मायावती के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाकर बसपा से अलग हुए स्वामी प्रसाद मौर्य अब राजनीति की नई पारी खेलने की तैयारी में हैं। बीस साल से ज्यादा बसपा में रहे और यूपी के एक कद्दावर नेता मौर्य अति पिछड़ा वर्ग को गोलबंद करने के प्रयास में हैं। खासकर समाजवादी पार्टी और भाजपा की नजर उनके अगले कदम पर है लेकिन मौर्य अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं हैं। एक जुलाई को मौर्य ने एक सम्मेलन बुलाया था जिसमें नारा दिया गया- याचना नहीं अब रण होगा, संघर्ष बहुत भीषण होगा। प्रस्तुत हैं उनसे वीरेंद्र नाथ भट्ट की बातचीत के प्रमुख अंश।

बहुजन समाज पार्टी से इस्तीफा देते समय आपने मायावती पर गंभीर आरोप लगाए। लेकिन बसपा के लोगों का कहना है कि आपके पार्टी छोड़ने की असली वजह मायावती का पडरौना विधानसभा सीट से आपका टिकट काट देना थी। इसीलिए आप बागी हो गए।

-यह बात सही है की बहनजी ने मेरा टिकट काट दिया था लेकिन विचारधारा पर आधारित पार्टी में टिकट बहुत महत्वपूर्ण नहीं होता है। टिकट तो दो साल पहले काट दिया था। वास्तव में बहनजी प्रदेश की राजनीति में मेरे बढ़ते कद से परेशान थीं और किसी तरह मुझे किनारे लगाना चाहती थीं। इसके पहले कि वो कुछ कर पातीं मैंने पार्टी से अलग होने का फैसला कर लिया। इस वर्ष 16 अप्रैल को मायावती ने अपने आवास पर चुनावी रणनीति पर चर्चा के लिए बैठक बुलाई और मुझे निर्देश दिया कि अब आप बहुजन समाज के महापुरुषों से सम्बंधित किसी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेंगे। यानी दलित, पिछड़े व अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बंधित किसी कार्यक्रम में मैं शामिल नहीं हो सकता। मैंने कहा कि 17 अप्रैल को इलाहाबाद में मौर्य जयंती में मेरा कार्यक्रम लगा है, तो मायावती ने अनुमति दे दी लेकिन भविष्य में किसी कार्यक्रम में शामिल होने से मना किया। मायावती ने यह भी कहा के मेरे तमाम कार्यक्रमों में शामिल होने से पार्टी के अन्य नेता आपति करते हैं। तब मुझे विश्वास हो गया कि मायावती मेरे बढ़ते कद से भयभीत हैं। मायावती तो अपनी परछाई से भी डरती हैं। मुझे विश्वास हो गया कि अब बसपा में रहना संभव नहीं है क्योंकि मायावती विचारधारा को खत्म करने पर आमादा हो गयी हैं। मायावती को तो बहुजन समाज के कार्यक्रमों में मेरे भाग लेने से खुश होना चाहिए था कि दल की विचारधारा के लिए जो काम उनको करना चाहिए था उसे उनका एक कार्यकर्ता कर रहा है। मेरे अलावा पार्टी में कोई नेता नहीं था जो मायावती से बहस कर सकता। बाकी सब नेता तो जी हुजूरी करने वाले कलेक्शन अमीन हैं।

फिर भी टिकट कटना पार्टी से अलग होने का मुख्य कारण था।

जैसा मैंने कहा कि टिकट तो दो साल पहले काट दिया था। टिकट तो आता भी है जाता भी है वो बहुत महत्वपूर्ण नहीं है, उससे मुझे तकलीफ नहीं हुई। बहुजन समाज के महापुरुषों से सम्बंधित कार्यक्रमों में मेरे भाग लेने पर रोक और मेरे पडरौना जाने पर भी रोक लगा दी। मुझसे यह भी कहा कि विधायक निधि का पैसा पडरौना के स्थान पर रायबरेली जिले के ऊंचाहार विधानसभा क्षेत्र में खर्च करो। मैंने मायावती को समझाने का प्रयास किया कि लोकसभा और विधानसभा का सदस्य अपने चुनाव क्षेत्र के बाहर निधि का धन व्यय नहीं कर सकता और केवल विधानपरिषद का सदस्य पूरे प्रदेश में कहीं भी और राज्यसभा का सदस्य पूरे देश में निधि का धन खर्च कर सकता है। पार्टी के अन्य नेताओं ने भी उनको बताया तब वो मानीं।

आपने एक जुलाई को अपने समर्थकों का सम्मेलन किया लेकिन रणनीति का खुलासा नहीं किया। माना जा रहा की आप गैर यादव अति पिछड़ों को गोलबंद करने का प्रयास कर रहे हैं और अपना अलग दल बना कर आप अन्य दलों गठबंधन कर चुनाव में उतरेंगे।

सम्मेलन में यादव, ब्राह्मण, मुस्लिम, दलित समेत सभी वर्गों के लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया था। जाटव जो बहुजन समाज पार्टी का कोर वोट बैंक माने जाते हैं उस वर्ग से भी बड़ी संख्या में लोग सम्मेलन में आये थे। ये लोग इसलिए आये थे क्योंकि मैंने मंत्री रहते हुए इस सब लोगों की हर संभव मदद की थी। मायावती की तरह हर व्यक्ति से हर काम का पैसा नहीं लेता था। अपने साथियों के साथ विचार विमर्श चल रहा है। जो भी निर्णय होगा वह अपने समाज की भावना के अनुरूप ही होगा। चौधरी चरण सिंह के बाद मुलायम सिंह यादव अन्य पिछड़े वर्ग से सर्वमान्य नेता के रूप में उभरे थे और उन्होंने काम भी किया था। लेकिन धीरे-धीरे लोहिया और समाजवाद तो केवल मुखौटाभर रह गए और वे एक जाति के नेता के तौर पर सिमट गए। अब तो वे केवल सैंफई परिवार के नेता हैं और पूरी पार्टी पर एक परिवार का ही नियंत्रण है। यहां किसी अन्य जाति के लिए तो दूर की बात, परिवार के बाहर के यादव तक के लिए कोई जगह नहीं है।

मेरे कारण अति पिछड़े वर्ग को उम्मीद बंधी है कि उन्हें सही राह मिलेगी और हम सब गोलबंद होकर अगली सरकार में अपनी समुचित भागीदारी सुनिश्चित करने में सफल होंगे। समाज की भावना का ख्याल में रखते हुए ही हम सभी साथी अगली रणनीति पर काम कर रहे हैं।
अति पिछड़ा वर्ग को शिकायत रही है कि आरक्षण का लाभ केवल एक जाति में सिमट गया है और सारी मलाई यादवों के हिस्स्से में गई है। पिछड़ी जातियों में शामिल अन्य जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिला। क्या देश के अन्य राज्यों की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी सत्ताइस फीसदी आरक्षण का विभाजन/वर्गीकरण नहीं होना चाहिए ताकि आरक्षण कोटा का लाभ सभी जातियों को मिल सके।

आरक्षण की नीति को ईमानदारी से लागू करने की जरूरत है। इसमें दाएं बाएं चलने की जरूरत नहीं है। 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने सामाजिक न्याय समिति बना कर वर्गीकरण करने का प्रयास किया था। लेकिन वो केवल पिछड़े वर्ग को बात कर सत्ता हथियाने की चाल थी। आरक्षण लागू होने के बाईस साल बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार के किसी भी विभाग में आरक्षण कोटा पूरा नहीं है। जब पूरा हो तब वर्गीकरण पर विचार किया जा सकता है। मुलायम सिंह यादव की ढुलमुल नीति का नतीजा है कि आरक्षण कोटा नहीं भरा गया है। यदि मुलायम सिंह यादव अपनी जिम्मेदारी निभाते तो वे आज पिछड़ों के सर्वमान्य नेता होते। पिछड़ों को गोलबंद करने में मुलायम सिंह से बड़ी चूक हुई है। हम प्रयास करेंगे कि पिछड़े वर्ग में शामिल सभी जातियों को उनका हिस्सा मिले।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में मंत्रिमंडल विस्तार कर पिछड़े व दलित नेताओं को स्थान देकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले दोनों वर्गों को सकारात्मक सन्देश देने का प्रयास किया है। क्या बीजेपी को इसका लाभ मिलेगा?

-मंत्रिमंडल विस्तार तो केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों जगह हुआ। यह तो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। हर पार्टी चुनाव पूर्व अपना गणित बिठाती है। मुख्य विषय है कि जनता की समस्या का निदान कैसे हो। बीजेपी ने केंद्र में मंत्रिमंडल विस्तार कर सामाजिक सरंचना के आधार पर जाति को अपने पाले में करने का प्रयास किया है। बीजेपी की यह रणनीति कितनी सफल होगी यह तो 2017 में विधानसभा चुनाव का परिणाम ही बताएगा।

तो 2017 में किस दल की सरकार बनने जा रही है?

-राजनीतिक हालत बनते बिगड़ते रहते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में देश में मोदी की लहर थी लेकिन दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी का करिश्मा नहीं चला और यहां बहुजन समाज पार्टी की बल्ले-बल्ले थी। हारे मोदी और जीते नीतीश, लेकिन खुश थीं मायावती। 2017 में बसपा नंबर तीन पर जा सकती है। अभी हाल तक मुख्य लड़ाई बसपा और बीजेपी में थी लेकिन अब तो सपा और बीजेपी में है। यदि कोई नया समीकारण बन जाए और चमत्कार हो जाए तो बसपा नंबर चार पर भी जा सकती है।

क्या आपकी कांग्रेस से भी कोई बात चल रही है?

-नहीं, अभी तक तो किसी से बात नहीं हुई है। वहां तो मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त वाली हालत है। प्रशांत किशोर ही सक्रिय हैं।

आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की क्या संभावना लगती है?

-कांग्रेस की स्थिति तो अच्छी नहीं है। हां अगर प्रियंका गांधी को चुनाव अभियान की कमान सौंप दी जाए तो पार्टी में नई जान आ सकती है। प्रियंका के आने से राजनीतिक समीकरण बदल जाएंगे।

आपके सहयोगी रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने आपके पार्टी से अलग होने पर खुशी जताते हुए कहा कि कूड़ा साफ हो गया। यह भी कहा की बसपा में आने के पहले आपके पास गाड़ी तक नहीं थी, आज आप लक्जरी वाहन में चलते हैं।

-नसीमुद्दीन सिद्दीकी बांदा शहर के बस स्टैंड पर जूता बनाने का काम करते थे। उन्हें दद्दू प्रसाद बसपा में लेकर आये थे। दद्दू प्रसाद के कहने पर ही उन्हें बांदा सदर सीट से टिकट दिया गया था लेकिन वे हार गए थे। 1996 में बहनजी ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। तब हमने इनकी पैरवी की थी और मायावती ने अपना फैसला बदल कर पार्टी में वापस बुला लिया था। अगर नसीमुद्दीन के सिर पर मेरा हाथ न होता तो उनका राजनीति में अता पता नहीं होता। लेकिन आज वो अपने को बहुत बड़ा नेता मानने लगे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में नसीमुद्दीन को अपनी औकात पता चल जाएगी।

आखिरकार उत्तर प्रदेश के अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में आप क्या करने जा रहे हैं?

-हम रणनीति बना रहे हैं। इतना जरूर कह सकता हूं कि सभी दलों से वार्ता (गठबंधन) या नई पार्टी बनाना, दोनों विकल्प खुले हैं। समय आने पर हम अपना निर्णय सार्वजनिक कर देंगे।