नई दिल्‍ली। राजनीति हमेशा धर्म का लाभ उठाती रही है, लेकिन उसने कभी भी धर्म के लिए कुछ नहीं किया। यदि किया होता तो आज राम लला बेघर नहीं होते। अब कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी उत्‍तर प्रदेश में खाट पंचायतें निपटाने के बाद राम व रहीम की शरण में पहुंचे हैं। शुक्रवार, 9 सितंबर, 2016 को जब राहुल गांधी अयोध्या की प्रसिद्ध हनुमान गढ़ी पहुंचे तो कई सवाल एकाएक उछलने लगे। जिन ब्राह्मण वोटों पर इस बार कांग्रेस सबसे ज़्यादा ज़ोर दे रही है, क्या राहुल का हनुमान गढ़ी प्रवेश उसे आसान बना देगा? क्या कांग्रेसी रणनीतिकारों ने ‘किसान यात्रा’ में ऐन वक्त पर ‘मंदिर टच’ जान-बूझ कर दिया है? क्या राहुल के हनुमान गढ़ी दर्शन से कांग्रेस कोई ख़ास संदेश यूपी के मतदाताओं को देना चाहती है? क्या आने वाले विधान सभा चुनाव में भाजपा की काट के लिए कांग्रेस को थोड़ा हिंदुओं की ओर झुकाव भी ज़रूरी लग रहा है?

दरअसल, राहुल गांधी का हनुमान गढ़ी के दर्शन करने का कार्यक्रम पहले नहीं था। बुधवार की रात अचानक इसे उनके कार्यक्रम में जोड़ा गया। जोड़ा यह भी गया कि अयोध्या के बाद जब वे रोड शो करते हुए अम्बेडकरनगर जाएंगे तो किचौछा शरीफ़ दरगाह पर भी मत्था टेकेंगे। राहुल इस समय उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों-कस्बों में रोड शो कर रहे हैं। उनकी यात्रा को ‘किसान यात्रा’ का नाम दिया गया है। राहुल की यह यात्रा देवरिया से अपनी शुरुआत ही में ‘खाट-प्रकरण’ के कारण चर्चा या विवाद में आ गई। सोशल साइटों पर तब से ‘खाट’ ट्रेंड कर रहा है।

वैसे, राजीव अयोध्या में हनुमान गढ़ी दर्शन से कहीं ‘बड़ा’ काम कर चुके थे जिसके बल पर उन्होंने 1989 के उस चुनावी सभा में ‘राम-राज्य’ लाने का वादा किया था। राजीव गांधी ने अपने दोस्तों-सलाहकारों के कहने पर बाबरी मस्जिद मामले में कई तरह के फ़ैसले लिए थे। 1989 में विश्व हिंदू परिषद को अयोध्या के विवादित क्षेत्र में राम मंदिर के शिलान्यास की इजाज़त दी थी। इसकी परिणति 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद ध्वंस में हुई, जिसने कांग्रेस को अपने व्यापक मुस्लिम जनाधार से वंचित कर दिया।

पिछले 27 वर्षों से कांग्रेस यूपी की सत्ता से बाहर है। ये 27 साल यूपी में कांग्रेस की बदहाली के भी हैं। क्या इस बदहाली को दूर करने के लिए राहुल को अयोध्या और हनुमान गढ़ी की यात्रा ज़रूरी लग रही है? बताया तो यह जा रहा है कि अयोध्या-फैज़ाबाद से कांग्रेस का टिकट चाहने वालों ने, जिनमें एक महंत भी हैं, राहुल के सलाहकारों और कांग्रेस के रणनीतिकारों पर दवाब बनाया और तब बुधवार की रात राहुल के हनुमान गढ़ी जाने का कार्यक्रम तय हुआ। राहुल और उनके सलाहकारों की रणनीति यदि इस बहाने हिंदू-कार्ड चलना है तो इतिहास में, विशेषकर राजीव गांधी की मंदिर-चाल में उनके लिए एक बड़ा सबक़ तो हो ही सकता है, यदि वे उस ओर देखना चाहें।