उदय चंद्र सिंह

झारखंड में इन दिनों विधानसभा से लेकर सड़क तक एक ही सवाल उठ रहा है कि आखिर आदिवासी किसानों के हितों की अनदेखी कर अडानी ग्रुप को लाभ पहुंचाने के लिए गैर मजरूआ और रैयती जमीन का मूल्य अचानक 300 फीसदी से ज्यादा कम क्यों किया गया? सरकार के पास इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं है। अभी कुछ दिन पहले तक झारखंड में 62,000 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव पर अपनी पीठ थपथपा रहे मुख्यमंत्री रघुवर दास अब उस कामयाबी को कोस रहे हैं। उन पर उद्योगपति गौतम अडानी की कंपनी को 2,000 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाने की कोशिश का आरोप लग रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गौतम अडानी के रिश्ते जग जाहिर हैं। ऐसे में विपक्ष को सरकार को घेरने का पूरा मौका मिल गया है।

गोड्डा जिले में जमीन हस्तांतरण को लेकर तत्कालीन उपायुक्त ने गैर मजरूआ और रैयती भूमि का मूल्य प्रखंडवार निर्धारित कर 6 अगस्त, 2014 को राजस्व सचिव (भूमि) को भेजा था। इसमें महगामा के लिए 1.05 करोड़ रुपये प्रति एकड़ की दर तय की गई थी। पर सरकार ने कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए जमीन की दर घटा दी।

रघुवर दास की मुश्किल यह है कि इस मुद्दे पर न सिर्फ विपक्ष बल्कि खुद उनकी पार्टी भाजपा के एक विधायक ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। 8 मार्च को मामले को लेकर विपक्ष ने विधानसभा के बाहर प्रदर्शन किया तो इसमें सत्ता पक्ष के महगामा के विधायक अशोक कुमार भी शामिल थे। दरअसल, पूरा विवाद झारखंड मुद्रांक नियमावली 2009 और 2012 में संशोधन के साथ शुरू हुआ। इसके तहत संथाल परगना क्षेत्र की जमीन का मूल्य दो वर्ष के लिए घटा कर 1.05 करोड़ रुपये से मात्र 3.25 लाख रुपये प्रति एकड़ कर दिया गया। विपक्ष का आरोप है कि यह सब अडानी ग्रुप को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया। मुंबई में 18 फरवरी को मेक इन इंडिया समिट के दौरान झारखंड को अडानी और वेदांता जैसे ग्रुपों से 62,000 करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव मिला है। इन कंपनियों ने बिजली, उर्वरक, इस्पात और रसायन जैसे क्षेत्रों में रुचि दिखाई है।

इसी के तहत झारखंड सरकार ने अडानी समूह के साथ 15,000 करोड़ रुपये का एक समझौता पावर प्लांट लगाने के लिए किया है। इसकी क्षमता 1,600 मेगावाट होगी। इस इकाई से उत्पादित बिजली बांग्लादेश ग्रिड को दी जाएगी। यह प्लांट संथाल परगना के उसी गोड्डा जिले के महगामा में लगना है जहां की जमीन का मूल्य दो वर्ष के लिए घटा दिया गया है। गोड्डा जिले में जमीन हस्तांतरण को लेकर तत्कालीन उपायुक्त ने गैर मजरूआ और रैयती भूमि का मूल्य प्रखंडवार निर्धारित कर 6 अगस्त, 2014 को राजस्व सचिव (भूमि) को भेजा था। इसमें महगामा के लिए 1.05 करोड़ रुपये प्रति एकड़ की दर तय की गई थी। पर सरकार ने कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए जमीन की दर घटा दी। झारखंड में देश का 40 फीसदी खनिज है। यह एक मात्र राज्य है जहां कोयला और लौह अयस्क दोनों के भंडार हैं। यही वजह है कि जिंदल, अडानी और वेदांता से लेकर आदित्य बिड़ला समूह तक यहां अपना कारोबार फैलाने की तैयारी कर हैं।

झारखंड विधानसभा में इस मुद्दे को उठाने वाले झारखंड विकास मोर्चा के प्रदीप यादव का कहना है कि राज्य के कई जिलों में जिंदल और अडानी समेत अन्य कंपनियों द्वारा ऊर्जा संयत्र स्थापित करने और अन्य उद्योग स्थापित करने के लिए जमीन की उपलब्धता का आवेदन दिया गया है। खासकर संथाल परगना में गोड्डा, साहेबगंज और दुमका में अडानी समूह ने पावर प्लांट लगाने के लिए जमीन उपलब्ध कराने को लेकर आवेदन दिया है। उनका कहना है कि राज्य सरकार किसानों की चिंता न कर उन बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने में जुटी है। महगामा के भाजपा विधायक अशोक कुमार भी इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ हैं। खुद अपनी सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि इसमें बड़ा घोटाला हो रहा है। एक कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए लाखों किसानों के हितों की अनदेखी नहीं की जा सकती।

मामला सिर्फ जमीन की दर को लेकर रहता तो सरकार कुछ जवाब भी देती लेकिन सरकार पर अब यह भी आरोप लग रह है कि अडानी समूह गुपचुप तरीके से उस एमओयू (समझौता ज्ञापन) की कुछ शर्तों में भी बदलाव चाहती है जो मुंबई में मेक इन इंडिया के दौरान किया गया था। अडानी समूह चाहता है कि वह दूसरा एमओयू करे। मुंबई में हुए एमओयू को समूह कारगर नहीं मानता। फिलहाल अडानी को झारखंड से कोल ब्लक नहीं चाहिए। वह विदेश से आयातित कोयले से यहां का प्लांट चलाना चाहता है क्योंकि बाहर से कोयला मंगाना अभी सस्ता है। इसलिए नए सिरे से उसके लिए एमओयू जरूरी है।

झारखंड की ऊर्जा नीति के तहत राज्य में पावर प्लांट लगाने पर उसकी क्षमता का 25 फीसदी बिजली राज्य को देना अनिवार्य है। अडानी ग्रुप किसी और प्लांट से राज्य को 400 मेगावाट बिजली देने को तैयार है। इसकी दर राज्य विद्युत नियामक आयोग तय करेगा। करार में शर्त है कि अगर दूसरी जगह से बिजली उपलब्ध कराई जाती है तो उसके ग्रिड का खर्च और नए ट्रांसमिशन लाइन बनाने का खर्च ग्रुप को देना होगा। अडानी ग्रुप को गोड्‌डा जिला स्थित जीतपुर कोल ब्लॉक आवंटित है। यह कोल ब्लॉक अडानी पावर लिमिटेड के महाराष्ट्र के मुद्रा में सुपर क्रिटिकल टेक्नोलॉजी आधारित थर्मल पावर प्लांट के लिए है।

हालांकि मुख्यमंत्री इस पूरे विवाद को वेबजह करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि अब जबकि झारखंड में औद्योगिक माहौल तैयार हो चुका है, विपक्ष इस तरह के विवाद खड़े कर निवेशकों के मन में शंका पैदा करने का काम कर रहा है। कोई कंपनी उद्योग लगाने का प्रस्ताव देती है तो सरकार तत्काल 200 एकड़ जमीन उपलब्ध करा रही है। यह सब कुछ सिंगल विंडो सिस्टम के माध्यम से एक माह में पूरा हो रहा है ।

बहरहाल, मुख्यमंत्री जो भी दलील दें लेकिन जमीन की दरें घटाने के पीछे जिस डील की बात विपक्ष उठा रहा है उसका जवाब अभी नहीं मिला है। साथ ही राज्य की भाजपा सरकार पर किसान और गांव विरोधी होने का भी ठप्पा लग रहा है।

कौन हैं गौतम अडानी 

Adanisअडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी भारत के शीर्ष दस अमीरों की सूची में शामिल हैं। अहमदाबाद में एक सामान्य परिवार में जन्में (24 जून, 1962) अडानी का कारोबार आज देश-दुनिया में फैला है। वे भारत के सबसे बड़े निजी कोयला खान उद्यमी के तौर पर उभरे हैं। उनकी कुल संपत्ति 44 हजार करोड़ रुपये है। उनका बिजनेस कोयला, पावर, लॉजिस्टिक्स, रीयल एस्टेट, एग्रो प्रोडक्ट्स, आॅयल और गैस जैसे क्षेत्रों में फैला हुआ है।

पिता के बिजनेस में हाथ बंटाने की बजाय पढ़ाई छोड़कर गौतम महज 18 साल की उम्र में मुंबई आ गए थे। यहां उन्होंने हीरा व्यापारी महिंद्रा ब्रदर्स के यहां दो साल तक काम किया। 20 साल की उम्र में उन्होंने मुंबई में खुद का डायमंड ब्रोकरेज का बिजनेस शुरू किया और पहले ही साल लाखों का टर्नओवर हासिल किया। फिर बड़े भाई के कहने पर गौतम वापस अहमदाबाद गए और वहां प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करने लगे। बिजनेस का पर्याप्त अनुभव लेने के बाद 1989 में उन्होंने अडानी एक्सपोर्ट्स लिमिटेड की नींव रखी। यह कंपनी पावर और एग्रीकल्चर कमोडिटीज के क्षेत्र में काम करती है। 1991 तक कंपनी अपने पैर जमा चुकी थी और उन्हें भारी मुनाफा भी होने लगा था। शरुआती दिनों में वो स्कूटर से चलते थे। इसके बाद गौतम ने मारुति 800 से सफर शुरू किया जो अब बीएमडब्ल्यू और फरारी जैसी लग्जरी गाड़ियों तक पहुंच गया है। इसके अलावा उनके पास तीन हेलिकॉप्टर और तीन प्राइवेट चार्टर्ड प्लेन हैं। गौतम अडानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बेहद करीबी माना जाता है। अकसर ये सवाल उठते रहे हैं कि नरेंद्र मोदी अडानी के विमान पर क्यों घूमते हैं? इसके अलावा यह आरोप भी लगता रहा है कि गुजरात का मुख्यमंत्री रहते मोदी ने अडानी को बहुत फायदा पहुंचाया है। हालांकि गौतम अडानी इन सब आरोपों को बेबुनियाद करार देते हैं। वो मोदी से अपने पेशेवर रिश्तों की बात जरूर कबूलते हैं और कहते हैं कि अडानी ग्रुप ये विमान उन्हें मुफ्त में उपलब्ध नहीं कराती बल्कि भाजपा और राज्य सरकार इसका किराया देती रही है।