देश में मौसम के मिजाज लगातार बदल रहे हैं। कहीं सूखा है तो कहीं बाढ़ का खतरा है। इससे न सिर्फ किसान परेशान हैं, बल्कि आमजन भी। उच्च वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधानों के लिए छात्र विदेश का रुख कर रहे हैं। सरकार इस दिशा में क्या सोच रही है। इन्हीं बिंदुओं पर आशुतोष पाठक  से केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन  की हुई बातचीत के अंश।

पहला सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रिय स्कीमों के बारे में है जिनका आपने अपने मंत्रालय की पुस्तिका में जिक्र किया है। स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत जैसी स्कीमों में आपका मंत्रालय क्या सहयोग कर रहा है?
असल में आज तक हमारे मंत्रालय को सिर्फ उच्च अनुसंधान का मंत्रालय माना जाता रहा है और उसमें हम बेहद कामयाब भी रहे हैं। ये सच है कि उच्च शोध में हम किसी से पीछे नहीं हैं। लेकिन हमने विज्ञान और तकनीक को आम जनों के हित के लिए बनाने का संकल्प कर लिया है। इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं। स्वच्छ भारत अभियान में वेस्ट मैनेजमेंट कैसे हो, इसके लिए छोटी से छोटी मशीन कैसे बनाई जा सकती है। इलेक्ट्रॉनिक कचरे से लेकर सामान्य कचरे तक का बेहतर निपटारा और इस्तेमाल कैसे करें इस पर हम लोगों ने काफी काम किया है। इलेक्ट्रॉनिक कचरे से गोल्ड और निकेल तक हम निकाल रहे हैं। डिजिटल इंडिया के लिए सबसे बड़ा डेटा एनालिसिस बैंक हम तैयार कर रहे हैं। स्किल इंडिया में हमारा सबसे अधिक अनुसंधान का काम चल रहा है। अकेले चमड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए हमारी अलग अलग लैबोरेटरीज में बहुत असाधारण काम हो रहा है। मेक इन इंडिया के लिए आपको जानकर खुशी होगी कि छोटे किसानों के लिए हमने सिर्फ दो लाख रुपये के डीजल ट्रैक्टर तैयार कर लिए हैं, जिसका बड़ी संख्या में उत्पादन शुरू होने वाला है। जल्दी ही यह बाजार में उपलब्ध होगा।

देश में इतना सूखा पड़ा है आपका मंत्रालय क्या कर रहा है?
हमारे वैज्ञानिकों ने देश के सूखा प्रभावित इलाकों की मैपिंग की है। पानी पहुंचाने और संरक्षण के लिए तकनीक का सहारा ले रहे हैं। लेकिन ये तो एक छोटा पहलू है। असल में हम ये जानने की कोशिश कर रहे हैं कि जिन इलाकों में पानी की समस्या होती है, वहां किस प्रकार की खेती की जाए ताकि हमारे किसानों को आर्थिक तंगी का सामना न करना पड़े। हमने अश्वगंधा और लेमन ग्रास की खेती करने के विकल्प पर काम करना शुरू कर दिया है। आंध्र प्रदेश में हमने 10 हजार एकड़ में अश्वगंधा की इस साल खेती की है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र में लेमन ग्रास, अश्वगंधा के साथ-साथ अन्य एरोमा की खेती के प्रयोग पर ध्यान दे रहे हैं। इनका तेल हजारों रुपये लीटर तक बिकता है। अगर इस तरह के नगदी फसल की खेती हम कम पानी वाले इलाकों में कर सके तो हमारे किसानों को कभी आर्थिक तंगी नहीं होगी। इस दिशा में हम लगातार गंभीरता से कोशिश कर रहे हैं। आने वाले दिनों में आपको इसका परिणाम मिलेगा।

मौसम विभाग आपके मंत्रालय के अधीन आता है। लोग मजाक में कहते हैं कि ये मौसम विभाग की भविष्यवाणी है मतलब गलत ही होगी। विभाग प्राकृतिक आपदाओं के बारे में लोगों को आगाह नहीं कर पाता?
मैं इसके बारे में आपको बताता हूं। पहले की बात तो मैं नहीं बता सकता लेकिन आज की तारीख में देश के एक करोड़ पंद्रह लाख किसान सीधे टेक्स्ट मैसेज के जरिये हमारे मौसम विभाग से जुड़ा है। मतलब प्रतिदिन मौसम की जानकारी उन्हें मिलती रहती है। ये वो किसान हैं जिनके पास मोबाइल है। बाकी किसानों को भी हम अलग अलग माध्यमों से जानकारी दे रहे हैं। आप ये जानकार खुश होंगे कि मौसम की समय से जानकारी के चलते हम देश की जीडीपी में तकरीबन 45 हजार करोड़ रुपये का योगदान दे रहे हैं। चाहे वो यातायात हो या अन्य चीजें सबमें हमारी भविष्यवाणी बेहद काम आ रही है। इसके साथ ही तकनीक में हम लगातार अपग्रेडशन भी कर रहे हैं।
अब आपको भूकम्प के बारे में बताते हैं। भूकम्प का एकदम अनुमान लगाना तो मुश्किल है लेकिन इसकी भविष्यवाणी के लिए जो शोध हो रहा है वो दुनिया में सबसे अग्रणी है। महाराष्ट्र में एक जगह हमने धरती के तकरीबन 5 किलोमीटर अंदर सेंसर लगाए हैं जो बेहद गहराई में हो रही हलचल को भी समझने की कोशिश में लगा है। इसी प्रकार से नार्थ ईस्ट में भी हम कुछ प्रयोग कर रहे हैं। हम जल्द ही कम से कम ये अनुमान लगाने की हालत में हो जाएंगे कि हजारों किलोमीटर दूर भूकम्प आने के बाद क्या और कहां दोबारा इसका खतरा हो सकता है। अभी हम महज सात-आठ मिनट में ही ये बता देते हैं की भूकम्प की तीव्रता क्या है और इसका केंद्र कहां है। रही बात बाढ़ और बारिश के पानी की संरक्षण की तो एक बात समझना पड़ेगा की हर जगह बारिश के पानी का संरक्षण नहीं हो सकता। इसके लिए हमारे वैज्ञानिक ये पता लगाने में जुटे हैं कि जहां ग्राउंड वाटर लेवल ऊपर है या नीचे है और वहां बारिश भी अधिक है तो कैसे बारिश के पानी को संरक्षित किया जाए ताकि पानी का स्तर नीचे न हो और पानी कम गहराई पर उपलब्ध हो जाए।

आज भी बहुत सारे छात्रों की पहली पसंद शोध के मामले में अमेरिका ही बना हुआ है, क्या ये आपके मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं है कि देश में एक उपयुक्त माहौल बने ताकि शोधार्थी बाहर न जाएं और देश का टैलेंट देश के लिए उपयोगी बने?
मुझे ये बताने में बहुत खुशी हो रही है कि पिछले दो वर्षों में रिवर्स माइग्रेशन का दौर शुरू हो चुका है। इन दो वर्षों में लगभग सौ साइंटिस्ट अपने देश वापस लौट चुके हैं। ये कोई छोटी संख्या नहीं। मैं इसका पूरा श्रेय अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देना चाहूंगा, जिनके विजन की बदौलत ये करिश्मा हुआ है। हमने उच्च शोध के लिए फेलोशिप में 50 फीसदी का सीधा इजाफा किया है। स्कूलों, कॉलेजों में एस्पायर नाम से स्कीम है जहां हम बच्चों को विज्ञान में अपने स्किल निखारने के लिए प्रोत्साहन दे रहे हैं। स्कूलों और कॉलेजों का इसमें एक विशेष प्रक्रिया के जरिये चयन करते हैं। देश का टैलेंट देश में ही रहे इसके लिए हम दिन रात अपने सभी साइंस सेंटर और लैबोरेट्रीज का दौरा कर रहे हैं। अभी लगभग नब्बे फीसदी सेंटर का दौरा कर चुके हैं। वहां हमने कई रातें बिताई हैं। मुझे जो जूनून अपनी डॉक्टरी के जमाने में था जिसमें मैंने 40 साल लगाए, आज मेरे अंदर महज एक साल में वो जूनून पैदा हो गया है। किसी भी हालत में देश की प्रतिभा को बिखरने नहीं देंगे। आप भरोसा रखिये हम बेहद ईमानदारी से काम कर रहे हैं।

आपने मेडिकल की बात की। आम लोगों को जीने की दवा सस्ती मिले, इसके लिए आपका मंत्रालय क्या कर रहा है? सरकार सस्ती दवा का उत्पादन क्यों नहीं कर सकती?
डायबटीज के लिए हमारी लखनऊ लैब ने ऐसी दवा का ईजाद किया जिसकी कीमत महज पांच रुपये है और उसे बनाने वाली कंपनी ने तीन महीने में 30 करोड़ रुपये का टर्नओवर कर लिया। उसी प्रकार से हृदय रोग के लिए भी बेहतरीन दवा हम लोगों ने बना ली है। डायरिया के लिए पहली देसी दवा रोटोवक 9 मार्च 2015 को ही प्रधानमंत्री ने लांच की है। अभी हाल ही में मैंने संसद में दूध में मिलावट पर बयान दिया था। हमने ऐसी इलेक्ट्रॉनिक मशीन बनाई है जिससे आप दूध की शुद्धता का पता लगा सकते हैं। हमने ये बना तो दिया लेकिन सरकार की दूसरी एजेंसी को भी अब इस दिशा में काम करना होगा तभी आप मिलावट को रोक पाएंगे।

क्या आप दिल्ली की राजनीति में वापस लौटेंगे?
देखिये ये पार्टी पर निर्भर है। पार्टी जहां कहेगी, सेवा देने के लिए हम वहां हाजिर हो जाएंगे।