पांच सौ एक हजार की नोटबंदी के परिणाम आने शुरू हो गए हैं। इस आशय की खबरें आने लगी हैं कि फलां जगह इतने बोरी 500-1000 के नोट नष्ट किए गए। फलां रेल पटरी के पास 500-1000 के नोटों की इतनी गड्डियां कोई छोड़कर चला गया। ये नोट अब सिस्टम से बाहर हो जाएंगे। निश्चय ही ये नोट काले धन का हिस्सा होंगे। जिनके पास मेहनत की कमाई के पांच सौ के नोट हैं, और बताने के लिए वजह भी है कि ये कहां से आये, वो तो तमाम बैंकों में लाइनों में लगकर पुराने पांच सौ के नोट और हजार के नोट के बदले नये नोट ले रहे हैं। जिनके पास बताने के लिए वजहें नहीं हैं या नोट वापसी कराके फंसने का डर है वे नोटों को इस तरह से नष्ट ही करेंगे। इस तरह से नष्टीकरण से भी ये रकम सिस्टम से बाहर होगी और एक तरह से अर्थव्यवस्था का हित ही होगा।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब बड़े नोटों को बंद कर दिया गया है। ऐसा पहले भी हुआ है जनवरी 1978 में। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे। उन्होंने 500 रुपये, 1000 रुपये और 10,000 रुपये का नोट बंद किया था। मोरारजी देसाई जनता पार्टी के प्रधानमंत्री थे। बड़े नोटों को बंद करने की प्रक्रिया में खासी तकलीफ होती है अर्थव्यवस्था के कई पक्षों को। पर यह तकलीफ अर्थव्यवस्था को उठा लेनी चाहिए, ताकि समय-समय पर अर्थव्यवस्था की कुछ गंदगी साफ होती रहे। बड़े नोटों की बंदी एक तरह का शॉक-ट्रीटमेंट होता है यानी अर्थव्यवस्था को एक झटका लगता है। अभी भी लगा। कई लोगों ने शिकायत की कि उनके पास तो सिर्फ पांच सौ के नोट थे। अब उनसे वो कैसे खाना खाएं या कुछ खरीदें। पर कुल मिलाकर ऐसा शॉक-ट्रीटमेंट अर्थव्यवस्था के लिए समय-समय पर जरूरी ही होता है। ऐसे शॉक-ट्रीटमेंट से काली-अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचती है।

बड़े नोटों की बंदी का आशय
यह जानने के लिए अर्थशास्त्री होने की कतई जरूरत नहीं है कि काली रकम का बड़ा हिस्सा बड़े नोटों, सोने और प्रॉपर्टी की शक्ल में रखा जाता है। किसी भी शहर में प्रॉपर्टी की डील की बुनियादी समझ रखनेवाला भी जानता है कि प्रॉपर्टी की खरीद-बेच कैसे होती है। दिल्ली में ही अगर किसी को करोलबाग या पटेलनगर में कोई मकान खरीदना हो, तो उसकी वास्तविक चुकाई गई कीमत अलग होती है और रजिस्ट्री कराई गई कीमत अलग होती है। रजिस्ट्री कराई गई कीमत कम होती है,क्योंकि कम रजिस्ट्री की कीमत पर कर कम देना होता है। सरकार इस बात को जानती है। इसलिए हर इलाके के सर्किल रेट घोषित होते हैं यानी उस सर्किल रेट से कम की रेट पर रजिस्ट्री नहीं कराई जा सकती। तो सर्किल रेट यानी न्यूनतम रेट पर रजिस्ट्री कराई जाती है और बाकी की रकम कैश में दी जाती है। अब जाहिर है करोड़ों की रकम 100 रुपये के नोट में तो नहीं दी जाएगी। वह 500-1000 के नोटों की रखी जाएगी। इस रकम का कहीं रिकार्ड पर हिसाब नहीं होगा। ऐसी रकम अर्थव्यवस्था में लगातार बढ़ती जाती है और ऐसा कहा जाता है कि कई कारोबारियों के घरों की तिजोरी में ऐसे कई करोड़ पड़े हुए हैं। ये 500-1000 के नोटों में काला धन निष्फल तब हो सकता है, जब इन 500-1000 के नोटों को ही रद्द कर दिया जाए। या इनका हिसाब मांग लिया जाए। 500-1000 के नोट बंद करने के पीछे यही मकसद है। करोड़ों के 500-1000 के नोटों पर सरकार हिसाब भी मांग सकती है। या डर की वजह से काली रकमवाले ऐसी रकम को घोषित ही न करें, तो यह रकम सिस्टम से बाहर हो जाती है। बहुत संभव है कि 500-1000 के नोटों की बड़ी तादाद कुछ समय बाद लावारिस फेंक दी जाए। काली रकम सिस्टम से बाहर जाए, तो सफेद आयवालों को बहुत राहत हो जाती है। काली रकम सफेद रकम वालों को सिस्टम से बाहर ठेल देती है, ऐसा कई बार देखा जा सकता है।

500-1000 के नोटों के बंद होने से घरेलू काली कमाईवालों के साथ आतंकियों के सरगनाओं को पाकिस्तान में समस्या होगी। पाकिस्तान की तरफ से 500-1000 के नकली नोट भेजे जाते हैं। अब ये पुराने नोट कोई नहीं लेगा, तो ना ये असली चलेंगे या नकली चलेंगे। यानी बड़े नोटों की बंदी से आर्थिक आतंकवाद पर भी चोट पड़ेगी। पाकिस्तान से आनेवाले नोटों का कारोबार ध्वस्त होगा, कम से कम कुछ समय के लिए। जब तक पाकिस्तानी आतंकी नये नोटों के नकलीकरण में निपुणता हासिल नहीं कर लेते। आतंकियों को समय-समय पर शाक-ट्रीटमेंट देने के लिए भी इस तरह की नोटबंदी जरूरी है।अर्थव्यवस्था और समाज में काला धन ईमानवाले को हाशिये पर धकेलता जाता है।

काली रकम सफेद रकम को बाहर ऐसे करती है
कोई मकान खरीदना है अगर रिकार्डेड सैलरीवाले को, तो वह अपनी रिकार्डेड सैलरी की हद में ही खरीद सकता है। पर चूंकि काले धन की कोई हद नहीं होती, इसलिए कालेधन वाला बहुत बड़ी रकम कैश में दे सकता है। इसलिए तमाम बाजारों से काला धन वाला सफेद धनवाले को बाहर कर देता है। कैश में बड़ी रकम चूंकि 500-1000 रुपये में ही दी जाती है, तो बड़े नोट बड़े भ्रष्टाचार के वाहक बनते हैं। ठीक इन्हीं वजहों से संभव होता है कि भ्रष्ट नेता कानूनी तौर पर 5000 रुपये में लाखों की रैली दिखा देता है, बाकी की रकम कैश में ऊपर से दी जाती है, उसका कहीं रिकार्ड नहीं होता। जहां रिकार्ड नहीं होता, वहां काला धन धुआंधार चलता है। काले धन के तमाम वाहकों में एक वाहक बड़े नोट होते हैं। इसलिए इस नोटबंदी से उन्हें सबसे ज्यादा चोट पहुंचती है जिनकी संपन्नता का आधार कालेधन वाले बड़े नोट थे। राजनीति में ऐसे नोटों का बड़ा सहारा होता है। इसलिए यह अनायास नहीं है कि ईमानदार बंदा राजनीति से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझता है। बड़े नोटों के बंद होने पर कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी का यह बयान कि राजनीति अब अमीरों के लिए ही रह गई है- पूरी हालत का बयान कर देता है। मोदी की लगभग हर बात का विरोध करनेवाले नीतीश कुमार ने 500-1000 के नोटों की बंदी का स्वागत करके संकेत दिया है कि वह इस कदम से आनेवाले वक्त में कालेधन में कमी देखते हैं।

प्रापर्टी व सोने का धंधा और बड़े नोट
500-1000 के नोट बंद होने की घोषणा के बाद कई ज्वैलरों की दुकानें देर रात खुलीं। गौरतलब है कि आठ नवंबर की रात बारह बजे तक 500-1000 के नोट कानूनी तौर पर प्रयुक्त किए जा सकते थे। इसलिए कई लोगों ने 500-1000 के बड़े नोटों को कालेधन के दूसरे वाहक सोने में तब्दील कर लिया। यह अनायास नहीं है कि बड़े नोटों की बंदी की घोषणा के कुछ ही घंटों में सोने के भाव बहुत ऊंचाई पर चले गए। भारत में तीन सालों के अधिकतम स्तर पर दिल्ली में सोना 35,000 रुपये प्रतिग्राम तक बिका, बड़े नोटों की बंदी की घोषणा के बाद।

बड़े नोटों की बंदी का सबसे ज्यादा नुकसान दो उद्योगों को होना है- प्रॉपर्टी और सोने के कारोबार को। यह नोटबंदी की घोषणा के कुछेक घंटों में ही दिखाई पड़ गया। नौ नवंबर यानी नोटबंदी की घोषणा के अगले दिन मुंबई शेयर बाजार का संवेदनशील सूचकांक सेंसेक्स 338.61 बिंदु गिरकर यानी 1.23 प्रतिशत गिरकर 27, 252 बिंदु पर बंद हुआ। इसी प्रकार नेशनल स्टाक एक्सचेंज का सूचकांक निफ्टी 1.31 प्रतिशत गिरकर 8,432 बिंदुओं पर बंद हुआ। पर शेयरों में सबसे ज्यादा पिटाई हुई प्रॉपर्टी से जुड़ी कंपनियों के शेयरों की। नेशनल स्टाक एक्सचेंज पर प्रॉपर्टी की बड़ी कंपनी डीएलएफ का शेयर 17.27 प्रतिशत गिरकर 118.60 रुपये पर बंद हुआ। सोने के कारोबार की बड़ी कंपनी पीसी ज्वैलर्स का शेयर करीब नौ प्रतिशत गिरकर नेशनल स्टाक एक्सचेंज पर 436.65 रुपये पर बंद हुआ। यानी प्रॉपर्टी और सोने की कंपनियों के शेयरों ने गिरकर बताया है कि बड़े नोटों की बंदी की सबसे ज्यादा चोट कहां हुई है। कालेधन की कमी से सोने और प्रॉपर्टी की मांग में कमी साफ तौर पर आने के आसार हैं। इसलिए इन कारोबारों से जुड़ी कंपनियों के शेयरों से पता लगता है कि इनके कारोबार का दबाव इनके मुनाफे पर भी दिखेगा। इसके अगले दिन यानी 10 नवंबर को प्रॉपर्टी और सोना कारोबार कंपनियों के शेयरों के भाव थोड़े सुधरे पर कुल मिलाकर साफ यही हुआ कि बड़े नोटों की बंदी से सोने और प्रॉपर्टी के कारोबार को सबसे ज्यादा चोट इसीलिए पहुंचनेवाली है कि काला कारोबार इन्हीं धंधों सबसे ज्यादा है।

बार-बार लगातार
पांच सौ और दो हजार रुपये के नये नोट बाजार में आ चुके हैं। पर ऐसी कोई गारंटी नहीं है कि वो नये नोट दोबारा कालेधन के वाहक ना बनेंगे। वो भी बनेंगे कालेधन के वाहक। इसलिए जरूरी यह है कि नोटबंदी जैसे कदम लगातार बार-बार और थोड़ा जल्दी जल्दी उठाये जाएं। कालाधन लगातार पैदा होता रहता है इसलिए उससे निपटनेवाले कदम भी लगातार उठाये जाने चाहिए। और बड़े नोटों की बंदी एक ऐसा शाक-ट्रीटमेंट है, जो लगातार दिया जाना चाहिए।