दिल्ली में पुरातत्व महत्व की जिन इमारतों के संरक्षण और देखभाल की जिम्मेदारी सरकार ने आगा खां ट्रस्ट को सौंपी थी, वह इन ऐतिहासिक धरोहरों की साज-सज्जा के नाम पर उनकी वास्तविक पहचान को नष्ट करने में जुटा है। आखिर क्या मजबूरी है कि पुरातत्वविदों की आपत्ति के बावजूद सरकार कान में तेल डाले विरासतों से हो रहे खिलवाड़ को खुली आंख से देख रही है।

सुनील वर्मा  

इस विवाद की नींव 2007 में उसी समय पड़ गई थी जब केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने आगा खां सांस्कृतिक ट्रस्ट की एक करार के जरिये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) में घुसपैठ करा दी थी। तब विश्वविख्यात आगा खां फाउंडेशन के सांस्कृतिक ट्रस्ट ने केंद्र सरकार के संस्कृतिमंत्रालय को एक प्रस्ताव दिया था जिसके मुताबिक संस्था ने दिल्ली में मुगलकाल में बनी और अब पुरातत्व महत्व की उन सभी ऐतिहासिक इमारतों और धरोहरों का संरक्षण व रखरखाव करने की इच्छा जताई थी। प्रस्ताव पर विचार के लिए मंत्रालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, केंद्रीय लोक निर्माण (सीपीडब्ल्यूडी) और दिल्ली महानगरपालिका (एमसीडी) जैसे महकमों से बातचीत का सिलसिला शुरू किया। सभी विभागों से बातचीत के बाद दिल्ली में हुमायूं का मकबरा व उसके आसपास की बस्ती और इसी ऐतिहासिक इमारत से जुड़ी 23 अन्य इमारतों के संरक्षण व रखरखाव का काम आगा खां सांस्कृतिक ट्रस्ट को सौंपने का फैसला किया गया।

11 जुलाई, 2007 को संस्कृति मंत्रालय के निर्देश पर इन सभी विभागों ने मिलकर आगा खां सांस्कृतिक ट्रस्ट के साथ बाकायदा करार भी कर लिया। करार के बाद ट्रस्ट ने हुमायूं के मकबरे के साथ उसके प्रांगण में बनी आसपास की उन सभी इमारतों के संरक्षण, रखरखाव और सौन्दर्यीकरण का काम शुरू कर दिया जिन धरोहरों को संरक्षण के लिए ट्रस्ट को सौंपा गया। इनमें हुमायूं के मकबरा परिसर में पश्चिम व दक्षिणी द्वार, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी पवेलियन, चिल्लीगाह, उत्तरी दीवार, नीला गुबंद, परिसर से ही सटे निजामुद्दीन बस्ती और सुंदर नर्सरी को भी संरक्षित करने और इसके सौन्दर्यीकरण का काम ट्रस्ट को दिया गया। यह बताना जरूरी होगा कि निजामुद्दीन बस्ती में मुगलकाल से पहले निर्मित हुए कई संरक्षित धरोहर भी हैं। इनमें 14वीं शताब्दी के मशहूर सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के अलावा निजामुद्दीन बावली, हुमायूं मकबरे की सुंदर नर्सरी, सुंदरवाला महल, सुंदरवाला बुर्ज और लक्कड़वाला बुर्ज, चौसठ खंबा, अतगाह खान का मकबरा, तिलांगनि मकबरा, लाल महल व उसके पास की बावली और काली मस्जिद व इसके आसपास का इलाका शामिल है।

dr-jamal‘आगा खां ट्रस्ट का अभी तक का काम पुरातत्व विभाग के कानून और नियमों की नजर से बड़ा गुनाह है जिसके लिए उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए ’

एएसआई के पुरातत्व विभाग के निदेशक हाजी डॉ. सैय्यद जमाल हसन

 आगा खां ट्रस्ट क्यों?

यहां सवाल उठता है कि एएसआई जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के महकमे को आगा खां ट्रस्ट की सहायता लेकर इन ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने की जरूरत क्यों आन पड़ी। दरअसल, इसके दो कारण थे। एक यह कि आगा खां डेवलपमेंट नेटवर्क कई मुस्लिम देशों में ऐसी ही पुरातात्विक इमारतों को संरक्षित करने का काम बखूबी कर चुका है। दूसरा ट्रस्ट ने यह भी प्रस्ताव दिया था कि वह दिल्ली की इन धरोहरों के रखरखाव का खर्च खुद वहन करेगा। उसकी एक शर्त थी कि वह संरक्षित परिसर में अपनी संस्था के परोपकारी कार्यों का प्रचार करने के लिए समय-समय पर प्रर्दशनी लगाएगा। संस्कृति मंत्रालय इन इमारतों के रखरखाव पर आने वाले खर्च के अलावा कई तरह की परेशानियों से बचना चाहता था। इसलिए यह जिम्मा आगा खां ट्रस्ट को दे दिया गया। यही वो समय था जब राष्ट्रमंडल खेलों से पूर्व 2010 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी भारत दौरे पर आ रहे थे और उनका हुमायूं के मकबरे को भी देखने का कार्यक्रम था। इसीलिए करार के बाद आगा खां ट्रस्ट ने इन सभी इमारतों के संरक्षण से लेकर सौन्दर्यीकरण और इन्हें विकसित करने का काम तेजी से पूरा कर दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी ने 450 साल पुराने हुमायूं के मकबरे को देखकर इसकी तारीफों के पुल भी बांधे और इसके निर्माण पर आश्चर्य भी जताया।

धरोहर से खिलवाड़ 

जिर्णोद्धार से पहले हुमायूं का मकबरा स्थित एक इमारत
जिर्णोद्धार से पहले हुमायूं का मकबरा स्थित एक इमारत
जिर्णोद्धार के बाद उसी इमारत की तस्वीर
जिर्णोद्धार के बाद उसी इमारत की तस्वीर

जो लोग ऐतिहासिक और पुरातत्व के महत्व की इमारतों और स्मारकों के महत्व को समझते हैं उन्होंने हुमायूं के मकबरे में हुए सरंक्षण व रखरखाव के काम पर आपत्ति जाहिर करनी शुरू कर दी। भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण के पुरातत्व विभाग के निदेशक हाजी डॉ. सैय्यद जमाल हसन कहते है, ‘संरक्षण और रखरखाव का मतलब होता है ऐतिहासिक धरोहर को उसके मूल रूप में रखते हुए इस तरह संरक्षित किया जाए ताकि भविष्य में उसे नष्ट होने से रोका जा सके। जितना हिस्सा नष्ट हो चुका है उसकी मरम्मत का काम ऐसा हो कि किसी भी सूरत में उसकी मौलिकता को खत्म न हो।’ पुरातत्वविद होने के साथ एएसआई से जुड़ाव के चलते जमाल हसन का दर्द यह है कि पिछले सात सालों में आगा खां ट्रस्ट ने हुमायूं का मकबरा के साथ पुरातत्व महत्व की जितनी भी इमारतों के संरक्षण का काम किया, उसमें उसने न सिर्फ इन इमारतों की असली पहचान खत्म कर दी बल्कि काम का स्तर  इतना घटिया है कि कुछ सालों में ही मरम्मत हुई धरोहर फिर से खराब होने लगी।

ट्रस्ट हुमायूं मकबरे में समय-समय पर प्रदर्शनी लगाकर अपने कामों का विज्ञापनों के जरिये प्रचार करता है। इसका असर यह होता है कि अलग-अलग राज्यों में ऐतिहासिक महत्व की ऐसी तमाम धरोहर जो जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं उनके रखरखाव के लिए राज्य सरकार उसे अनुंबध देती रहती हैं

जमाल हसन कहते हैं कि ट्रस्ट के स्तरहीन कामकाज को लेकर उन्होंने पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक और संस्कृति मंत्रालय को पांच बार पत्र लिखा। सभी पत्रों में तथ्यों के साथ इस बात का जिक्र किया कि ट्रस्ट द्वारा किया हुआ काम संरक्षण और रखरखाव की श्रेणी में नहीं आता। जमाल अपने ही महकमे में अपनी आवाज दबाएं जाने से बेहद खिन्न हैं और कहते हैं, ‘आगा खां ट्रस्ट का अभी तक का काम पुरातत्व विभाग के कानून और नियमों की नजर से बड़ा गुनाह है जिसके लिए उसके खिलाफ न सिर्फ कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए बल्कि उसके साथ हुए करार को तत्काल रद्द किया जाना चाहिए।’

जमाल हैरत जताते हुए कहते हैं कि आज तक सरकार ने उनके किसी पत्र का जवाब नहीं दिया कि आखिर उन्होंने जो आपत्ति खड़ी की उन पर क्या कार्रवाई की गई। धरोहरों से खिलवाड़ के लिए ट्रस्ट के खिलाफ कार्रवाई तो दूर की बात है।’

आगा खां सांस्कृतिक ट्रस्ट

आगा खां ट्रस्ट पर आरोप-प्रत्यारोप और उसकी खामियां गिनाने से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर यह संस्था है क्या? आगा खां सांस्कृतिक ट्रस्ट आगा खां डेवलपमेंट नेटवर्क के अधीन एक संस्था है। इसकी स्थापना आगा खां चतुर्थ ने की थी। यह संस्था भारत ही नही विश्व भर में मुस्लिम समाज की इमारतों व समुदायों के भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक सुधार के लिए काम करती है। इस संस्था की स्थापना 1988  में हुई थी जिसका पंजीकरण जेनेवा में हुआ था। यह एक निजी गैर सांप्रदायिक परोपकारी संस्था है।

जीर्णोद्घार एएसआई की मंजूरी से

रितेश नंदा
रितेश नंदा

आगा खां सांस्कृतिक ट्रस्ट की संस्था डेवलपमेंट नेटवर्क पर एएसआई के डाइयेक्टर डॉ. सैय्यद जमाल हसन भले ही आरोप लगाएं कि इस प्राइवेट एजेंसी ने पुरातत्व महत्च की धरोहरों से रखरखाव के नाम पर खिलवाड़ किया है लेकिन इस कंपनी के प्रोजेक्ट हेड रितेश नंदा का कथन कुछ दूसरा ही  है। नंदा कहते हैं, ‘हमने जिन धरोहरों का रखरखाव किया है उसके लिए यूनेस्कों से हमें प्रशस्ति पत्र मिला है। डॉ जमाल के सब आरोप निराधार हैं। उनकी इस करतूत के लिए एएसआई के महानिदेशक ने उन्हें आरोप पत्र तक दिया है लेकिन वे हमें लगातार बदनाम कर रहे हैं।’ नंदा, डॉ. जमाल के आरोपों को मीडिया में प्रकाशित करने योग्य ही नही मानते। वे कहते हैं, ‘जबसे हमने हुमायूं मकबरे के रखरखाव को अपने हाथ में लिया तबसे यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या दो लाख से बढ़कर 25 लाख हो गई। हम देश में जहां कहीं किसी भी पुरातत्व धरोहर में जीर्णोद्धार का काम करते हैं, जैसे भी करते हैं, उन सभी के लिए पहले एएसआई की तरफ से लिखित मंजूरी ली जाती है। उससे पहले एएसआई की टीम मुआयना करती है। तकनीकी तौर पर सब चीजें समझती है तभी मंजूरी देती है। उसके बाद ही काम शुरू किया जाता है। इस लिहाज से अगर हम कुछ भी गलत कर रहें हैं तो उसके लिए खुद एएसआई जिम्मेदार है।’

क्या है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

आगा खां ट्रस्ट के साथ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के बारे में भी जानना जरूरी है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन यह एक ऐसा सरकारी महकमा है जो पुरातत्व अध्ययन और सांस्कृतिक स्मारकों के संरक्षण के लिए उत्तरदायी है। एएसआई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के स्थलों और स्मारकों की खोज, खुदाई, संरक्षण, सुरक्षा का काम करती है। एएसआई ब्रिटिश पुरातत्वशास्त्री विलियम जोन्स द्वारा 15  जनवरी, 1784 को स्थापित एशियाटिक सोसायटी का उत्तराधिकारी है। वर्ष 1788 में इसका पत्र द एशियाटिक रिसर्चेज प्रकाशित होना आरंभ हुआ था। 1914  में इसका प्रथम संग्रहालय बंगाल में बना। एएसआई अपने वर्तमान रूप में 1861 में ब्रिटिश शासन के अधीन सर अलेक्जैंडर कन्निघम द्वारा तत्कालीन वायसराय चार्ल्स जॉन कैनिंग की सहायता से स्थापित हुआ था। उस समय इसके क्षेत्र में अफगानिस्तान भी आता था। 1944 में जब मॉर्टिमर व्हीलर इसके महानिदेशक बने तब इस विभाग का मुख्यालय रेलवे बोर्ड भवन, शिमला में स्थित था। आजादी के बाद यह 1959 में  प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष धारा के अन्तर्गत आया। इस विभाग के पास 3636  स्मारक स्थल हैं, जो पुरावस्तु एवं कला खजाना धारा 1972  के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्व के घोषित हैं।

इसी एएसआई में पुरातत्व विंग के निदेशक डॉ. सैय्यद जमाल हसन जो काफी अरसे से आगा खां ट्रस्ट के धरोहरों से किए जा रहे खिलवाड़ पर आवाज उठा रहे हैं, कहते हैं, ‘हमारी आपत्ति यह नहीं है कि सरकार ने आगा खां ट्रस्ट को रखरखाव का काम क्यों सौंपा। यह सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का अपना नीतिगत फैसला हैं। आपत्ति इस बात पर है कि धरोहरों के संरक्षण और रखरखाव के नाम पर उस विरासत को जिस तरह नष्ट करने का काम हो रहा है उसे नंजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिए।’ अगर ट्रस्ट धरोहरों से खिलवाड़ कर रहा है जो नियमानुसार गलत है तो विरोध के बावजूद उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही के सवाल पर जमाल हसन कहते हैं कि दरअसल इस ट्रस्ट से जुड़े लोग इतने प्रभावशाली हैं कि उनकी पहुंच सत्ता में बैठे बड़े लोगों तक है। इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत किसी में नहीं होती।

वाजिब सवाल यह भी है कि आगा खां ट्रस्ट बिना सरकार से पैसा लिए इस काम को अंजाम दे रहा है तो इसमें उसका दूसरा क्या हित है? इस सवाल के जवाब में जमाल हसन का जवाब वाकई न सिर्फ चौंकाने वाला है बल्कि दिल्ली में धरोहरों के मुफ्त में कथित रखरखाव के पीछे का असल मकसद भी उजागर करता है। बकौल जमाल, ‘दरअसल, ट्रस्ट हुमायूं मकबरे में समय-समय पर प्रर्दशनी लगाकर अपने कामों का विज्ञापनों के जरिये प्रचार करता है। इसका असर यह होता है कि  अलग-अलग राज्यों में ऐतिहासिक महत्व की ऐसी तमाम धरोहर जो जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं, उनके रखरखाव के लिए राज्य सरकार उसे अनुंबध देती रहती हैं।’ जमाल का आरोप है कि ‘एएसआई द्वारा हुमायूं मकबरे का रखरखाव की उपलब्धि गिनाकर इस ट्रस्ट ने कई राज्यों में करोड़ों के काम हासिल किए हैं। हैदराबाद में पुरातत्व संपत्ति घोषित की गई कुतुबशाही मकबरे को करोड़ों रुपये लेकर संरक्षित करने का काम ट्रस्ट ने ऐसे ही हासिल किया।’

हैदराबाद में 170 साल तक राज करने वाले कुतुबशाही वंश ने अपने शासनकाल में इस सूबे में कई मकबरों और शाही इमारतों का निर्माणा कराया था। इन्हें  पुरातत्व विभाग ने ऐतिहासिक धरोहर घोषित कर रखा है। अकेले कुली  कुतुबशाही मकबरे में ही करीब 70 ढांचे हैं। इनके रखरखाव का काम आगा खां ट्रस्ट 2013 से कर रहा है। अगस्त 2015 में जब अमेरिका के डिप्टी एंबेसडर माइकल पेलेटियर इस मकबरे को देखने पहुंचे थे तो उन्होंने भी आगा खां ट्रस्ट को एक लाख एक हजार 612 अमेरिकी डॉलर का अनुदान दिया था। आगा खां ट्रस्ट फॉर कल्चर ने तेलंगाना के डिपार्टमेंट ऑफ आर्कियोलॉजी एंड म्यूजियम के साथ किए करार में भी मोटी रकम कमाई। जमाल हसन कहते हैं, ‘इस मकबरे के रखरखाव के नाम पर भी ट्रस्ट ने पूरी तरह पुरानी पहचान को नष्ट कर दिया।’

वर्ष 2000 से 2012 तक उत्तर-पूर्व के राज्यों के अलावा उत्तराखंड और राजस्थान में अहम पदों पर एएसआई की राज्य इकाईयों में तैनात रहे पुरातत्व विज्ञानी सैय्यद जमाल हसन ही नहीं देश के कई दूसरे बड़े पुरातत्वविद् भी हुमायूं मकबरे में आगा खां ट्रस्ट के रखरखाव पर ऊंगली उठाते हैं। 2014 में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के केंद्रीय सलाहकार बोर्ड यानी काबा की 36वीं बैठक में प्रो. श्रीरिन मौसवी ने भी सवाल उठाया था कि ट्रस्ट इस धरोहर के मूल रूप को खत्म कर रहा है। सरंक्षण का काम नातजुर्बेकार निर्माण कंपनियों से कराया जा रहा है।

9 अक्टूबर, 2015 को काबा की एक अन्य बैठक में संस्कृति मंत्रालय के सचिव एनके सिन्हा के समक्ष मौसवी के अलावा जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सैय्यद अर्जीजुर हसन, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रो. सैय्यद नदीम रिजवी, राजस्थान के प्रो. जेएस खरकवाल ने भी हुमायूं मकबरे में रखरखाव के नाम पर हो रहे विरासत से खिलवाड़ पर आपत्ति दर्ज कराते हुए इसे तत्काल रोकने और कार्रवाई की मांग की। इस बैठक में उन साक्ष्यों को भी पेश किया गया जिससे स्पष्ट होता है कि आगा खां ट्रस्ट को सौंपे जाने से पूर्व इन धरोहरों का स्वरूप क्या था और ट्रस्ट के रखरखाव के बाद कैसे इसका मूल रूप बदल गया। इस सबके बावजूद जमाल हसन की आशंका है कि तमाम कवायदों के बाद भी एएसआई या सरकार इस खिलवाड़ को रोक पाएगी इसमें शंका है।

विश्व धरोहर मकबरे का इतिहास 

humayun-tombहुमायूं का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है। यह नई दिल्ली के दीनापनाह अर्थात पुराने किले के निकट निजामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा रोड के निकट स्थित है। गुलाम वंश के शासन के समय में यह भूमि किलोकरी किले में हुआ करती थी। नसीरुद्दीन (1268-1287) के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की यह राजधानी हुआ करती थी। यहां की मुख्य इमारत में मुगल सम्राट हुमायूं का मकबरा है। इसमें हुमायूं की कब्र सहित कई अन्य राजसी लोगों की भी कब्रें हैं। यह विश्व धरोहर घोषित एवं भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है। इस मकबरे में वही चारबाग शैली है, जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया। यह मकबरा हुमायूं की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार 1562 में बना था। इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घियाथुद्दीन एवं उसके पिता मिराक घुइयाथुद्दीन थे जिन्हें अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था। मुख्य इमारत लगभग आठ वर्षों में बनकर तैयार हुआ और भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली का प्रथम उदाहरण बना। यहां सर्वप्रथम लाल बलुआ पत्थर का बड़े स्तर पर प्रयोग हुआ था। 1993 में इस इमारत समूह को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।

इस परिसर में हुमायूं की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो और बाद के सम्राट शाहजहां के बड़े पुत्र दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें भी हैं। इस इमारत में मुगल स्थापत्य में एक बड़ा बदलाव दिखा, जिसका प्रमुख अंग चारबाग शैली के उद्यान थे। ऐसे उद्यान भारत में इससे पूर्व कभी नहीं दिखे थे। इसके बाद यह शैली कई अन्य इमारतों के अभिन्न अंग बनते गए। यह मकबरा मुगलों द्वारा इससे पूर्व निर्मित हुमायूं के पिता बाबर के काबुल स्थित मकबरे बाग ए बाबर से एकदम भिन्न था। बाबर के साथ ही सम्राटों को बाग में बने मकबरों में दफनाने की परंपरा शुरू हुई थी। अपने पूर्वज तैमूर लंग के समरकंद (उज्बेकिस्तान) में बने मकबरे पर आधारित यह इमारत भारत में आगे आने वाली मुगल स्थापत्य के मकबरों की प्रेरणा बनी। यह स्थापत्य अपने चरम पर ताजमहल के साथ पहुंचा।

भारत के विभाजन के समय अगस्त 1947 में पुराना किला और हुमायूं का मकबरा पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के कैम्प में बदल गए थे। बाद में इन्हें भारत सरकार द्वारा अपने नियंत्रण में ले लिया गया। यहां कैम्प लगभग पांच वर्षों तक रहे। इससे यहां के स्मारकों को अत्यधिक क्षति पहुंची। खासकर इनके बगीचों, पानी की सुंदर नालियों आदि को। इसके बाद इस ध्वंस को रोकने के लिए मकबरे के अंदर के स्थान को र्इंटों से ढक दिया गया। बाद में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने इसे वापस अपने पुराने रूप में स्थापित किया। 1985 तक मूल जलीय प्रणाली को सक्रिय करने के चार बार असफल प्रयास किए गए। एक सच जरूर ऐसा है जिसे एएसआई स्वीकार करता है। वह यह कि आगा खां सांस्कृतिक ट्रस्ट द्वारा पुनरुद्धार कार्य शुरू करने से पहले विश्व धरोहर होने के बावजूद हुमायूं के मकबरे में अतिक्रमण की भरमार थी। इस कारण इस बहुमूल्य संपदा के अस्तित्त्व को खतरा बना हुआ था। मकबरे के मुख्य द्वार के निकट अनेक छोरदारियां और टेंट गैर-कानूनी तरीके से लगाए गए थे। नीले गुंबद की तरफ यहां की बड़ी झोंपड़पट्टी थी। इन्हें वोट की राजनीति के चलते भरपूर राजनीतिक समर्थन मिलता रहा था। इन सब के कारण हजरत निजामुद्दीन दरगाह का भी बुरा हाल था। लेकिन आगा खां सांस्कृतिक ट्रस्ट द्वारा जीर्णोद्धार कार्य शुरू कराने के बाद स्थायी रूप से ये सब खत्म हुए।