झारखंड में मुख्य मुकाबला यूं तो महागठबंधन और एनडीए के बीच है, लेकिन जनमतनामक मोर्चा नया गुल खिलाने की तैयारी में है, जिसमें झारखंड नामधारी दलों का जमावड़ा है तथा जिसके प्रत्याशी सिर्फ वोट काटने के लिए चुनाव में उतरेंगे. अगर ऐसा हुआ, तो एनडीए की राह आसान हो जाएगी.

राज्य में चुनावी बिसात बिछ चुकी है, उस पर मोहरे भी सजने लगे हैं. दंगल की तस्वीर काफी हद तक साफ हो चली है. यहां 14 लोकसभा क्षेत्रों में चौथे चरण से सातवें चरण यानी 29 अप्रैल से 19 मई तक चुनाव होंगे. लिहाजा राजनीतिक दलों के पास अन्य राज्यों की अपेक्षा ज्यादा समय है. इसलिए विभिन्न गठबंधनों में सीटों के बंटवारे और प्रत्याशियों के चयन का काम आराम से चल रहा है. फिलहाल इतना स्पष्ट है कि चुनाव को बहुकोणीय बनाने की तैयारी है. यहां कुछ छोटी-छोटी झारखंड नामधारी पार्टियां भ्रम की स्थिति पैदा कर रही हैं, मसलन झारखंड नवनिर्माण महासभा एवं जनमत. इनमें वामपंथी दलों के भी शामिल होने की बात कही जा रही है. सीटों के बंटवारे की एक सूची भी जारी कर दी गई है. इनमें अधिकांश दल ऐसे हैं, जिनका एक भी सांसद-विधायक नहीं है. झामुमो (उलगुलान) के कृष्णा मार्डी जरूर अतीत में सांसद रह चुके हैं, लेकिन झामुमो के टिकट पर जीतकर. अलग पार्टी बनाने के बाद वह हाशिये पर चले गए थे. सीपीएम की राज्य कमेटी के सदस्य सुभाष मुंडा ने बताया कि जनमत के किसी नेता ने वाम दलों से कोई संपर्क नहीं किया है, वे एकतरफा घोषणा कर रहे हैं. वाम दलों के बीच आपस में बात चल रही है. कोडरमा, हजारीबाग एवं राजमहल सीटों पर सहमति बन चुकी है. हमारी कुल सात सीटों पर लडऩे की तैयारी है, जल्द ही इसकी घोषणा कर दी जाएगी.

वाम दल उन्हीं सीटों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जहां उनके मुख्य संघर्ष में शामिल होने अथवा जीतने की उम्मीद है. महागठबंधन उनके मजबूत जनाधार वाली सीटों पर सहमत होता, तो वे अलग मोर्चा नहीं बनाते. जाहिर है, जनमत में शामिल झारखंड पीपुल्स पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा (उलगुलान), बहुजन मुक्ति पार्टी, राष्ट्रीय सेंगल पार्टी, आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच एवं झारखंड पार्टी आदि महज अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगी. उनके पाले में जो भी वोट जाएंगे, वे महागठबंधन के हिस्से के होंगे. उनकी मौजूदगी कहीं न कहीं महागठबंधन को नुकसान और भाजपा को लाभ पहुंचाएगी. बहुजन समाज पार्टी सभी 14 सीटों पर चुनाव लडऩे जा रही है, उसके प्रत्याशियों का चयन हो चुका है, सिर्फ घोषणा होनी बाकी है. तृणमूल कांग्रेस सात सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है. इसके अलावा बड़ी संख्या में निर्दलीय भी अपनी किस्मत आजमाएंगे. यह तय है कि राज्य में मुख्य संघर्ष एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के बीच ही होगा. कुछ सीटों पर वाम फ्रं ट तीसरा कोण बनाएगा. संभव है कि वह जीत भी हासिल कर ले. शेष दल वोट काटने का काम करेंगे. भाजपा नीत एनडीए में सीटों का बंटवारा हो चुका है, जिसके तहत गिरिडीह सीट आजसू के पाले में है, शेष 13 सीटों पर भाजपा अपने प्रत्याशी उतारेगी. मौजूदा चुनौतियों को देखते हुए भाजपा कुछ सीटों पर अपने प्रत्याशी बदलने की तैयारी में है. गिरिडीह सांसद रवींद्र पांडेय का टिकट काटा जा चुका है. कुछ अन्य भाजपा सांसदों को भी मैदान के बाहर जाना पड़ सकता है. अभी इस पर मंथन चल रहा है. जिनके टिकट कटेंगे, उनके बागी होने अथवा दलबदल करने की आशंका भी बनी हुई है. लिहाजा, भाजपा चुनाव समिति हर कदम फूंक-फंूक कर रख रही है.

उधर महागठबंधन में भी राहुल गांधी के साथ बैठक के बाद सीटों के बंटवारे पर सहमति बन जाने का दावा किया जा रहा है. रांची में झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन की मौजूदगी में इसकी आधिकारिक घोषणा होने की संभावना है. गठबंधन का पेंच मुख्य रूप से गोड्डा, जमशेदपुर, चतरा एवं पलामू आदि सीटों को लेकर फंसा था. सूत्र बताते हैं कि गोड्डा सीट झाविमो को दिया जाना तय हो चुका है. वहां से प्रदीप यादव चुनाव लड़ेंगे. झाविमो प्रमुख बाबू लाल मरांडी को उनकी मनचाही सीट कोडरमा मिल गई है. रांची से पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय की उम्मीदवारी लगभग तय है. कांग्रेस के दावेदार एवं पूर्व सांसद फुरकान अंसारी को राज्यसभा भेजने पर सहमति बन गई है. ओडिशा की मयूरभंज सीट झामुमो और जमशेदपुर सीट कांग्रेस को मिलनी लगभग तय है. चतरा सीट राजद और पलामू सीट कांग्रेस के हिस्से में जाएगी. इस तरह कांग्रेस सात, झामुमो चार, झाविमो दो और राजद एक सीट पर अपने प्रत्याशी उतारेंगे. यही फॉर्मूला पहले भी बना था. चारों दलों ने अपने हिस्से की सीटों पर प्रत्याशियों का चयन भी कर लिया है. बस घोषणा बाकी है.

चुनाव आयोग भी निष्पक्ष चुनाव कराने की तैयारियों को लेकर सक्रिय है. 453 पोलिंग बूथों में बदलाव के लिए स्वीकृति मिल चुकी है. चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के कई मामले भी दर्ज हो चुके हैं. नामांकन के समय प्रत्याशियों के लिए फॉर्म-28 भरना अनिवार्य कर दिया गया है, जिसमें उन्हें अपनी परिसंपत्तियों, देनदारी एवं शैक्षणिक अर्हताओं के साथ-साथ आपराधिक मामलों की भी जानकारी देनी होगी. प्रत्याशियों को सिर्फ इसकी घोषणा नहीं करनी है, बल्कि मतदान तिथि से दो दिन पहले तक कम से कम तीन बार ऐसे समाचार पत्रों में, जिनका सर्वाधिक प्रसार उनके चुनाव क्षेत्र में हो, पूरा विवरण प्रकाशित कराना जरूरी है. मतदान के 48 घंटों के अंदर उन्हें टीवी पर भी यह घोषणा प्रसारित करानी है. इस नियम के चलते आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं के लिए चुनाव मैदान में उतरना थोड़ा कठिन हो गया है. राजनीति के अपराधीकरण पर रोक के प्रयास तो लंबे समय से किए जाते रहे हैं, लेकिन इस बार चुनाव आयोग ने जो तरीका अपनाया है, उसे लेकर नेताओं में हडक़ंप मचा हुआ है.