
फिल्म समीक्षक अजय ब्रहमात्मज कहते हैं, ‘श्रीदेवी अभिनय को लेकर कभी भी चिंतित नहीं हुई क्योंकि उस पर उनका वर्चस्व था। मेरी आखिरी मुलाकात में वह इस बात को लेकर काफी चिंतित थीं कि अब मुझे तैयार होकर निकलना पड़ता है। एयरपोर्ट लुक का एक चलन शुरू हो गया है। मैं देर रात तक काम करके घर लौटना चाहती हूं तो मुझे अपनी लुक्स पर ध्यान देना होता है। मेरे सहायक मुझसे कहते हैं कि मुझे सजधज कर बाहर निकलना चाहिए। अब दुनिया मुझे बताती है कि मुझे कैसे रहना है।’