mishabandi pension

मध्य प्रदेश सरकार ने ढाई हजार से अधिक मीसाबंदियों की पेंशन पर रोक लगा दी है. सरकार के इस फैसले का मीसाबंदियों का संगठन लोकतंत्र सेनानी विरोध कर रहा है. संगठन का कहना है कि अगर सरकार इस पर कोई विधेयक लाती है तो वे अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे.

mishabandi pensionरीवा के अजय खरे लोकतंत्र सेनानी के नाम पर 25 हजार रुपये मासिक पेंशन पा रहे हैं. मीसाबंदियों को दी जा रही सम्मान निधि को वह वोट की राजनीति करार देते हैं. बकौल खरे, ऐसे कई लोग हैं, जो एक दिन जेल गए या फिर नहीं भी गए, वे भी मीसाबंदी पेंशन ले रहे हैं. अपनों को रेवडिय़ां बांटना एक तरीके से सरकारी पैसे की लूट है. स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से हमारी तुलना नहीं की जा सकती. लोकतंत्र सेनानी को मीसाबंदी कहते हैं. उम्मीद है, सरकार का जो भी निर्णय होगा, अच्छा होगा.

गौरतलब है कि कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने गत 29 दिसंबर को एक सर्कुलर जारी कर मीसाबंदी पेंशन योजना की जांच के आदेश दिए हैं. बैंकों को भी निर्देश जारी किए गए हैं कि जनवरी 2019 से यह पेंशन रोक दी जाए. सर्कुलर के मुताबिक, लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि भुगतान की वर्तमान प्रक्रिया को सटीक एवं पारदर्शी बनाने के साथ ही लोकतंत्र सेनानियों का भौतिक सत्यापन कराया जाना भी आवश्यक है. कांग्रेस सरकार मीसाबंदी विधेयक निरस्त करने के लिए कैबिनेट की बैठक में मंजूरी मिलने के बाद उसे सदन में पेश करेगी. चौंकाने वाली बात यह है कि सांसद से लेकर विधायक, मेयर और संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े लोगों तक को सम्मान निधि दी जा रही थी. इस पर करीब 70 करोड़ रुपये सालाना खर्च आ रहा था. लोकतंत्र सेनानी संघ ने सरकार के इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही है. गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान साल 1975 से 1977 के बीच लगे आपातकाल में जेल भेजे गए लोगों को मीसाबंदी पेंशन योजना के तहत मध्य प्रदेश में करीब 2800 लोकतंत्र सेनानियों को 25 हजार रुपये मासिक पेंशन दी जाती है.

विधि मंत्री पीसी शर्मा कहते हैं, मीसाबंदी पेंशन के हकदार हैं, तो कांग्रेस के नेता भी कई बार जेल गए हैं, उन्हें भी पेंशन मिलनी चाहिए. सामान्य प्रशासन विभाग ने मीसाबंदी नियमों में सुधार और हितग्राहियों के सत्यापन का आदेश दिया है. जाहिर है, कई लोकतंत्र सेनानियों की पेंशन बंद होने का अंदेशा है. दरअसल, 2017 में केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत के महज 13 दिनों तक जेल में रहने पर पेंशन लेने की बात प्रकाश में आई, तो उसका जबरदस्त विरोध हुआ. इस पर तत्कालीन शिवराज सिंह सरकार ने नियम बदले और एक दिन भी जेल गए लोगों को इस योजना का पात्र बना दिया. शिवराज सिंह सरकार को चुनाव से पहले ही यह आशंका थी कि कांग्रेस अगर सत्ता में आई, तो वह मीसाबंदियों की पेंशन बंद कर सकती है. इसलिए उसने 20 जून 2018 को लोकनायक जय प्रकाश नारायण सम्मान निधि को लोकतंत्र सेनानी सम्मान अधिनियम के रूप में विधानसभा से मंजूर करा लिया. कांग्रेस सरकार विधानसभा में इसे रद्द करने के लिए विधेयक लाएगी, तो जाहिर है कि भाजपा उसका विरोध करेगी. कांग्रेस की मीडिया प्रभारी शोभा ओझा कहती हैं, अपनों को रेवड़ी बांटने के लिए भाजपा सरकार सरकारी पैसा खर्च कर रही थी. कांग्रेस सरकार मीसाबंदी पेंशन बंद करेगी. उन संस्थानों पर भी ताला लगेगा, जिन्हें संघ का एजेंडा लागू करने के लिए बनाया गया था.

लोकतंत्र सेनानी संघ के अध्यक्ष एवं भाजपा नेता तपन भौमिक कहते हैं, कांग्रेस सरकार बदले की भावना से काम कर रही है. मीसाबंदियों की पेंशन बंद करना जायज नहीं है. उत्तर प्रदेश और राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश हमारे पास हैं. मीसाबंदी पेंशन बंद करने पर मायावती सरकार चली गई थी. राजस्थान में भी ऐसा हुआ था. कमल नाथ सरकार को अपने घोषणा-पत्रों पर ध्यान देना चाहिए. कई मीसाबंदी ऐसे हैं, जिनकी हालत दयनीय है. वे पेंशन के ही सहारे हैं. मीसाबंदियों के साथ यह अन्याय है. पात्रों को ही पेंशन मिल रही है. जो हकदार है, उसे ही पेंशन दी जा रही है. एक भी शख्स फर्जी नहीं है. मुख्यमंत्री कमल नाथ का यह फरमान तुगलकी है. मामले की जांच कब होगी, कौन करेगा आदि अभी तक तय नहीं है. जांच होने तक पेंशन मिलती रहनी चाहिए. हम लोग पेंशन रोकने के विरोध में हाईकोर्ट में याचिका दायर करने जा रहे हैं. भाजपा महासचिव विष्णु दत्त शर्मा ने भी मीसाबंदियों की पेंशन बंद करने के कदम को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा, हम इसका पुरजोर विरोध करेंगे. वहीं सामान्य प्रशासन मंत्री गोविंद सिंह का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान, कैलाश जोशी और बाबू लाल गौर को पेंशन की क्या जरूरत है.

रीवा के पूर्व मेयर एवं लोकतंत्र सेनानी संघ के जिला अध्यक्ष राजेंद्र ताम्रकार कहते हैं, लोकतंत्र की रक्षा में लोगों के त्याग को दल के आधार पर नहीं तौलना चाहिए. यह लड़ाई आजादी की लड़ाई से कम नहीं है. आपातकाल के दौरान लोकतंत्र सेनानियों को जेल में बहुत यातनाएं सहनी पड़ीं. लेकिन प्रदेश सरकार जांच के नाम पर मीसाबंदियों का अपमान कर रही है और पंद्रह साल के शांतिपूर्ण वातावरण को छिन्न-भिन्न करने के प्रयास में लगी है. गौरतलब है कि कई मीसाबंदियों की मौत हो चुकी है. लेकिन अगर उनकी पत्नियां जिंदा हैं, तो उन्हें भी यह सम्मान निधि दी जाती रही है.

पूर्व भाजपा सरकार समय-समय पर मीसाबंदी पेंशन बढ़ाती भी रही. जून 2008 में उसने आपातकाल के दौरान छह माह से कम समय तक जेल में रहे मीसाबंदियों को छह हजार रुपये मासिक पेंशन देने की योजना शुरू की. 2012 में मीसाबंदियों ने दबाव बनाया कि पेंशन राशि में बढ़ोतरी की जाए. इस पर सरकार ने पेंशन राशि बढ़ाकर पहले १० हजार, फिर 15 हजार रुपये कर दी. इसके बाद 2016 में सरकार ने एक नया नियम बनाया कि जो लोग मीसा के तहत एक माह भी जेल में रहे, उन्हें 25 हजार रुपये मासिक पेंशन दी जाएगी.

फायदा लेने वालों में भाजपा के दिग्गज

मीसाबंदी पेंशन का लाभ लेने वालों में भाजपा के कई दिग्गज नेता भी शामिल हैं. ज्यादातर संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े हैं. योजना का फायदा उठाने वाले प्रमुख लोगों में केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, पूर्व मंत्री बाबू लाल गौर, अजय विश्नोई, शरद जैन, नागेंद्र सिंह नागौद, राम कृष्ण कुसमारिया, राज्यसभा सदस्य कैलाश सोनी, उप लोकायुक्त यूसी माहेश्वरी, पूर्व विधायक शंकर लाल तिवारी, पूर्व मेयर राजेंद्र ताम्रकार, समाजसेवी सुभाष श्रीवास्तव, पूर्व भाजपा जिला अध्यक्ष रीवा केशव पांडेय आदि शामिल हैं. पूर्व सांसद स्वर्गीय चंद्रमणि त्रिपाठी की जगह अब उनकी पत्नी पेंशन पा रही हैं.