अभी लोकसभा चुनाव होने में काफी समय है लेकिन उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जनसभाओं में उमड़ रही भारी भीड़ को देखकर राजनीतिक विश्लेषक जहां अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं, वहीं सपा, बसपा, कांग्रेस में गठबंधन की रूपरेखा और सीटों के बंटवारे को लेकर बैचेनी दिखाई पड़ रही है। यही कारण है कि अब महागठबंधन में शामिल सभी दलों के नेता अगला चुनाव हर हाल में जीतने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो रहे हैं और हर प्रकार की विकृत बयानबाजी करके माहौल को बिगाड़ने के साथ ही अपने पक्ष में वातावरण बनाने की हर संभव कोशिश भी कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी कबीर की स्थली मगहर से अपना अनौपचारिक चुनाव प्रचार प्रारम्भ कर चुके हैं और अपने भाषणों के माध्यम से अगले आम चुनाव में उठने वाले मुद्दों व राजनीति पर भी संकेत व संदेश दे चुके हैं। यही कारण है कि आगामी दिनों में पीएम मोदी व बीजेपी के अन्य नेता उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल जैसे राज्यों का तूफानी दौरा करने वाले हैं।

भाजपा के लिए सबसे ज्यादा समस्या उत्तर प्रदेश में दिखाई पड़ रही है। इसलिए उप्र में महागठबंधन के नेता अब पूरी ताकत के साथ जनता के बीच अपने आपको मजबूत दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। वे वोटों व जाति के गणित के आधार पर एक बार भाजपा को सत्ता से बाहर करने का सपना तो देख सकते हैं लेकिन इन दलों में कई बड़े आपसी विरोधाभास भी हैं।

अभी प्रदेश में सपा और बसपा के कार्यकर्ता सम्मेलन हो चुके हैं, जिसमें सपा और बसपा के नेताओं ने जमकर बयानबाजियां की हैं। उत्तर प्रदेश की जनता बसपा प्रमुख मायावती को एक बार नहीं कई बार पूरी तरह नकार चुकी है। बसपा के ही कई कद्दावर नेताआेंं ने उन पर दलितों की बेटी न होकर दौलत की बेटी होने का आरोप लगाया है तथा पार्टी से बगावत की है। आने वाले दिनों में और बगावतें भी हो सकती हैं। बसपा को 2014 के लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं मिली थी और 2017 के विधानसभा चुनावों में भी वह 19 सीटों पर सिमट गई थी। लेकिन उसके बाद नगर निगम चुनावों में बसपा के प्रदर्शन में कुछ सुधार हुआ और अलीगढ़ व मेरठ जैसे शहरों में अपना मेयर जिताने में सफलता हासिल की।

2019 के चुनाव में सफलता हासिल करना मायावती के लिए बहुत बड़ी चुनौती है और वह अपनी ताकत को बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं। यही कारण है कि वह इतनी सीटें व वोट पाना चाहती हैं कि उनका अपना राजनीतिक अस्तित्व बचा रहे। आगामी विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाह रही हैं। लेकिन अभी तक इसका स्वरूप सामने नहीं आया है। अभी मायावती का किसी भी अन्य क्षेत्रीय दल के साथ कोई बड़ा समझौता नहीं हुआ है लेकिन उनकी पार्टी कोआर्डिनेटर की बैठक में कार्यकर्ताओं में उमंग व उत्साह को बढ़ाने के लिए यह प्रचार किया गया कि सभी विपक्षी दलों के नेताओं के बीच मायावती को देश का अगला पीएम बनाने के लिए आम सहमति बन चुकी है। जबकि सच यह है कि अभी महागठबंधन का आकार ही तय नहीं हो सका है तब पीएम पद पर आम सहमति की बात कहां से आ गई।
अभी लखनऊ में हाल में हुई बसपा की बैठक में मायावती को देश का अगला प्रधानमंत्री बनाने का नारा बुलंद किया गया। बसपा के कार्यकर्ता सम्मेलन में राष्टÑीय उपाध्यक्ष जयप्रकाश का अभिनदंन किया गया था लेकिन अपने अभिनंदन भाषण में उन्होंने एक ऐसा भाषण दे दिया कि उनकी पार्टी से विदाई हो गई। जयप्रकाश कुछ ही घंटे पार्टी के राष्टÑीय उपाध्यक्ष रहे। जयप्रकाश ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में विवादित टिप्पणी की। जयप्रकाश ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए कहा था कि वह विदेशी मां की संतान हैं इसलिए कभी भी भारत के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। वहीं उन्होंने बीजेपी के कई नेताओं के लिए भी विवादित टिप्पणी की लेकिन राहुल गांधी के चलते वो बात मीडिया में दब गई। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने राहुल गांधी का बचाव करते हुए कहा राहुल गांधी पूरी तरह भारतीय हैं लेकिन भाजपाई बताएं कि वे कौन हैं?

सपा-बसपा के गठबंधन की व्यावहारिकता और तीन लोकसभा उपचुनाव परिणामों से राजनीतिक विश्लेषक बहुत उत्साहित नहीं हैं। सेंटर फॉर स्टडी आॅफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक डॉ. अनिल कुमार वर्मा के अनुसार, ‘गठबंधन को लेकर दोनों दलों के नेता इसलिए गद्गद् हैं कि उनको लगता है दोनों दल एक दूसरे को अपने वोट ट्रांसफर कर सकते हैं। पहली बात तीन दशक तक पहचान या अस्मिता की राजनीति की बात करने के बाद अखिलेश यादव और मायावती का क्या अपने वोट बैंक पर इतना प्रभाव है कि वे यह दावा कर सकें कि अपने वोट बैंक तो एक दूसरे को एक मुश्त ट्रांसफर कर सकते हैं। अपने दल के लिए वोट बैंक का वोट प्राप्त करना एक बात है लेकिन दूसरे दल को ट्रांसफर करना बिलकुल ही दूसरी बात है क्योंकि दोनों दल 1995 से जमीनी स्तर पर एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं।’ डॉ. वर्मा ने कहा, ‘यह सवाल इसलिए खड़ा होता है क्योंकि सपा ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पूर्व कांग्रेस के साथ गठबंधन कर 300 सीटें जीतने का दावा किया था क्योंकि उनको विश्वास था 2012 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा का वोट शेयर यदि जुड़ गया तो वह विधानसभा में आराम से 300 सीटें जीत लेंगे। लेकिन यह गठबंधन दोनों दलों के लिए एक राजनीतिक आपदा साबित हुआ जहां सपा 47 सीटों पर सिमट गई और कांग्रेस को केवल सात सीटों पर विजय मिली।’

दोनों दलों के सामाजिक आधार पर डॉ. वर्मा कहते हैं, ‘सपा-बसपा का गठबंधन केवल राजनीतिक नहीं सामाजिक स्तर पर भी होना आवश्यक है। यादव सपा का कोर वोट बैंक हैं तो जाटव बसपा का। और ग्रामीण स्तर पर दोनों जातियां एक दूसरे के खिलाफ रही हैं क्योंकि उनके आर्थिक और सामाजिक हित भिन्न हैं और दोनों में लगातार टकराव की हालत बनी रहती है।’

उत्तर प्रदेश की तीन लोकसभा सीटों पर उपचुनाव परिणाम के बारे में डॉ. वर्मा कहते हैं, ‘तीनों सीटों पर बसपा का उम्मीदवार नहीं था। गोरखपुर और फूलपुर में तो बसपा का वोट सपा को ट्रांसफर हुआ लेकिन यह अभी देखना शेष है कि क्या सपा भी अपना वोट बसपा को ट्रांसफर करवा सकती है। मायावती में तो यह ताकत है कि वो अपना काफी वोट सपा को ट्रांसफर करवा सकती हैं लेकिन क्या यह बात अखिलेश यादव के बारे में भी कही जा सकती है।’

डॉ. वर्मा के अनुसार, ‘अखिलेश यादव के बारे में यह भी कहना जरूरी है कि उनका यादव समुदाय पर वो प्रभाव नहीं है जो उनके पिता मुलायम सिंह यादव का रहा है। समाजवादी पार्टी आज भी केवल एक जाति- यादव की पहचान से उबर नहीं सकी है और अखिलेश यादव ने अब तक 70 बैकवर्ड जातियों और 8 अति पिछड़ी जातियों का समर्थन हासिल करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है। ये जातियां बड़ी संख्या में भाजपा के पाले में हैं और 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका बहुत लाभ भी मिला।

उत्तर प्रदेश : भारतीय जनता पार्टी और किसान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 14 जुलाई को वाराणसी के राजा तालाब रेलवे स्टेशन के निकट सब्जी फल आदि के लिए कार्गो केंद्र का उद्घाटन किया। ये केंद्र रेलवे और कंटेनर कारपोरेशन ने देश में अनेक स्थानों पर बनाए हैं लेकिन वाराणसी का कार्गो केंद्र इस लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है कि लोकसभा चुनाव अब निकट है और नरेन्द्र मोदी ने 2014 में अपना चुनाव प्रचार भी राजा तालाब से ही शुरू किया था। भाजपा के गुजरात के पूर्व विधायक सुनील ओझा कहते हैं, ‘यह केंद्र वाराणसी और निकट जिलों के किसानों के लिए वरदान साबित होगा क्योंकि इस केंद्र में 24 घंटे कोल्ड स्टोरेज की सुविधा उपलब्ध है और किसानों की फल सब्जी बिना किसी नुक्सान के मुंबई की मंडी तक पहुंचना आसान हो जाएगा।’ ओझा कहते हैं, ‘फल सब्जी का काम करने वाले ज्यादातर किसान पिछड़े वर्ग से आते हैं जैसे कि शाक्य, कुशवाहा और काछी। 2014 के लोकसभा चुनाव पूर्व भाजपा ने पिछड़े वर्ग की राजनीति में समाजवादी पार्टी का दबदबा तोड़ने के लिए एक नया सामाजिक तानाबाना तैयार किया था जिसमें राजनीति में लगभग अदृश्य जातियों की अहम भूमिका थी। 2019 के चुनाव में भाजपा की रणनीति में दलित वर्ग के साथ किसान सबसे अहम भूमिका में होंगे। भाजपा के रणनीतिकारों का मत है देश के तमाम राज्यों में चल रहे किसान आन्दोलनों से होने वाले नुक्सान की भरपाई उत्तर प्रदेश से की जा सकती है। वाराणसी के बाद नरेन्द्र मोदी ने अगली रैली शाहजहांपुर में 21 जुलाई को की। भाजपा के नेता दबी जबान से स्वीकार करते हैं कि अभी कांग्रेस की स्थिति स्पष्ट नहीं है। विपक्षी दलों सपा-बसपा का संभावित गठबंधन उनके लिए चुनौती बन सकता है। गठबंधन की काट के लिए भाजपा तीन स्तर पर काम कर रही है। पहला मोदी, विकास और शहरी व ग्रामीण क्षेत्र जिसमें ग्रामीण पर ज्यादा जोर रहेगा। इस योजना पर तीन भाग में काम हो रहा है। पहला संगठन को यात्रा के पारंपरिक माध्यम से चुस्त दुरुस्त करना। भाजपा पर दलित-विरोधी आरोप के जवाब में भाजपा ने जन-संवाद यात्रा का आयोजन किया था जिसको अंबेडकर मिशन पदयात्रा भी कहा गया है।

जुलाई महीने में अमित शाह ने उत्तर प्रदेश का दौरा कर आगरा और मिर्जापुर में बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर तैयारी का जायजा लिया। उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता और स्वस्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि कुछ कार्यकर्ता तीन लोकसभा उपचुनावों में पार्टी की हार से कुछ निराश थे लेकिन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के दौरे के बाद संगठन में नए उत्साह का संचार हुआ है। सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि गठबंधन एक चुनौती है लेकिन अपने संगठन की ताकत और किसानों व दलित वर्ग के कल्याण के लिए सरकार द्वारा किए गए कार्यों को जनता के बीच लेकर जाएंगे।

ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा कहते हैं कि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है। केवल नरेन्द्र मोदी से नफरत के कारण ही वो एक मंच पर आ रहे हैं। उपचुनाव में पराजय का बहुत मतलब नहीं है क्योंकि आम चुनाव और उपचुनाव में माहौल का बहुत फर्क होता है। उपचुनाव में वोटर एक सांसद चुनता है जबकि आम चुनाव में प्रधानमंत्री का चुनाव होता है। हालांकि भाजपा नेताओं की आशावादिता से बहुत लोग सहमत नहीं हैं। उत्तर प्रदेश सरकार में बड़े पद पर तैनात एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा कि सपा-बसपा की जातीय गोलबंदी को भाजपा केवल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिये ही तोड़ सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष के पास नरेन्द्र मोदी जैसा मजबूत चेहरा नहीं है और न ही विपक्ष के लोग मेहनत कर रहे हैं। फिर वो साधनों के मामले में भाजपा से बहुत पीछे हैं।